माँझी! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता
माँझी! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता जल का जहाज़ जैसे पल-पल डोलता माँझी! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता माँझी! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता। (केदार नाथ अग्रवाल)