व्यक्ति और समाज: प्रीति श्रीवास्तव
लोग कहते हैं कभी अकेले ना रहा करो।सबके साथ रहो ।सबके सुख दुख बाँटो।अकेले रहने से मन में बुरे ख्यालात आते हैं।जिसका कोई साथी नही वो तनाव में रहता है ।
पर सच में क्या लोगो को भीड़ में भी कोई दोस्त मिलता है?क्या सभी से मन की बात कर सकते हैं?अगर किसी से दुख बाँटो तो लोग कहेंगे ये तो सिर्फ रोता ही रहता हैं।अगर सुख बाँटो तो लोग कहेगे दिखावा कर रहा है ।किसको बताए कोई अपने मन की बात।
मैं कहती हूँ पति पत्नी जीवन साथी कहे जाते हैं पर क्या वो भी अपने मन की सारी बात बोल पाते हैं एक दूसरे से?कभी शक का डर ,कभी रिस्ता खराब होने का डर ,कभी झगड़ा होने का डर तो कभी इज्जत कम होने का डर।न जाने कितने डर हैं जो इंसान को इंसान के सामने मुँह खोलने नही देता।दिल की बात कोई कहे कैसै?किससे कहे?
माँ से कहे एक लड़की कि वो किसी को बहुत पसंद करती जो उसकी जाती या औकात का नही?नही कह सकती ना?बेटा कहे माँ से माँ तुम्हारे ऐसे कपड़े अच्छे नही लगते?नही ना?
पत्नी कहे अपने पति से तुम्हारी अंतंगता मेरे पसंद की नही?पति कहे तुमसे अधिक सुन्दर मुझे कोई और लगती है?नही ना?
हैं बहुत सी बाते जो जीभ को बाँध देतीं है।हम किसी से वो बात ,वो दुख नही बाँट सकते।हमें खुद ही उससे उबरना होगा।सब से बड़ी बात ये है कि हमें खुद से प्यार करना सीखना होगा।जीवन से प्यार करना सीखना होगा।मौत जीवन की खुशियाँ नही देती ।इसके लिए जिन्दा रहना ही काफी नही है हमें जीना सीखना होगा।
आभार है मेरी लेखनी को आपने आदर दिया।🙏🏼
ReplyDeleteअपनी बात जुबान की बजाए व्यवहार से कही जाए तो ज्यादा अच्छा और कारगर होता है ।
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