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लोक परम्परा की गहन संवेदना का आख्यानः रसप्रिया

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हिन्दी कथा साहित्य और हिन्दी समाज में अत्यंत घनिष्ठ संबंध देखने को मिलाता है। फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दी साहित्य के एक ऐसे कथाकार हैं, जिन्होंने अपने कथा साहित्य के माध्यम से हिन्दी साहित्य जगत को लोक के राग-रंग से विधिवत परिचित कराया और लोक जीवन की विविध छटाओं को साहित्य के कैनवास पर जीवंत किया। इस दृष्टि से मैला आंचल आपकी और हिन्दी साहित्य की एक महनीय उपलब्धि है। रेणु ने हिन्दी कथा साहित्य को एक नये लोक से ना सिर्फ परिचित कराया वरन जीवन के समस्त राग-विराग-रंग और बदरंग को हमारे समक्ष रखा भी ।आपके उपन्यास मैला आँचल के अतिरिक्त आपकी कहानियों में भी लोक परम्परा की अपूर्व छटा देखने को मिलती है। रसप्रिया आपकी लोक रस ,आस और विश्वास से सराबोर कहानी है, जिसमें लोक परम्परा में लुप्त हो गीतों की गहन चिंता के साथ-साथ लोक विश्वास का अंकन अत्यंत जीवंत रूप में देखने को मिलता है । लोक परम्परा के प्रति गहरी चिंता का भाव रसप्रिया कहानी में  मिरदंगिया के माध्यम से  रेणु ने प्रस्तुत किया है। भाव और भाषा की दृष्टि से यह कहानी अपने आप में विशिष्ट है।  हिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह देखने को

‘पत्नी’कहानी : एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन -रूपेश कुमार -मण्डी (175006) मो. न.-9805391761

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  जैनेन्द्र हिन्दी कथा साहित्य के महान लेखकों में से एक है। जिन्होंने प्रेमचंदोत्तर काल में स्त्री मनोवैज्ञानिकता पर आधारित कहानियों को आधार दिया। जैनेन्द्र अपनी कहानियों में स्त्री मनोयोग का एक मिश्रण प्रस्तुत करते हैं जिन्हें मानसिक कुंठाओं का सामना करना पड़ता है। वे समाज में होते हुए भी समाज से भिन्न कर दी गई है। वास्तविकता का जो मर्म जैनेन्द्र ने अपनी कहानियों में दिया है उसकी तुलना करना थोडा़ असहज प्रतीत होता है। जैनेन्द्र की आंखों ने स्वतंत्र और अस्वतंत्र भारत की तस्वीरें देखी थी। इन तस्वीरों में जैनेन्द्र की न जाने कितनी औरतों की आह को अपनी कलम में ढाल कर , उनकी वेदनओं को काले अंतरिक्ष से धरती पर उतारा है। जैनेन्द्र का जन्म 2 जनवरी 1905 को जनपद अलीगढ़ के कौडियागंज नामक स्थान पर हुआ। जैनेन्द्र के बचपन का नाम आनंदी लाल रखा गया था। जिसे 1911 में जैनेन्द्र में परिवर्तित कर दिया गया। जैनेन्द्र के बचपन का नाम आनंदी लाल रखा गया था। जि