सच के बदलते मायने :यही सच है- मृत्युंजय पाण्डेय
‘ यही सच है ’ मन्नू भण्डारी की सर्वाधिक चर्चित और बोल्ड कहानी मानी जाती है । यह कहानी पहली बार मोहन राकेश के सम्पादन में ‘ नई कहानियाँ ’ पत्रिका के जून 1960 के अंक में प्रकाशित हुई थी । इस कहानी पर निर्देशक बासु चटर्जी ने ‘ राजनीगंधा ’ नाम से एक फिल्म भी बनाई है , जिसने सिल्वर जुबली मनाई । इस फिल्म में संजय की भूमिका में अमोल पालेकर और निशीथ की भूमिका में दिनेश ठाकुर हैं । डायरी शैली में लिखी गई इस कहानी में एक स्त्री के आंतरिक द्वंद एंव ऊहापोह को दिखाया गया है । हिन्दी के कुछ आलोचक मन्नू भण्डारी की दीपा को बहुत बोल्ड मानते हैं । क्या बोल्ड की परिभाषा यही है जो इस कहानी में दिख रही है या दिखाई गई है ? थोड़ी देर के लिए मान लीजिए दीपा की जगह कोई पुरुष है । क्या अब भी आपका नजरिया वैसा ही रहेगा ? नहीं । आप पुरूष को चरित्रहीन से लेकर न जाने किन - किन शब्दों से संबोधित करेंगे । आखिर ऐसा क्यों होता है कि स्त्री और पुरुष दोनो