बाल मनोविज्ञान का संवेदन:पाजेब (डॉ. अंगद कुमार सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर , जवाहरलाल नेहरू पी.जी. कॉलेज, बासगाँव ,गोरखपुर)
धरती पर मानव के जन्म लेने के साथ - साथ कथा ने भी जन्म लिया है। मनुष्य की सहजन्मा और सहयात्री कथा ने आरम्भतः मौखिक किस्सा - कथा के रूप में अपना प्रकटन किया , कालान्तर में लिपि के विकास और मुद्रण आविष्कार के फलस्वरूप लिखित रूप में अपनी उपस्थिति का अनुभव कराया। यदि कहा जाय कि कथासृष्टि मानवसृष्टि के साथ - साथ चलती रही है तो इस निष्कर्ष पर कोई भ्रान्ति - प्रश्न नहीं खड़ा होनी चाहिए। कहानी या कथा अनादिकाल से सम्पूर्ण जगत में सर्वत्र विद्यमान रही है। प्रागैतिहासिक साहित्य से गुज़रते हुए कहानी कभी धार्मिक रूप में मिली तो कभी वीरगाथा रूप में , कभी उपदेशात्मक गाथा का दामन पकड़ा तो कभी पुराणों व बाह्मण ग्रन्थों में उपलब्ध हुई। संस्कृत - वाङ्मय में कहानी को कथा या आख्यायिका के नाम से अभिहित किया गया है। हिन्दी में कहानी - सृजन की प्रेरणा का स्रोत संस्कृत कथा या आख्यायिका से माना जाता है। हिन्दी गद्य की जितनी भी विधाएँ हैं सभी में सबसे सशक्त और प्रभा