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Showing posts from November, 2024

उसने एक बात पकड़ ली : सारिका साहू

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  उसने एक बात पकड़ ली और मैं भी कमज़ोर हो रो पड़ी उसने अपनी बाहें फैलाई  मुझे स्वतः ही रुलाई आई  उसका ढांढस बांधना  मुझे अंदर तक खंगाल गया वो मुझे अपनी कसम दे गया मेरे दुखों का साझेदार बन गया  मेरी सिसकती आहें भाप गया रो पड़ी मै भी, बच्चों की भांति  जो उसने स्नेह से मेरा दामन थाम लिया मेरी भीतरी वेदना बह गई मैं उससे अपनी पीढ़ा कह गई आज मैने किस्मत को खूब कोसा क्यों नहीं मिला तुम जैसा? उसने पूछा मेरे जैसे क्यों? मैं क्यों नहीं? मैं चुप हो गई मैं अपने भीतर रह गई मैं उसकी वेदना समझ गई यहीं हमारी कहानी ख़त्म हुई।।।।।

उत्सव के बाद की भोर: सारिका साहू

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उत्सव के बाद की भोर कल जितनी चहल पहल थी आज उतनी ही खामोशी है  त्यौहार क्या दिन विशेष ही रहते  उसके बाद फिर वही सब शेष रहते           उत्साह था उमंग थी मन मलंग था          जाने अनजाने  वो सब संग था         वो गहरी काली अमावस्या वाली रात थी         आज  चुप्पी वाली सहर  में वो बात न थी रंगीन आतिशबाजी से अम्बर भी नारंगी  हो गया था विभिन्न रिवाज़ो से वसुंधरा भी  हरी भरी थी दीपों के उजालों से सड़के सजाई गई थी और आज सब वादियां मौन हो गई थी            मंगल मंगल करते आरती संजोए गई थी            मिठाइयों की मीठी महक से रसोई बनाई गई थी             आज जैसे मन में फूलझड़ी स्वयं  बुझा दी गई थी            और अपने उर में सब समेटकर दीवाली पूरी हो गई थी

मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी :सारिका साहू

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 मैं कईं बार तुमको कविताओं में लिखूंगी क्या तुम हर बार मुझे पठन करोगे? तुम्हारे विलक्षण रूप को अपनी  रचना में गढ़ूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय रूप को जान पाओगे? तुम्हारे संग का वह अलौकिक उपहार उजागर करूंगी। क्या तुम उस अवर्णनीय उपहार का स्वरूप समझ जाओगे? तुम्हारे साथ सुसज्जित स्वपन सलोने लिखूंगी  क्या हर बार वही संगी - साथी बने रहोगे। तुम्हारे  सुंदर चरित्र को कवितामय लिखूंगी। क्या तुम वो सुंदर चरित्र चरितार्थ कर पाओगे? मैं हर बार अपनी कविता का विषय तुम्हें ही लिखूंगी। क्या तुम हर बार मेरे चयन को स्वीकार कर पाओगे? हमारे संवाद को कविता में संजोकर रखूंगी  क्या बदलते वक्त के साथ तुम भी स्मरण रख पाओगे? मैं हर दिन तुम्हें अपनी रचना  में प्रश्न करूंगी। क्या तुम सब प्रश्नों के हल बन जाओगे? जीवन के उतार चढ़ाव में ,मैं कईं उदासीन कविता लिखूंगी। क्या तुम मेरे भीतरी वेदनाओं को सहजता से  समझ पाओगे। मैं हर दिन तुम्हारे नाम पर एक कविता प्रेषित करूंगी। क्या तुम अपने हिय में  उन रचनाओं को उतार पाओगे? मैं शायद हर बार उतनी सुंदर रचना न कर सकूं  क्या फ़िर भी मेरी क...