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सम्राज्ञी का नैवेद्य-दान :अज्ञेय

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अज्ञेय का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।  हे महाबुद्ध! मैं मंदिर में आयी हूँ रीते हाथ: फूल मैं ला न सकी। औरों का संग्रह तेरे योग्य न होता। जो मुझे सुनाती जीवन के विह्वल सुख-क्षण का गीत- खोलती रूप-जगत् के द्वार जहाँ तेरी करुणा बुनती रहती है भव के सपनों, क्षण के आनंदों के रह: सूत्र अविराम- उस भोली मुग्धा को कँपती डाली से विलगा न सकी। जो कली खिलेगी जहाँ, खिली, जो फूल जहाँ है, जो भी सुख जिस भी डाली पर हुआ पल्लवित, पुलकित, मैं उसे वहीं पर अक्षत, अनाघ्रात, अस्पृष्ट, अनाविल, हे महाबुद्ध! अर्पित करती हूँ तुझे। वहीं-वहीं प्रत्येक भरे प्याला जीवन का, वहीं-वहीं नैवेद्य चढ़ा अपने सुंदर आनंद-निमिष का, तेरा हो, हे विगतागत के, वर्तमान के, पद्मकोश! हे महाबुद्ध!

अहिंसा-बोध का काव्यान्तर : नन्दकिशोर आचार्य (मन एक मैली कमीज है : भवानी प्रसाद मिश्र - से साभार )

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अहिंसा-बोध का काव्यान्तर (चित्र गूगल से साभार ) भवानी भाई से यह मेरी पहली मुलाकात थी। उन्नीस सौ तिहत्तर की गर्मियों की बात है। जयप्रकाश नारायण ने एवरीमेस वीकली' का प्रकाशन शुरू किया था। सम्पादक थे स हो वात्स्यायन 'अज्ञेय' में अप्रैल में 'एवरीमेंस' में चला आया था और वात्स्यायन जी के साथ ही रह रहा था। एक शाम वात्स्यायन जी का मन भवानी भाई से मिलने का हुआ और हम लोग उन के घर पहुंच गये। 'चिति' के सिलसिले में उन से पत्राचार हुआ था और मेरे पत्र के जवाब में उन का उत्साहवर्धक पत्र मिला था और उसी अन्तर्देशीय में उन्हों की हस्तलिपि में दो कविताएँ भी मिली थीं जो 'चिति' के दूसरे अंक में प्रकाशित हुई थीं। मैं तो इसी से मगन था, लेकिन पहली ही मुलाकात में उन के सादे व्यक्तित्व और निश्छल स्नेह ने मुझे अभिभूत कर दिया। यह प्रभाव ( फिर गहराता ही गया। 'एवरीमेंस वोकली' में प्रमुखतः साहित्य संस्कृति से सम्बन्धित पृष्ठों का दायित्व मेरा था। अंग्रेजी अख़बार सामान्यतः हिन्दी की उपेक्षा हो करते हैं, इसलिए वात्स्यायन जो चाहते थे कि 'एवरीमेंस' को इस दिशा में सचेष्ट

मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएं

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 मुक्तिबोध मूलतः कवि हैं. तार सप्तक के प्रकाशन से मुक्तिबोध साहित्य के व्यापक धरातल पर उदित हुए. तार सप्तक में प्रकाशित उनकी कविताएँ हैं - आत्मा के मित्र मेरे, दूरतार , खोल आंखें, अशक्त, मेरे अंतर, मृत्यु और कवि, पूंजीवादी समाज के प्रति, नाश देवता, सृजन क्षण, अंतदर्शन, आत्म संवाद, व्यक्ति और खण्डहर, मैं उनका ही होता इत्यादि.  इसके अतिरिक्त आपकी प्रकाशित कृत्तियां हैं- चांद का मुंह टेढा, और भूरी - भूरी खाक धूल. दूसरे संग्रह की कविताएँ पहले संग्रह से पहले लिखी गईं हैं. अभिनव संशोधन का प्रारम्भिक काल है. इसकी कविताएँ चांद का मुह टेढा है की भूमिका तैयार करतीं हैं. इसके क्षसरल भाव बोध विरल बिम्बवालियां चांद का मुह टेढा है में जटिल और सघन हो जातीं हैं. इस संग्रह की कविताओं पर छायावाद का संस्कार दृष्टिगत होता है. वे अपनी परिणतियों में आशावादी हैं. चांद का टेढा है की रचनाओं में उसके खण्डित व्यक्तित्व और भी सघन हो उठा है. सर्वहारा क्रान्ति की सम्भावनाओं में और भी तेजी आ गई है. इस संग्रह की कविता अंधेरे में की व्याख्या करते हुए प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने अस्मिता की खोज की बात उठायी है. राम विल