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विवेकी राय की कहानियों की भाषा एवं शिल्प :डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव,एम.ए. (पी.एचडी)

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लोक हमारे जीवन का मूल स्रोत रहा है,जीवन का स्रोत होने के साथ-साथ लोक हमारे समाज और साहित्य का भी उत्स रहा है । हिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हिन्दी का बहुत सा साहित्य लोक के विशाल प्रांगण में रचा गया है । विवेकी राय भी ऐसे ही कथाकार हैं जिनका साहित्य लोक के प्रांगण में पुष्पित और पल्लवित हुआ है ,आपकी कहानियों में लोक जीवन के विविध पक्षों का अनाकन देखने को मिलता है । यथार्थ विवेकी राय की वास्तविक सही और रुचिकर जमीन ‘ गाँव ’ है , जिस पर उनकी अधिकतर अच्छी कहानियाँ खड़ी हैं । गाँव सम्बन्धी कहानीकार की विशाल अनुभव सम्पदा की कथात्मक परिणति न केवल व्यापक और बहुआयामी है , अपितु घनीभूत और संवेद्य भी । बोली-बानी , गाली , लोकोक्ति एवं भाषाई लोच आदि का प्रयोग कर उन्होंने अपनी भाषा को और भी सार्थक एवं सबल बना दिया है । भाषा का वैविध्य उनके कथा-साहित्य का प्राण तत्व है ।   भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है । बिना भाषा के न तो हम विचार विनिमय कर सकते हैं और न ही भावों का सम्प्रेषण । यह भाषा हमारे भाषा जगत एवं विचार जगत का अनिवार्य अंग है । कोई भी विचार या भाव तभी सार्थक होता