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मुक्तिबोध की काव्य भाषा एवं परिचय

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मुक्तिबोध :संक्षिप्त परिचय   जन्म : 13 नवंबर 1917, श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : कहानी, कविता, निबंध, आलोचना, इतिहास कविता संग्रह : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल कहानी संग्रह : काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी आलोचना : कामायनी : एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी इतिहास : भारत : इतिहास और संस्कृति रचनावली : मुक्तिबोध रचनावली (छह खंड) निधन 11 सितंबर 1964, दिल्ली मुख्य कृतियाँ https://www.batenaurbaten.com/2022/05/blog-post_11.html    (मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताओं के लिए देखें ) मुक्तिबोध की काव्य भाषा – मुक्तिबोध की काव्य भाषा उनके कथ्य के अनुरूप ही अपने ढंग की है । इसमें कवि के अनुभूत को संप्रेष्य बनाने की अद्भूत शक्ति है ,और वह जीवन के तथ्यों को उजागर करने में सक्षम है ।अभियक्ति   के समस्त खतरे उठाकर उन्होंने पारंपरिक भाषा शैली के मठों और दुर्गों को तोड़कर अपने अरुण कमल वाले उद्देश्य को भाषिक स्तर पर ही सफलता से प्राप्त किया है । उनकी भाषा में जो वैचित्र्य दिखलाई देत

मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएं

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 मुक्तिबोध मूलतः कवि हैं. तार सप्तक के प्रकाशन से मुक्तिबोध साहित्य के व्यापक धरातल पर उदित हुए. तार सप्तक में प्रकाशित उनकी कविताएँ हैं - आत्मा के मित्र मेरे, दूरतार , खोल आंखें, अशक्त, मेरे अंतर, मृत्यु और कवि, पूंजीवादी समाज के प्रति, नाश देवता, सृजन क्षण, अंतदर्शन, आत्म संवाद, व्यक्ति और खण्डहर, मैं उनका ही होता इत्यादि.  इसके अतिरिक्त आपकी प्रकाशित कृत्तियां हैं- चांद का मुंह टेढा, और भूरी - भूरी खाक धूल. दूसरे संग्रह की कविताएँ पहले संग्रह से पहले लिखी गईं हैं. अभिनव संशोधन का प्रारम्भिक काल है. इसकी कविताएँ चांद का मुह टेढा है की भूमिका तैयार करतीं हैं. इसके क्षसरल भाव बोध विरल बिम्बवालियां चांद का मुह टेढा है में जटिल और सघन हो जातीं हैं. इस संग्रह की कविताओं पर छायावाद का संस्कार दृष्टिगत होता है. वे अपनी परिणतियों में आशावादी हैं. चांद का टेढा है की रचनाओं में उसके खण्डित व्यक्तित्व और भी सघन हो उठा है. सर्वहारा क्रान्ति की सम्भावनाओं में और भी तेजी आ गई है. इस संग्रह की कविता अंधेरे में की व्याख्या करते हुए प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने अस्मिता की खोज की बात उठायी है. राम विल