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विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व

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विधि के लिये भाषा का महत्वः- विधि भाषा के माध्यम से निर्मित किया जाता है और तर्क इससे नियंत्रित होता है। अधिवक्ताओं का कार्य शब्दों के साथ जुड़ा है। शब्द अधिवक्ताओं के शिल्प की कच्ची सामग्री है। शब्द विचारों के उपकरण ही नही बल्कि वे उन्हें नियंत्रित भी करते है। अधिवक्ता भाषा संरचना की योजना अनुसार ही सोचता है। विधि के वाहक के क्षेत्रों में शब्दों का प्रयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है। शब्द अपने आप में उद्देंश्य नही है बल्कि वे उद्देश्यों की पूर्ति के साधन है। एक अधिवक्ता की भाषा और व्यवहार ही उसे अच्छा अधिवक्ता बनाती है। अच्छा अधिवक्ता वही होता है जिसकी भाषा सरल, सहज, प्रभावशाली और स्पष्ट हो। शब्द के अर्थ विधिक वास्तविकता को ज्यादा निश्चित अन्तर्वस्तु प्रदान करते है। भाषा के माध्यम से विधि अपने क्रियात्मक संसाधनों द्वारा सामाजिक नियंत्रण स्थापित करता है। उदाहरण के लिये ‘अधिकार’, ‘कर्तव्य’ और ‘अपकृत्य’ जैसे शब्द सामाजिक नियंत्रण के वाहक है। भाषा के प्रयोग का दायरा अतिविस्तृत है। विधि उसका केवल एक विशेषीकृत अंश है। विधि में भाषा दो उद्देश्यों की पूर्ति करती है। प्रथम

सामाजिक परिवर्तन और हिन्दी भाषा : डॉ. अमरेन्द्र श्रीवास्तव

 इक्कसवी सदी में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नित, नये प्रयोग एवं आविष्कार हो रहे है। संचार के साधनों का तेजी से प्रचार-प्रसार हो रहा है, ऐसे समय में एक नये तरह के समाज का विकास निरन्तर तीव्र गति से हो रहा है। इस समाज के वैचारिकी एवं जीवन स्थितियों को जानने, समझने के लिए नये प्रकार के समाज विज्ञान का निर्माण हो रहा है। समाज में परिवर्तन के साथ-साथ एक नये सामाजभाषिकी की चिन्तन परम्परा भी विकसित हो रही है। भाषा हमारे सामाजिक सह-अस्तित्व एवं सांस्कृतिक संवहन का एक सशक्त माध्यम है। मनुष्य की आदिम-व्यवस्था से लेकर अब तक अनेकों सामाजिक, संास्कृतिक एवं भाषाई परिवर्तन हुए हैं। समाज एवं संस्कृति से भाषा अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ तथ्य है। हमारी संास्कृति स्थितियों में परिवर्तन ने अनेकों भाषा रूपों का निर्माण किया है। साहित्य, चिन्तन, विज्ञान, विधि एवं चिकित्सा के क्षेत्र में सामाजिक दशाओं  के परिवर्तन से भाषा का रूप एवं स्वरूप बदलता रहा है। ग्रन्थ चाहे ज्ञान की किसी भी शाखा का हो उसकी भाषा सदा से बदलती रही है। चाहे वह यात्रा संस्कृत से लेकर हिन्दी तक ही हो, या रोम, लैटिन से लेकर अंग्रेजी या आध

साहचर्य जनित प्रेम की अभिनव कथा :आकाशदीप : डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव

आधुनिक हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने वाले रचनाकारों में जयशंकर प्रसाद का नाम बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । भारतेन्दु हरिश्चंद हिन्दी को जिस तरह नयी चाल में ढाल रहे उससे हिन्दी साहित्य के लिए एक विस्तृत भूमि तैयार हो राही थी । इस नयी भाषा ने हमारे समाज में एक नए तरह के जागरण का बोध निर्मित किया । जिसने हिन्दी साहित्य में वैविध्यपूर्ण लेखन की परम्परा के विकास में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई । हिन्दी भाषा के नये रूप ने साहित्य की विविध विधाओं में लेखन का मार्ग प्रशस्त किया । जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य को बहुविध समृद्ध किया । कविता ,नाटक ,निबंध ,उपन्यास ,कहानी और आलोचना सभी विधाओं में आपने अपनी लेखनी चलाई । जयशंकर प्रसाद को कवि एवं नाटककार के रूप में विशेष ख्याति मिली है ,लेकिन उनका अन्य विधाओं में लेखन में भी कम महत्वपूर्ण नहीं है ।   कहानी   के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभकर्ता के रूप में स्वीकृत हैं   । सन्‌ 1912 ई. में ' इन्दु ' में आपकी पहली कहानी ' ग्राम ' प्रकाशित हुई। उनके पाँच क