पुनर्नवा का उपन्यास शिल्प : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
सामाजिक विकास और इतिहास बोध का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। हमारे समाज का विकास इतिहास के परिमार्जन के साथ होता रहता है। इस दृष्टि से जितना महत्व आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संसाधनों का है , उतना ही महत्व हमारे इतिहास का भी है। भारतीय इतिहास में बहुत-सी ऐसी ज्ञान राशि संचित है , जिन का उपयोग हम अपने वर्तमान जीवन को बेहतर बनाने में कर सकते हैं। इस दृष्टि से हमें हमारे इतिहास का ज्ञान होना चाहिए। अपने इतिहासबोध से ही हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं। इतिहासबोध और संचयन की दृष्टि से साहि इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास के साथ-साथ साहित्य की परम्परा का भी विशेष महत्व है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इतिहास दृष्टि गहन और सूक्ष्म है। इतिहास और वर्तमान की सापेक्षता उनके रचना कर्म में सर्वत विद्यमान है। द्विवेदी जी के निबन्ध हो या उपन्यास सबका आधार लगभग इतिहास ही है। लेकिन उन्होंने इतिहास या पुराण के तथ्यों को उनका में नहीं प्रस्तुत किया है , जिस सन्दर्भ में वे रहे हैं। द्विवेदी जी इतिहास दृष्टि और आलोचना दृष्टि में सर्वत्र उनकी भारतीय चेतना झलकती रहती है। उनका मानवतावादी नजरिया