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Showing posts from April, 2022

वसुंधरा की कविता

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डा. वसुंधरा उपाध्याय हिन्दी साहित्य में रुचि रखने वाली सहज स्वभाव की बहुत ही सौम्य एवं भावपूर्ण रचनाकार हैं. आपकी कविताओं में अनुभूति की गहनता और अभिव्यक्ति की मुखरता देखने को मिलती है. आपके परिचय के साथ प्रस्तुत है आपकी संवेदना से पूरित कविता..... !  यह रातें अब नही कटती हैं आँखों में रात गुजरती है मैं उसको कैसे याद करूँ  महफ़िल भी तन्हा होती है।। जब जब याद करूँ  तुमको यह पलक भीग ही जाती हैं में कैसे दर्द छिपाऊँ सबसे आंखें भी रोती रहती हैं।। महफ़िल में गजलें रोती हैं कविता की सांसें रुकती हैं रातें भी तन्हा हो गयीं हैं सांसे भी अबतो घुटती हैं।। यह दर्द भी उम्दा होता है आँखों में सदा यह पलता है जो इन राहों से गुजरा है उसकी किस्मत भी एसी है। यह दर्द  मिठास दे जाता है। जाने के बाद फिर खलता है। फिर बादल बनकर आंखों से यह झर झर झरता है।। जब प्यार हमें हो जाता है हर पल रूमानी होता है मिलने की आतुरता में  यह समय बीतता जाता है।। @वसुधा

असाध्य वीणा : महामौन और भावानुप्रवेश की स्थिति का आख्यान

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अज्ञेय हिन्दी प्रयोगवादी काव्य परम्परा के प्रवर्तक कवि के रूप में सर्व-स्वीकृत हैं । 1943 में आपने तार सप्तक का प्रकाशन कर हिन्दी साहित्य में एक नए तरह की संवेदना और शिल्प का विकास किया । प्रयोगवाद और प्रयोग के सन्दर्भ में अज्ञेय ने स्पष्टीकरण भी दिया लेकिन यह नाम चल पड़ा और चल पड़ने के कारण प्रयोगवाद काव्य परम्परा आज भी अपने प्रयोगों के लिए जानी एवं मानी जाती है ।अज्ञेय सिर्फ कवि या संपादक ही नहीं वरन एक बहुआयामी व्यक्ति हैं । आप कवि, आलोचक, उपन्यासकार ,संपादक होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी हैं । आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता भी की और देश को पराधीनता से मुक्ति के निरंतर संघर्षरत रहे । मुक्ति आपके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है । असाध्य वीणा अज्ञेय द्वारा रचित एक बहुत ही विशिष्ट कविता है ,लम्बी कविता होने के बाद इस कविता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कविता हमें आदि से अंत तक बांधे रहती है , एक वीणा जो एक साधक की साधना थी ,उसे साधा जाये यह गुफा-गह केश कम्बली के माध्यम से अज्ञेय ने प्रस्तुत किया है। यह कविता आगन के पार द्वार कविता संग्रह में संकलित छ: खण्डों में है । कथा

हरी घास पर क्षण भर : उन्मुक्त मन और प्रेम की जीवन्तता का आख्यान

  अज्ञेय हिन्दी प्रयोगवादी काव्य परम्परा के प्रवर्तक कवि के रूप में सर्व-स्वीकृत हैं । 1943 में आपने तार सप्तक का प्रकाशन कर हिन्दी साहित्य में एक नए तरह की संवेदना और शिल्प का विकास किया । प्रयोगवाद और प्रयोग के सन्दर्भ में अज्ञेय ने स्पष्टीकरण भी दिया लेकिन यह नाम चल पड़ा और चल पड़ने के कारण प्रयोगवाद काव्य परम्परा आज भी अपने प्रयोगों के लिए जानी एवं मानी जाती है ।अज्ञेय सिर्फ कवि या संपादक ही नहीं वरन एक बहुआयामी व्यक्ति हैं । आप कवि, आलोचक, उपन्यासकार ,संपादक होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी हैं । आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता भी की और देश को पराधीनता से मुक्ति के निरंतर संघर्षरत रहे । मुक्ति आपके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है । मुक्ति आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का अभिन्न हिस्सा है ,कविता को आपने नए प्रतिमानों से समृद्ध करने के लिए जो उद्यम किया वह विशिष्ट है । इसी मुक्ति का स्वर आपकी रचनाओं में देखने को बराबर देखने को मिलता है । हरी घास पर क्षण भर कविता में उन्मुक्त और स्व से आच्छादित भाव को प्रस्तुत किया है । व्यक्ति की स्वतंत्रता की आकांक्षा अच्छी कुंठा रहित इकाई ,