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मेरी संवेदना

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कुछ कहा करो  कुछ सुना करो  कहने सुनने से  दु:ख कम हो जाते हैं कभी-कभी किसी को  सिर्फ सुन लेना  हो सकता है कोई  मुरझाया शख्स  मुस्कुरा दे और  कभी-कभी कह देने मात्र से  मन हल्का महसूस करता है।  इसलिए कुछ कहना और सुनना जरुरी है  और हाँ!  बहुत आसान है  कहना-सुनना कहने-सुनने से ही  बनतीं हैं बातें और चलती है दुनिया।  (अमरेन्द्र) याद है मुझे अब भी  वो सर्दियों की बरिश  चाय की चुस्कियां तेरे नर्म हाथों की आलू के पराठे,  और गर्मियों की लू  वो रिक्शे की सवारी  वो तेरी जुल्फों का लहराकर  मेरे मन को बहकाना  वो तेरी खुशबू का  मेरे सांसों में उतरना ।  याद है मुझे अब भी ,  वो आखिरी बार मिलना  चाय से शुरू हुई मोहब्बत का  स्वीटकार्न सूप पर खत्म होना।  ना जाने कितनी  याद होंगी तुम्हें- उन लम्हों की बातें और बहुत सी बातें।  वो एक कहानी - जो अधूरी खत्म हो कर भी  एहसासों जिन्दा है। (अमरेन्द्र) कुछ एहसास लिखने हैं मुझे लेकिन जब भी लिखना चाहा-  अक्सर शब्द उस एहसास को  लिखने से मुकर गए ।  और वो एहसास लिखे ही नहीं  जा सके - और ना ही कहे जा सके।  क्या ऐसे एहसास  रह जायेंगे हमारे भीतर / और उन एहसासो

कुछ किस्से, जो आए मेरे हिस्से

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दुनियादारी अब और नहीं, इसी दुनिया की भीड़ में इंसान अकेला और नितांत अकेला होता जा रहा है। इस दुनिया की भीड़ से एकान्त का कलरव बहुत ही प्रीति कर है। जहां एक ओर स्मृतियों का जंगल उगा हुआ है और दूसरी ओर उस जंगल के में निनाद करते हुए झरने और नदी सा प्रवाह। ऐसा प्रवाह जिसे भविष्य और भवितव्य की चिंता और वर्तमान की परवाह नहीं , और सामाजिक नीति नीति के निर्वहन का बंधन नहीं। एक ऐसा एकान्त जिसमें मन को रवाना आसान तो नहीं ,लेकिन अगर मन रम गया तो दुनिया और दुनियादारी कहां इसकी भी फिक्र नहीं। चलो कोशिश करते हैं मन को उसी दुनिया में रमाने की जहां बेपरवाही और बेपरवाही हो, रमण और एकान्त का रमण ही प्रधान हो। चलो अब किसी और शहर चलते हैं , बहुत हो गए दोस्त और दुश्मन इस शहर में  कुछ नए दोस्त , दुश्मन बनाते हैं  चलो अब किसी और शहर में बसते हैं  कुछ सलीके नए होंगे  कुछ तरीके नए होंगे  कुछ ख्वाब नए होंगे  कुछ अंदाज नए होंगे । ये पुराने अंदाज बदलते हैं चलो अब नए शहर में रहते हैं। मां - तेरी बहुतेरि बातें जेहन में उभर आतीं हैं आज भी यही महसूस होता है। बचपना गया ही नहीं अक्सर तेरी बातें अनसुना कर देता था