विवेकी राय की कहानियों की भाषा एवं शिल्प :डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव,एम.ए. (पी.एचडी)



लोक हमारे जीवन का मूल स्रोत रहा है,जीवन का स्रोत होने के साथ-साथ लोक हमारे समाज और साहित्य का भी उत्स रहा हैहिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हिन्दी का बहुत सा साहित्य लोक के विशाल प्रांगण में रचा गया है विवेकी राय भी ऐसे ही कथाकार हैं जिनका साहित्य लोक के प्रांगण में पुष्पित और पल्लवित हुआ है ,आपकी कहानियों में लोक जीवन के विविध पक्षों का अनाकन देखने को मिलता है यथार्थ विवेकी राय की वास्तविक सही और रुचिकर जमीन गाँवहै, जिस पर उनकी अधिकतर अच्छी कहानियाँ खड़ी हैं । गाँव सम्बन्धी कहानीकार की विशाल अनुभव सम्पदा की कथात्मक परिणति न केवल व्यापक और बहुआयामी है, अपितु घनीभूत और संवेद्य भी । बोली-बानी, गाली, लोकोक्ति एवं भाषाई लोच आदि का प्रयोग कर उन्होंने अपनी भाषा को और भी सार्थक एवं सबल बना दिया है । भाषा का वैविध्य उनके कथा-साहित्य का प्राण तत्व है ।

 भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है । बिना भाषा के न तो हम विचार विनिमय कर सकते हैं और न ही भावों का सम्प्रेषण । यह भाषा हमारे भाषा जगत एवं विचार जगत का अनिवार्य अंग है । कोई भी विचार या भाव तभी सार्थक होता है, जब उसकी अभिव्यक्ति हो । व्यक्ति हो या रचनाकार सभी को अभिव्यक्ति के लिए एक भाषा की आवश्यकता होती है । भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज से जुड़ता है और रचनाकार समाज के मर्म को पहचान कर उसकी भाषा में अभिव्यक्ति करता है । विवेकी राय एक ऐसे कथाकार हैं जो उस समाज के समग्रता में जी रहे होते हैं, जिस समाज को रच रहे होते हैं । विवेकी राय खांटी एवं घुर देहाती व्यक्ति हैं, इसकी परिणति उनके साहित्य में देखने को मिलती है । बोली-बानी, गाली, लोकोक्ति एवं भाषाई लोच आदि का प्रयोग कर उन्होंने अपनी भाषा को और भी सार्थक एवं सबल बना दिया है । भाषा का वैविध्य उनके कथा-साहित्य का प्राण तत्व है । इसका मुख्य कारण उनकी परिवेश से सम्पृक्तता है । विवेकी राय की सबल अभिव्यक्ति का एक बड़ा कारण यह है कि वे उस परिवेश से जमीनी तौर से जुड़े हुए हैं, जिसका सृजन वे अपने कथा-साहित्य में कर रहे थे । भाव और भाषा उनके कथा-साहित्य में एक-दूसरे का अनुगमन करते हुए उनके कथा-साहित्य में दृष्टिगत होते हैं । शब्द-चयन एवं पद-चयन भाषा के अभिव्यक्ति कौशल को बढ़ा देते हैं । विवेकी राय भाषा के सजग एवं सफल प्रयोक्ता हैं । शब्द-चयन की सजगता, विशेषण का प्रयोग एवं सांकेतिकता उनकी भाषा के प्राण तत्व हैं ।

शब्द-चयन: साहित्यशास्त्र के चिन्तन में शब्द-चयन पर गम्भीरता से विचार किया गया है । आचार्य वामन ने पद-रचना के सम्बन्ध में कहा है कि - विशिष्ट पद-संघटना रीतिः। अर्थात् साहित्य में विशिष्ट पद रचना का विशेष महत्व है । लोंगिनुस ने उदात्त सिद्धान्त की चर्चा करते हुए उदात्त के निष्पादक तत्वों में भव्य-भाषा के साथ विशिष्ट पद-रचना को विशेष महत्व है । लोंगिनुस साहित्य को वाग्मिता का प्रकर्ष स्वीकार करता है । यह प्रकर्ष शब्द-चयन एवं भाषाई कौशल से ही आता है ।  काव्य हो या गद्य सभी में शब्द चयन का विशेष महत्व है । पात्र, परिवेश एवं विषय-वस्तु के अनुकूल ही भाषा समर्थ एवं प्राणवान बनाती है । विवेकी राय की कहानियों में अभिव्यक्ति कौशल देखते ही बनता है। श्री राय की भाषा तरल एवं सहज प्रवाह मान है । विवेकी राय की भाषा में शब्द-चयन पर विशेष बल दिया गया है । पात्रानुकूल भाषा एवं परिवेशानुकूल पात्रों के नाम उनकी भाषा को सबल बनाती है । पात्रों के नामों के चयन में लेखक सजग है, विवेकी राय के पात्र हैं - गुदिया, मुअली, बचमुनिया, सरली, शान्ती, सोमरिया, गौरी, लोकनाथ, सनीचरी, गोजर, लतरी, कबूतरी, सनेही, चरना, हरी, मोटकी, हरिया, बाबा घरनई इत्यादि । पात्रों के ये नाम यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि ये पात्र किस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं । सान्ती का तत्सम रूप शान्ती है । सनीचरी शनिवार को पैदा होने के कारण नाम पड़ा और मोटे होने के कारण नाम मोटकी पड़ा । यह लेखक की परिवेश के प्रति सजगता है एवं सम्प्रेषण कौशल भी है । पात्रों के नामकरण के साथ-साथ लेखक ने विषय-वस्तु एवं परिवेश के अनुकूल शब्द-चयन किया है । शब्द-साम्य, ध्वनि-साम्य एवं शब्द-युग्म का प्रयोग श्री राय ने भाषा की प्रभावोत्पादकता बढ़ाने के लिए किया है -

‘‘घण्टी की टुन-टुन-टुन-टुन ध्वनि’’

- - - -

‘‘बॉ - बॉ - बॉ’’ (ध्वनि साम्य)

- - - -

अब्बर-दुब्बर

दुःख-दैन्य, अवसाद-विषाद

- - -

ए फुफा फुफेली ..... पैसा अधेली, ..... चाम पर चमेली

..... तुरूक की तेली ...... । (शब्द-साम्य)

लड़का टकर-टकर ताकता रह जाता है

- - -

धधा-धधा कर (शब्द साम्य)

- - -

देखते-देखते

- - -

झबर-झबर

- - -

पों-पों, तांगे की खटर-खटर8 (शब्द-साम्य, ध्वनि साम्य)

 

विवेकी राय एक ऐसे कथाकार हैं जो शब्दों में ध्वनि एवं रंग भर देते हैं। भाषा प्रयोग की सजगता एवं शब्दों को तराश कर रखने की क्षमता श्री राय में है । सन्दर्भों की व्यापकता के अनुसार विवेकी राय में भाषिक उदारता देखने को मिलती है । अरबी/फारसी, संस्कृत, देशज एवं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग विवेकी राय पात्र एवं परिवेश के अनुकूल सन्दर्भों में करते हैं । जैसे -

कपार, खुराफात, रूल्द, जहन्नुम

- - - -

को हि नाम संकल्पो धीमताम् यो न सिध्यति ।

- - - -

नेताय नमः, नेताय नमः, नेताय नमः

ऐसे भाषाई प्रयोग विवेकी राय की भाषा के अनिवार्य अंग हैं । शब्दों का ऐसा स्वतः स्फूर्त एवं सहज प्रयोग विरले ही मिलता है । हिन्दी साहित्य के कुछ आलोचक श्री राय को आंचलिक कथाकार भी कहते हैं। लेकिन श्री राय आंचलिक कथाकार नहीं हैं । आँचलिकता का एक स्वर उनके यहाँ है । विवेकी राय देशज जीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने वाले कथाकार हैं । ग्राम्य जीवन की विशेषताओं की अभिव्यक्ति श्री राय की भाषा में देखने को मिलती है । भाषा में विशेषण प्रयोग श्री राय की अन्यतम विशेषता है जिससे उनका शिल्प पक्ष और सबल हो जाता है ।

विशेषण: संज्ञा की विशेषता बताने वाला शब्द विशेषण कहलाता है । अपने इस गुण के कारण किसी भी भाषा को प्रभावशाली बनाने में विशेषण की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है । इसके प्रयोग से भाषा प्रभावशाली बनती है और उसमें कसावट भी आ जाती है । सामान्यतः यह उस शब्द से ठीक पहले रखा जाता है जिसकी यह विशेषता बताता है । हिन्दी कथा साहित्य में विशेषण प्रयोग की परम्परा अनवरत रूप से चली आ रही है । विशेषण भाषा का अनिवार्य अंग है और इसका प्रयोग भाषा को समर्थ बनाता है । डॉ0 राय ने अपने कथा साहित्य में अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है । चाहे विवेकी राय की कहानियों को लें अथवा उपन्यासों को । श्री राय भाषा के सजग प्रयोक्ता हैं किसी बात को कहने के हजारों तरीके उन्हें पता हैं। कभी-कभी कोई बात हल्के-फुल्के ढंग से यों ही कही जाती है, तो उसका प्रभाव उतना नहीं होता है । लेकिन वही बात जब विशिष्ट कौशल के साथ प्रस्तुत किया जाता है, तो वह सार्थक एवं सटीक हो जाती है । विवेकी राय की कहानियों में विशेषण का प्रयोग भाषा-कौशल के एक अनिवार्य अंग के रूप में हुआ है -

मन मस्ती में मयूर-सा नाच उठा

- - -

भोथर, धुप्पा अँधेरे

- - -

चेहरे पर गुलाब सी कान्ति आ गयी ।

- - -

ऐसा शौर्य प्रदर्शन किसी पृथ्वी राज ने किसी संयोगिता को

लेकर भागने में भी नहीं प्रदर्शित किया होगा ।

- - - - -

दुधिया चाँदनी में नहाता एक महल खड़ा था ।

हाथी जैसे पेट में करोड़ों का माल गटक गये और डकार तक

नहीं ले रहे हैं ।

- - - -

‘‘सच्चा नेता वह है जिसे सारी दुनिया गाली देती है, जो

ललकार झूठ बोलता है, जो गंगा-जल की तरह अपने में सारा

पाप-शाप पचा लेने की ताकत रखता है ।’’

- - - -

‘‘धन्य भाग कि चरन से द्वार पवित्र हुआ ।’’

उपरोक्त पंक्तियों में विशेषण प्रयोग द्वारा भाषा में चमत्कार देखने को मिलता है । चरित्र-विश्लेषण करते हुए लेखक ने विशेषणों का प्रयोग जमकर किया है । बुढ़िया कहानी में बुढ़िया के चरित्र एवं व्यक्तित्व का चित्रण करते हुए लेखक ने लिखा है -‘‘जिसकी आँखें ही गंगा यमुना है । जिसके केश ही हिमशुभ कैलास के रजत शिखर हैं और जिसके चरण ही आदि शक्ति महामाया के चरण हैं, उस शान्त और निर्विकार सी बुढ़िया को उपेक्षा तथा घृणा की दृष्टि से देखने वाले जीव की निर्धारित करने के नये मनु और याज्ञवल्क्यादि को अवतार लेना पड़ेगा। बुढ़िया का अब क्या है ? अब तो सारा संसार ही उसका  अपना बेटा है । सुख-दुःख उसके लिए बराबर है । आयु के शिखर पर बैठकर शून्य में समाधिस्थ होने जा रही है ।’’ ममत्व का ऐसा चित्र विरले ही देखने को मिलेगा । लेखक ने शब्दों के माध्यम से जो चित्र प्रस्तुत किया है कि वह हमारे समक्ष साक्षात उपस्थित हो जाता है । विशेषणों के प्रयोग में लेखक ने एक नयी भाषा परम्परा का सूत्रपात किया है । शब्द चयन का कौशल और विशेषणों के समर्थ के प्रयोग के साथ-साथ श्री राय ने भाषा में सांकेतिकता का प्रयोग कर भाषा-शिल्प में नवीनता का समावेश किया है । यह उस विषय-वस्तु के लिए आवश्यक भी था, जिसे विवेकी राय प्रस्तुत कर रहे थे ।

सांकेतिकता: विवेकी राय एक ऐसे कथाकार है। जिनका सम्पूर्ण कथालेखन ग्रामीण जीवन को समर्पित है । गाँव ही उनका आराध्य है । उनके उपन्यास से लेकर कहानियों तक में ग्राम्य जीवन का व्यापक चित्र  देखने को मिलता है । गाँव के यथार्थ को चित्रित करना ही उनके लेखक मन का उद्देश्य है । ग्रामीण जीवन की अनेकों ऐसी परम्पराएँ हैं जिनका संरक्षण श्री राय अपने कथा साहित्य में करते हैं । विवेकी राय का कथा साहित्य ही नहीं उनका निबन्ध लेखन भी इसी परम्परा को जीवित रखने के लिए है । विवेकी राय की भाषा में सौन्दर्य और लालित्य अटा-पड़ा है । प्रसंगों को मार्मिक और हृदयग्राही बनाने में स्थान-स्थान पर संकेतों का प्रयोग किया गया है । सांकेतिकता भाषा की एक अन्यतम विशेषता है, जिससे भाषा सहज ही चमत्कारिक हो उठती है । हिन्दी कथा भाषा में सांकेतिकता के प्रयोग का आरम्भ जैनेन्द्र करते हैं, अज्ञेय उसे आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं और बाद के कथाकार इसका भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में प्रयोग करते हैं । सांकेतिकता का बहुतायत प्रयोग उपन्यास साहित्य में ही देखने को मिलता है, लेकिन कहानी साहित्य इसका अपवाद नहीं है । बातों को संकेतों में कहना और असली बात पहुँचा देने की अद्भूत क्षमता विवेकी राय में है । आपसी संवेदनशीलता पर लेखक ने बड़ी ही गम्भीर एवं सार्थक टिप्पणी संकेतों में ही कर दिया है -‘‘मनुष्य को इस प्रकार पत्थर नहीं हो जाना चाहिए । इंसान यदि इंसान की पीड़ा नहीं समझेगा तो फिर कौन समझेगा ? जरूर यह दुर्देव का सताया एक निरीह जीव है । भूख से जल रहा है ।’’ ‘‘जाके पैर न फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई ।उपरोक्त पंक्तियों में लेखक मनुष्य के पत्थर होने-न होने की बात करता है । पत्थर शब्द सांकेतिक है । आगे की पंक्तियों में वह इस बात को स्पष्ट भी करता है और अपने कही हुई बातों को नीचे दिये गये लोकोक्ति के माध्यम से समर्थित भी करता है । संवेदना एक ऐसी भावना है जिससे हम दूसरों के सुख-दुःख को महसूस करते हैं । लेकिन विवेकी राय का लेखक मन इस बात से दुःखी है कि आज संवेदना की कमी हुई है। इसी कहानी में विवेकी राय आगे की पंक्तियों में कहते हैं-

‘‘दुनिया में गरीब का कोई नहीं ।’’

‘‘हाथी का पेट बना लो । गिरगिट का रूप बना लो ।

उपरोक्त पंक्तियों में संकेतिकता का विशेष प्रयोग देखने को मिलता है । हाथी का पेट बना लेने से आशय किसी भी बात को हृदय में समेट लेने से है क्योंकि हाथी का पेट बड़ा होता है । इसी तरह गिरगिट का रूप बना लेने से आशय तुरन्त-तुरन्त अपनी भाव भंगिमा बदलने से है । क्योंकि गिरगिट  रंग बदलने में माहिर होता है। ऐसे भाषा प्रयोगों से विवेकी राय का कथा संसार अटा पड़ा है।

विवेकी राय के कहानियों की शैली: शैली भाषा का प्राणतत्व है । भाषा का अभिव्यक्ति किस रूप में करना है, यह शैली के माध्यम से अभिव्यक्त होता है । शैली अभिव्यक्ति कौशल है । शैली का प्रयोग प्राचीन भारतीय वाङ्मय में साहित्येत्तर विधाओं के सन्दर्भ में प्रादेशिक विशेषताओं या कला सम्प्रदायगत विशेषताओं को जताने के लिए हुआ है । शैली मूलतः भाषा के अभिव्यक्ति का कौशल है भाषा विज्ञान की एक स्वतन्त्र शाखा के रूप में शैली-विज्ञान का अध्ययन किया जाता है । साहित्य में विधागत स्वरूप के आधार पर शैली का स्वरूप अपनाया जाता है। कथा साहित्य में शैली के विविध रूप देखने को मिलते हैं । वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग विशेष रूप से होता है । इसके साथ-साथ रचनाकार अपनी सुविधानुसार कथा पद्धति को रोचक बनाने के लिए नयी-नयी भाव भंगिमा का प्रयोग करता है । विवेकी राय ने भी अपनी कथा को रोचक बनाने के अन्य विधाओं की शैली का प्रयोग किया है । ये शैलियोँ हैं- डायरी शैली पत्र, संस्मरण एवं रिपार्ताज शैली संवाद शैली मुहावरे-लोकोक्तियों का शैलीगत प्रयोग ।

डायरी-शैली: दैनिक जीवन में अनेक ऐसी घटनाएँ होती है, जो हमारे मन को प्रभावित करती है । कुछ घटनाएँ हमें हर्षित करती है, तो कुछ अवसाद-ग्रस्त। कुछ से खींझ उत्पन्न होती है तो कुछ से वितृष्णा । कुछ हमें उत्साह ओर स्फूर्ति से भर देती है और कुछ खेद से खिन्न कर देती है । साहित्यकार अतिसंवेदनशील होता है । इन घटनाओं की उस पर तीव्र प्रतिक्रिया होती है ।किसी दैनिक घटना के सन्दर्भ में अपने मन की उधेड़बुन व्यक्त करने के लिए डायरीसर्वोत्तम माध्यम है । डायरी हर घटना, काल और स्थान की सीमा में बंधी होती है । इसलिए डायरी लेखक घटना के साथ तिथि और स्थान तथा घटनाएँ काल्पनिक भी हो सकती है । डायरी लेखन की अपनी पद्धति होती है । एक विधा के रूप में डायरी कथारस का आनन्द देती है । कहीं-कहीं डायरी कथा साहित्य सा रोमांच पैदा करती, वहीं दूसरी ओर कहीं-कहीं कथासाहित्य में कथावस्तु की मांग के अनुसार डायरी विधा का समावेश भी कथा साहित्य में किया जाता है। विवेकी राय एक ऐसे रचनाकार हैं, जो किसी विषय-वस्तु को समग्रता में प्रस्तुत करते हैं । विवेकी राय ने डायरी-शैली का प्रयोग अपने कथासाहित्य में किया है । अपने उपन्यास बबूल में लेखक ने एक बड़े हिस्से में डायरी शैली का प्रयोग किया है । उपन्यासों के साथ-साथ विवेकी राय ने अपनी कहानियों में भी डायरी शैली का प्रयोग किया है । अपने कहानी संग्रह नयी कोयलकी तीन चौथाई कहानियों में लेखक ने डायरी शैली का प्रयोग किया है । इसका कारण यह है कि इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ आज अखबार के लोकप्रिय स्तम्भ ‘‘मनगबोध मास्टर की डायरी’’ के अन्तर्गत लिखी गयी है । चकबन्दी के प्रभाव से ग्रामीण खानपान में उत्पन्न कटुता की स्थिति, एन0सी00 ट्रेंनिंग और भाषा समस्या जैसे ज्वलन्त प्रश्नों को भी लेखक ने कहानियों के माध्यम से उठाया है । नयी कोयलकहानी की कहानियों में लेखक ने डायरी शैली का प्रयोग किया है । इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ पत्रों में प्रकाशित कहानियाँ है । इस संग्रह की पहली ही कहानी में रचनाकार में डायरी शैली का प्रयोग किया है । कहानी के आरम्भ में ही विवेकीराय लिखते हैं कि - ‘‘आज मरछिया के बारे में कुछ लिखने की जबरदस्त इच्छा है। इस स्त्री को जब से होश हुआ, देख रहा हूँ, परन्तु जब कलम उठी और सचमुच कुछ लिखने का सुर आया तो ऐसा लगा जैसे मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानता हूँ।’’24 इसी कहानी में आगे लेखक डायरी शैली में कथा को बढ़ाते हुए लिखता है - ‘‘यह कथा आज की एक महत्वपूर्ण घटना है । यह गांव के एक सबसे सनाथ और अनाथ का सम्मिलन है । अनाथ का तात्पर्य बताने की जरूरत नहीं। सनाथ गांव के सबसे धनी मंजुप्रसाद जी।’’ उपरोक्त पंक्तियों में कथाकार ने डायरी-शैली का प्रयोग किया है। डायरी शैली का प्रयोग लेखक ने नये रूप में किया है । लेखक ने डायरी-शैली का रूपान्तर कथा साहित्य के अनुरूप किया है । अपनी कहानी एक दिन रेल हमारीमें भी विवेकी राय ने डायरी शैली का प्रयोग किया है, लेकिन यह नितान्त रूप में है -

‘‘बात गत 26 जनवरी की, बिना कहे भी मुख से निकल जाती है। बिना लिखे भी कागज पर छप जाती है । कहीं भी उत्साह नहीं मिला । न धरती पर, न आसमान में । न जलूस के नारों में, न किरणों में । उल्लास ठण्डा पड़ गया था । आयोजनों पर पानी पड़ गया । बादल नहीं, आसमान उदासियों से घिर गया । बिजलियाँ नहीं, देश के भविष्य की चिन्तायें चमकने लगीं। बात ठीक उसी दिन की है, जिस दिन लोग प्रधानमंत्री शास्त्री जी के अभाव का घाव दबाकर और सर्वोच्च परमाणु वैज्ञानिक श्री भाभा के ताजे शोक की मूर्छा को सम्भालकर तिरंगा झण्डा फहरा रहे थे ।’’इन पंक्तियों में लेखक 26 जनवरी के उत्सव का जिक्र करता है। लेखक वर्णन भूतकाल की घटना का करता और तिथि का बाकायदा जिक्र करता है । इसी तरह डायरी-शैली का प्रयोग और खिड़की बन्द हो गयीकहानी में देखने को मिलता है -‘‘ट्रेन आखिरी सीटी देकर चलने वाली थी कि साहब फाटक खोलकर धड़धड़ाते हुए डिब्बे में दाखिल हुए और ऐसा लगा कि एक बारगी उन्होंने समूचे डिब्बे को सिर पर उठा लिया ।’’उपरोक्त पंक्ति में डायरी शैली के साथ-साथ यात्रा-वृत्तान्त का रस भी लेखक कहानी में ही उपस्थित कर देता है । विवेकी राय ने अपनी कहानियों में आधुनिक गद्य की प्रकीर्ण विधाओं का रस उपस्थित कर दिया है । पत्र एवं संस्मरण और रिपोर्ताज शैली का भी भावाभिव्यक्ति को सबल बनाने के लिए किया है ।

पत्र, संस्मरण एवं रिपोर्ताज शैली: पत्र-साहित्य, संस्मरण-साहित्य एवं रिपोर्ताज आधुनिक गद्य की प्रकीर्ण विधाएँ हैं । इन सभी विधाओं में कथारस का सा आनन्द मिलता है। संस्मरण एवं पत्र-साहित्य के माध्यम से हमें लेखक के निजी जीवन के बारे में जानकारी मिलती है । विवेकी राय की कहानियों में संस्मरण एवं रिपोर्ताज आदि की सरसता देखने को मिलती है । प्रेमचन्दोत्तर कहानीकारों में विवेकी राय एक ऐसे कथाकार हैं, जिनके कहानिचों में ग्राम्य जीवन की सरसता और किस्सागोई दोनों का आनन्द मिलता है । पत्र-शैली, संस्मरण-शैली एवं रिपोर्ताज शैली सभी के प्रयोग से विवेकी राय की शैली में अद्भुत सामर्थ आ जाता है । गूंगा-जहाजकहानी-संग्रह में संकलित कहानियों में स्वातन्त्र्योत्तर गाँवों व उनमें आये बदलाव को अभिव्यक्त किया गया है । इस संग्रह की कहानी बाढ़ की यमदाढ़में रिपोर्ताज शैली का प्रयोग किया है । इस कहानी में प्रलयंकारी बाढ़ का चित्रण है - ‘‘गौर करके देखा, करीब एक-डेढ़ फर्लांग दूरी पर पानी में भैंस की लाश बहती चली आ रही थी । पास ही उसकी मृत पाड़ी या पाड़ा भी लहरों में डूबता-उतराता चला जा रहा था । बाबा ने बताया, नित्य ऐसे जानवर बहते दिखाई पड़ते हैं ।’’

- - - - -

‘‘सब एक स्वप्न की भाँति लगता । बीते साढ़े सात दिन जैसे साढ़े सात वर्ष रहे । जिस समय स्टोव पर तैयार मिल्क-पाउडर वाली एक चाय सामने आई तो मेरी चेतना लौट आयी और मालूम हुआ कि मैं अभी इस दुनिया का एक सभ्य आदमी हूँ वरन् जीवन के संकोच ने कितना ही बना दिया था ।’’29 बाद की पंक्तियों में संस्मरण-शैली का प्रयोग देखने को मिलता है। लेखक को बाढ़ के साढ़े सात दिन, साढ़े सात वर्ष के समान महसूस होते हैं । एक ही कहानी में विवेकी राय ने कहानी, रिपोर्ताज एवं संस्मरण तीनों के शिल्प का प्रयोग कर अपने लेखन का लोहा मनवाया है । विवेकी राय की कहानियों में इस गद्यात्मक प्रतिमानों के साथ-साथ काव्यात्मक प्रतिमानों का प्रयोग देखने को मिलता है । प्रतीकों एवं बिम्बों के प्रयोग से विवेकी राय ने अपनी कहानियों में काव्यात्मक सरसता का पुट दे दिया है -

‘‘छप-छप शब्द की वायु से दुखद स्मृति के बादल छँट गये।’’(ध्वनि बिम्ब)

- - - - - - -

उसका जी छटपटाने लगा । आगे पाँच गज का बिच्छू और पीछे तीन रूपये का साँप । ये दोनों उसकी ओर बढ़ने लगे । पाँच गज में कैसे काम चलेगा ? उसकी धोती होगी या मेरी साड़ी , फिर ये तीन-चार रूपये? (बिम्ब)

- - - - - -

‘‘हरे-हरे झुरमुट में उस लाल साड़ी में ढकी सुन्दरता उस प्रकार खिलने लगी । मानो शरद-ऋतु में टेसू वन का प्रतीक लेकर वसन्त आ गया ।’’ (प्रतीक)

- - - - - -

‘‘अब मेरा ध्यान गौहरौर पर गया । गोहरौर अर्थात् गौहरों यानी उपलों की बनी लघु पिरेमिड । यह गाँव का प्रतीक है । जहाँ गाँव, वहाँ बैल, जहाँ बैल वहाँ गोबर, जहाँ गोबर वहाँ गोहरे, जहाँ गोहरे वहाँ गोहरौर।’’ (प्रतीक)

- - - - - -

‘‘गाँव का बूढ़ा बुजुर्ग हूँ । ग्राम संस्कृति का प्रतीक हूँ । क्या हुआ, जो लाठी की तरह सूखा, ठन-ठन, ठठरी वाला, पुवाल की तरह लुंज-पुंज सूखा और बेजान हूँ ।’’34 काव्यात्मक सरसता और ललित निबन्धों का लालित्य विवेकी राय के कहानियों में अपनी समग्र विशेषताओं के साथ मौजूद है । विवेकी राय मूलतः ग्राम्य जीवन के कथाकार हैं, लेकिन ग्रामीण परिवेश का अंकन करते हुए, उन्होंने यथावश्यक काव्यशास्त्रीय एवं साहित्यशास्त्रीय प्रतिमानों का पालन किया है । गद्य साहित्य की विविध विधाओं का शिल्प श्री राय के कथा-साहित्य में अनुस्यूत हो गया है । संवादों का प्रयोग नाट्य साहित्य में होता है ।लेकिन संवादों को नाटकीय विशेषताओं के साथ विवेकी राय ने अपने कथा-साहित्य में स्थान दिया है

 

संवाद-शैली: संवाद योजना का महत्व विशेष रूप से नाट्य साहित्य में होता है लेकिन संवादों का प्रयोग साहित्य की अन्य विधाओं में भी होता है। आचार्य कवि केशवदास द्वारा रचित रामचन्द्रिका में संवाद विशिष्ट कौशल देखने को मिलता है । केशवदास को संवाद-योजना में अद्भुत सफलता मिली है । समर्थ रचनाकार संवादों का प्रयोग अपने साहित्य में किसी न किसी रूप में करते आये हैं । संवादों का महत्व कथा साहित्य में भी है । संवादों के माध्यम से कथा को सिलसिलेवार ढंग से न कही जाकर बीच-बीच में कुछ छोड़-छोड़कर कही जाती है और पाठक अथवा आस्वादक को उस छूटी अथवा अनकही कहानी को अपने-आप समझना या जोड़ना पड़ता है । संवाद कथा साहित्य का एक ऐसा भाग है, जिससे वह परिपुष्ट होता है, पर संवाद की उपयोगिता वहीं तक है, जहाँ तक वह मुख्य कथा के विकास में सहायक सिद्ध होता है । यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि संवाद केवल मुख्य कथा तक ही सीमित नहीं होते। इनका प्रयोग गौण कथाओं में भी होता है । कथा में संवादों का महत्व तब उपस्थित होता है, जब कथा कहने की पूर्ण क्षमता रखते हुए भी कथाकार अपने वर्णन में चमत्कार एवं कलात्मकता लाना चाहता है । चरित्रों को उभारकर रखने और कथानक को आगे बढ़ाने के निमित्त साधन रूप में रचनाकार संवादों का प्रयोग करता है । नाटकीय तत्व प्रधान कथा साहित्य में संवाद की सर्वाधिक उपयोगिता होती है । संवादों का वैशिष्ट्य इस बात में है कि वे परिवेश के अनुकूल हों और संक्षिप्त हों । पात्रों या चरित्रों का वार्तालाप कौशल ही संवादों के प्राण तत्व है । लम्बे संवाद एवं लम्बे

स्वगत कथन नाट्य साहित्य में दोष माने जाते हैं । कथा साहित्य में भी इनका निषेध करना चाहिए । विवेकी राय एक ऐसे कथाकार है, जिनके कथा साहित्य में संवादों का कलात्मक प्रयोग देखने को मिलता है । उपन्यास एवं कहानी दोनों में श्री राय ने कथा को विकास देने के निमित्त एवं सौन्दर्य और लालित्य का चमत्कार उत्पन्न करने के लिए उत्कृष्ट संवादों का सृजन किया है । संवादों की संक्षिप्तता एवं पात्रों के परिवेश के अनुरूप संवादों की भाषा ने सहज रूप में भावों का सम्प्रेषण किया है । विवेकी राय की कहानियों में संवादों की संक्षिप्तता देखते ही बनती है । परिवेश एवं पात्रानुकूल भाषा एवं संवाद कौशल विवेकी राय की कहानियों में देखने को मिलती है –

‘‘इतना हो गया और आपने जाना नहीं ?’’ उसने कहा ।

‘‘नहीं ।’’

‘‘कोई नोटिस वगैरह नहीं ?’’

‘‘नहीं ।’’

‘‘तब भी आपको पता लगाते रहना चाहिए था । देखिये मैं आठ

दिन से पड़ा हूँ । पता नहीं कब क्या हो जाय ।

‘‘इतना कहाँ मौका है ....... ।’’

- - -

‘‘उगिलि ल जहर ! भइया, फेर वोट आयी ।’’

‘‘कैसा वोट जी ?’’ आश्चर्य से मैंने पूछा ।

‘‘तू ए मेले साहब हउअ न ?’’

- - - -

संवादों में लेखक ने भाषाई एवं शिल्पगत विविधताओं का समावेश किया है । जहाँ एक ओर पात्रों के बीच वार्तालाप खड़ी बोली हिन्दी में होता है, वहीं देशज सन्दर्भों के वार्तालाप करते हुए लेखक ने भोजपुरी मिश्रित हिन्दी का प्रयोग किया है । इसके साथ-साथ विवेकी राय ने कहीं-कहीं विशुद्ध नाटकीय शैली में संवादों का प्रयोग किया है -

संपादक - बात सीधी है, एक में से कुछ तोड़कर खा लिया।

अध्यापक - अजी नहीं, दोनों खा गया ।

डॉक्टर - तब लखनऊ का क्या रहा ? दोनों को तोड़कर कुछ-कुछ लिया ।

उर्दू का कवि - ऐसे मौके पर मेरे अब्बाजान क्या करते थे, बताऊँ?

गीतकार - जरूर-जरूर ! वे भी लखनउआ था और माफ कीजियेगा, उनका असर आप पर भी है ।

उर्दू का कवि - वे चख भी लेते थे और ज्यों का त्यों

अखण्ड-अजूठा छोड़ देते थे ।

गीतकार -बस-बस यही हुआ।मेरे मित्र बात करते जाते थे और स्वाभाविक ढंग से दाहिने हाथ की तर्जनी से हल्के-हल्के लड्डू सहलाते जाते थे । ऐसा करते-करते दो-तीन कण जो तश्तरी में झड़ गये, सो उन्हें उठाकर उन्होंने मुंह में डाल लिया और शेष लड्डू जस के तस । धत्तेरे लड्डू और नफासत की ।37

उपरोक्त संवादों पात्रों की भाव भंगिमा एवं वार्तालाप के उतार चढ़ाव का निदर्शन हुआ है । संवादों में ही लेखक ने प्रश्नोत्तर शैली का भी प्रयोग किया है -

प्रश्न - और क्या देश-दशा एकदम भुला दी जाय ?

उत्तर - यही सिखाया है अब तक ? अरे हजरत, आप देश से बाहर हैं? आप अपने देश को समझें । आपकी तरक्की ही देश की तरक्की है ।

प्रश्न - और ग्राम सेवा ?

उत्तर - यही तो आपके धन्धे की मेन लाइन है ।

विवेकी राय ने भाषा-एवं शिल्प की नयी तस्वीर प्रस्तुत की है। संवादों की वाक्पटुता देखते ही बनती है । कुछ संवाद तो ऐसे है कि हमें ऐसा प्रतीत होता है कि पात्र हमारे सामने वार्तालाप कर रहे हैं । संवादों के प्रयोग के साथ साथ विवेकी राय ने लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग अभिव्यक्ति को प्राणवान बनाने के लिए किया है ।

मुहावरे/लोकोक्तियों का शैलीगत प्रयोग: मुहावरा भाषा विशेष में प्रचलित एक विशिष्ट प्रयोग है । मुहावरों का महत्व रूप अथवा व्याकरण की दृष्टि से न होकर अर्थ की दृष्टि से होता है । इसका अर्थ अभिधार्थ से भिन्न और लक्षणा और व्यंजना पर आधारित होता है । ऐसा वाक्यांश जो सामान्य अर्थ तक सीमित नहीं रहता वरन् किसी विलक्षण या लाक्षणिक अर्थ की प्रतीति करता है । इस प्रकार मुहावरा भाषा का लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग है । मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, बोधगम्यता, सरसता और प्रवाह की उत्पत्ति होती है । मुहावरे का प्रयोग स्वतन्त्र रूप से नहीं हो सकता और अनुभवसिद्ध उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं । मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा में नयी ताजगी आ जाती है । मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ भाषा के अनिवार्य अंग हैं । मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ कथा भाषा के अनिवार्य अंग हैं । समर्थ रचनाकार मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से अपने विषय-वस्तु को सहज रूप में सम्प्रेषित करते हैं । विवेकी राय की कहानियों एवं उपन्यासों में भी लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग भाषा के अनिवार्य अंग के रूप में किया गया है । जिस भाषा का प्रयोग हम अपने दैनन्दिन जीवन में करते हैं उसमें भी लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग देखने को मिलता है । जब रचनाकार इसी दैनन्दिन जीवन का चित्रण करता है, तब सहज ही मुहावरों एवं लोकोक्तियों को हम भाषा में स्थान दे देते हैं । विवेकी राय की कहानियों की भाषा में मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ अनिवार्य अंग के रूप में आये हैं -

कलेजे पर साँप लोट गया ।’’ (बड़ा आदमी - 47)

न उधो का लेना, न माधो का देना’ (भूमिधर-60)

लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर ! काला अक्षर भैंस बराबर (लाटरी के रूपये - 100)

जान बची लाखें पाये ।’ (एक दिन रेल हमारी - 36)

छप्पड़ फाड़कर देता है ।’ (काशी का भोज - 142)

सुनते ही पैर तले की जमीन खिसकने लगी ।’ (दीप तले अंधेरा-145)

बिना हर्रे फिटकरी के रंग चोखा हो जायेगा ।’ (आप जन्म से नेता-113)

धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का ।’ (काजल की कोठरी में - 105)

आसमान से गिरकर खजूर पर अटक जाता है ।’ (सिरफल का शर्बत-80)

दाल-भात में मूसलचन्द ।’ (सिरफल का शर्बत - 81)

भीगी बिल्ली हो गयी ।’ (दोस्त एक चूहा - 49)

इस तरह के लोकोक्तियों एवं मुहावरों के प्रयोग से विवेकी राय का कथा-साहित्य अटा पड़ा है । विवेकी राय के कथा-साहित्य के माध्यम से हम सैकड़ों लोकोक्तियों एवं मुहावरों से परिचित हो सकते हैं । कुछ ऐसे भी मुहावरों का प्रयोग विवेकी राय ने किया है, जो विरले ही देखने को मिलते हैं । मुहावरों/लोकोक्तियों के प्रयोग के साथ-साथ विवेकी राय ने लोक जीवन में प्रचलित लोकगीतों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया है । लोक गीतों के साथ-साथ लोक जीवन में प्रचलित दोहों का भी प्रयोग किया गया है - क्षुद्र नदी भरि चलि उतराई । ढो-गंवार शूद्र पशु नारी .... ।’ (नौकर कहानी से उद्धृत) कोउ नृप होहि हमें का हानी चेरि छाड़ि ना होइबि रानी । (गूंगा जहाज कहानी संग्रह से) ये ऐसे दोहे हैं जो लोक जीवन में लोकोक्तियों के रूप में प्रचलित हैं। इनका प्रयोग नित्य प्रति के हमारे वार्तालाप में होता है । छपरा के बाबू धरमचन रसिया - धुआँ पर गाड़ी चलवले बा । (गूंगा हजाज-65) ‘बाबा के हथिया चरेले परदेशवा में - तिला-मूँगा डहके बनरवा के देश । (तिला-मूँगा - 69) लोक-गीतों की पंक्तियों के भी विवेकी राय ने अपनी कथा भाषा का हिस्सा बनाया है ।

भाषा और शिल्प का वैविध्य विवेकी राय की निजी विशेषता है । विवेकी राय एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिनकी ख्याति ग्राम्य जीवन के कथाकार के रूप में है । ग्राम्य जीवन को अभिव्यक्त करते हुए श्री राय ने ग्राम्य जीवन की भाषा को संरक्षित करने का अभिनव प्रयोग किया। विवेकी राय ने अपनी कहानियों के लिए नयी शिल्प- विधि का प्रयोग किया है । एक ऐसी शिल्प विधि जिसमें अन्य विधाओं के शिल्प का सहज प्रयोग देखा जा सकता है । ललित निबन्धों का लालित्यपूर्ण तत्वों का प्रयोग कहानी में पहली बार विवेकी राय ने किया है ।

 

 

Comments

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व