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वर्तनी विचार

हिन्दी लिखने वाले अक़्सर  *'ई' और 'यी' में,*   *'ए' और 'ये' में*  और  *'एँ' और 'यें'* में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...। कहाँ क्या इस्तेमाल होगा❓इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...। 🔸 *जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं...*  जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...। 🔹इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है...  इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...।  इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...।  'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है...  मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...। क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...? ( 'मिलाई' ग़लत है...।) आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...। ( 'जताई' ग़लत है...।)  उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है)  *अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।*  बच्चों ने

भाषा व्यवहार

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  भाषा हमारे जीवन का मूल आधार है। भाषा का माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। भाषा को लेकर बहुत से आग्रह लोगों के मन में देखने को मिलते हैं, भारत एक बहुभाषी देश है । विविधता में एकता हमारे संस्कृति और सभ्यता प्राण तत्व है और यही वह सूत्र है जिसके द्वारा हम सदियों से अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान समय में भाषा को लेकर लोगों के मन में बहुत ह भ्रांतियां हैं। भाषाई कुलीनता ने हमारे भाषिक और सामाजिक ताने-बाने को बहुत हद तक प्रभावित किया है। भाषिक कुलीनता कोई नई बात नहीं है, समाज में कुछ लोग अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए कुलीन भाषाओं का प्रयोग करते हैं, लेकिन यहां यह समझना आवश्यक होगा कि भाषा जब भी कुलीनता के दायरे में बंधी है तो तो वहां उसकी गति प्रभावित हुई है भाषा की प्रकृति ही प्रभावमान है। भाषा के बारे में कुछ बुनियादी बातें हैं,जो निम्नलिखित है-.              1. भाषा विचार विनिमय का साधन है। 2. भाषा अर्जित संपत्ति है हम समाज में रहकर भाषा सीखते हैं और व्यवहार करते हैं। 3. भाषा की प्रकृति निरंतर परिवर्तनशील ह

असाध्य वीणा के अभिव्यक्ति पक्ष पर प्रकाश डालिए .

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  अभिव्यक्ति पक्षः भाषा अज्ञेय ने मानवीय व्यक्तित्व की व्याख्या में भाषा को अनिवार्य तत्व माना है। भाषा उनके लिए माध्यम नहीं अनुभव भी है। अज्ञेय के अनुसार  सर्जनात्मकता की समस्या से सतत् जूझने वाले रचनाकार के लिए यह उचित है कि वह भाषिक सर्जन की क्षमता को गहरे ढंग से समझे। अज्ञेय की अधिकांश कविताओं मे भाषा और अनुभव के अद्वैत को व्याख्याथित करने का प्रयास देखने को मिलता है। असाध्य वीणा इसका अपवाद नहीं है। असाध्यवीणा की भाषा का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है यहॉं बिम्बों का प्रयोग, लोक भाषा के शब्दों का प्रयोग, मौन की सार्थक अभिव्यक्ति और संस्कृत निष्ठ शब्दावली  से परिपूर्ण भाषा दृष्टिगत होती है। भाषा के संबन्धा में अज्ञेय ने स्वयं लिखा है- मै उन व्यक्तियों में से हूॅं और ऐसे व्यक्तियों की संख्या शायद दिन-प्रतिदिन  घटती जा रहीं है, जो भाषा का सम्मान करते हैं, और अच्छी भाषा को अपने आापमें एक सिद्धि मानते है। अज्ञेय के लिए अच्छी भाषा का अर्थ अलंकृत या चमकदार भाषा नहीं है, वरन् अच्छी भाषा की अच्छाई यही है  िकवह भाषा  और अनुभव के अद्धैत का स्थापित करे और ऐसी हमें अज्ञेय की लगभग सभी कविताओं में

अनुच्छेद लेखन

  अनुच्छेद लेखन के महत्वपूर्ण बिन्दु - 1.अनुच्छेद लेखन के लिए हमें शब्दों का बेहतर संयोजन आना चाहिए. 2. भाषा और व्याकरण का व्यवहारिक बोध आवश्यक है. 3. अनुच्छेद लेखन के लिए बहुत से पाठों का अध्ययन आवश्यक है. 4. पढना ही लिखने की सफलता की कुंजी है.

अज्ञेय की काव्यगत विशेषताएँ

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सन् 1932 में ब्रिटेन में माइकेल राबर्टस ने न्यू सिगनेचर्स नामक एक काव्य संग्रह प्रकाशित किया था। इसमें आडेन, एम्पसन, जान लेहमन, स्पेन्डर आदि की रचनांए संग्रहीत थीं। इन कवियों ने परम्परागत काव्य पद्धतियों को अधूरा समझकर नई दिशाओं की खोज की; पुराने के प्रति असन्तोष तथा नए के अन्वेषण में सभी संलग्न थे। अज्ञेय द्वारा प्रकाशित तार सप्तक 1943  की भूमिका में न्यू सिग्नेचर्स की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। 1947 में अज्ञेय द्वारा प्रकाशित ‘प्रतीक’ पत्र इस काव्यान्दोलन को पुष्ट करता है। https://youtu.be/u-AAd-8Ud1M प्रयोगवाद शब्द का  प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी ने अपने निबन्ध प्रयोगवादी रचनाएं में किया। इस निबन्ध में मुख्यतः तार सप्तक की समीक्षा की गई है, जिसमें उन्होने लिखा है कि पिछले कुछ समय से हिन्दी काव्य क्षेत्र में कुछ रचनाएं हो रही है, जिन्हें किसी सुलभ शब्द के अभाव में प्रयोगवादी रचना कहा जा सकता है। दूसरा सप्तक की भूमिका में अज्ञेय ने बाजपेयी का उत्तर देते हुए तार सप्तक की रचनाओं को प्रयोगवादी कहना स्वीकार नहीं किया है। प्रयोग का कोईवाद नहीं हैं। अतः हमें प्रयोगवादी कहना उ

बेबाक राय : प्रो. दिलीप से अमरेन्द्र श्रीवास्तव की बातचीत (2008-प्रस्थान से साभार )

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दिलीप सिंह से अमरेन्द्र श्रीवास्त की बातचीत - प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक, साहित्यकार, उत्तर प्रदेश रत्न से सम्मानित, उच्च एवं शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास) के कुलसचिव प्रो० दिलीप सिंह भाषा विज्ञान के अप्रतिम विद्वान है। हिन्दी हिन्दर क्षेत्र में हिन्दी की सामाजिक अस्मिता की अलख जगाने वाले विचारक है। इस समय जब हिन्दी में भा चिन्तन या तो सवयस्त हो गया है या स्तरहीन तब दिलीप सिंह की महत सक्रियता आश्वस्त करती है। उन्होंने भाषा का समाजशास्त्र अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान पर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जो भाषा विज्ञान के क्षेत्र में दुर्लभ है। भाषा अनुरक्षण और भाषा विस्थापन हिन्दी की सामाजिक अस्मिता पर लगातार विन्तन मनन करने वाले प्रति आलोचक है। प्रस्थान की ओर से अमरेन्द्र श्रीवास्तव ने उनसे  बातचीत की है- हिन्दी साहित्य को ही आपने अपने उच्च शिक्षा के निमित्त क्यों चुना ?   इसमें सवाल चुनने का नहीं रुचि का है, रुचि मेरी सदैव से रही है। इसका कारण है कि स्कूली जीवन में ही हिन्दी की पुस्तकें, पत्रिकाएँ पढ़ने की रूचि । प्रेमचन्द का साहित्य, शरत चन्द का अनूदित साहित्य, चन्द्रकान्ता

निबंधकार अज्ञेय

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     अज्ञेय आधुनिक हिंदी साहित्य के अत्यंत विशिष्ट लेखक रहे हैं । वह आधुनिक दृष्टि और अनुभव से संपन्न एक विचारक, कवि के रूप में सर्वमान्य हैं । अज्ञेय  को नई कविता का शालाका पुरुष कहा जाता है । कविता ,उपन्यास ,कहानी के अतिरिक्त अज्ञेय ने अनेक महत्वपूर्ण निबंधों की भी रचना की है । इनके निबंध को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-एक साहित्य चिंतन संबंधी विचारात्मक निबंध, दो यात्रा परक निबंध और तीन आत्माव्यंजक निबंध । सबरंग और कुछ राग , आलवाल, भवंती, अंतरा ,लिखी कागज कोरे ,अद्यतन जोगलिखी, धार और किनारे अज्ञेय के महत्वपूर्ण निबंध संग्रह हैं । इनके निबंधों में बौद्धिक संवेदना का प्रखर चिंतन और भाषा का सौंदर्य पूर्णरूप देखने को मिलता है । इनके निबंध के विषय में विद्यानिवास मिश्र जी कहते हैं कि- “ अज्ञेय ने हिंदी निबंध को सांस्कृतिक संवेदना के संप्रेषण का माध्यम बनाया और प्रमाणित किया कि व्यक्तित्व संपन्नता और अहं का विसर्जन कविता की ही तरह निबंध का मौलिक गुण भी है । बौद्धिक और रागात्मक संवेदना में गहरे रचे हुए अज्ञेय के निबंध सच्चे अर्थों में निबंध कहे जा सकते हैं, जिनमें बंधन और मुक्ति

भाषा का सामान्य परिचय(General Introduction to Language)

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  भाषा का सामान्य परिचय-( General Introduction to Language )- मान व एक सामाजिक प्राणी है। वह मिलनसार प्रवृत्ति का प्राणी है और एक दूसरे से आसानी से घुलमिल जाता है। वह भाषा के माध्यम से अपनी भावनाओं, अनुभूतियों एवं विचारों का एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान करता है। ऐसा कर मनुष्य एक दूसरे के साथ सम्बन्ध निर्मित करते हैं और इस तरह समाज के वास्तविक रूप का निर्माण होता है। भाषा मानव सम्बन्धों का अनुबन्ध बनाकर  विधिक मुद्दे उत्पन्न करती है। इस तरह भाषा विधि का माध्यम बन जाती है। वर्तमान समय में अंग्रेजी भाषा विश्व में विशिष्ट दर्जा रखती है। 23 देशों में अंग्रेजी बहुमत की प्रथम भाषा बन गयी हैं। 50 देशों में उनकी देशज ( Indigeneous ) प्रथम भाषा के साथ शासकीय अथवा संयुक्त शासकीय भाषा का स्थान ग्रहण कर चुकी है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क का माध्यम होने के कारण अंग्रेजी का वैश्विक ( Global ) महत्व हो गया है। अंग्रेजी भाषा की सरलता एवं तरलता ने इसे विश्व-व्यापी होने में विशेष योगदान दिया। भाषा का प्रारम्भ, विकास एवं विस्तार - भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में कई मत हैं-  भाषा की  उत्पत्ति के सम्बन्ध म

भाषा और व्यक्तित्व

     भाषा का संसार अपने आप में बहुत ही व्यापक और विस्तृत है । भाषा अपने व्यक्तित्व में बहुआयामी एवं वैविध्यपूर्ण है । भाषा के होने की सबसे बड़ी सार्थकता उसके चेतन होने में है । भाषा अपने स्वरूप में चर है, जो निरंतर समय और समाज के अनुरूप प्रवाहित होती रहती है । आज के तकनीकी और प्रचंड भौतिकता के दौर में भाषा बहुरूपी होती जा रही है ,क्योंकि भाषा एक साथ कई स्तरों पर सक्रिय रहती है । भाषा की यही सक्रियता उसे समय की यात्रा में आगे जाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थतंत्र के मोर्चों पर भाषा का नियोजन एक महत्वपूर्ण भाषा कार्य है । इन सभी आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए हिंदी भाषा निरंतर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है । हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा लोक जगत के अनुभवों का सामंजस्य ई-जगत के बड़ी आसानी से कर रही है । हिंदी वर्तमान में तेजी से विकसित हो रही है ,इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हिंदी की उदारता है । भाषिक अधिग्रहण के कारण आज हिंदी में दुनिया भर की भाषाओँ के शब्द अटे पड़े हैं । भाषिक उदारता और निरंतर परिवर्तन की प्रकृ