समकालीन कथा साहित्य में नारीवाद: एक दृष्टि( सुश्री सुप्रिया सिंह शोधार्थी- राँची विश्वविद्यालय, राँची)
समकालीन शब्द ‘सम’ उपसर्ग तथा ‘कालीन’ विशेषण के योग से बना है। सम उपसर्ग का प्रयोग प्रायः साथ-साथ के अर्थ मे होता है। ‘समकालीन’ का अर्थग्र्रहण किया जाता है ‘समय’ के साथ’। हिन्दी कथा साहित्य ने आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल आधुनिक काल से होकर समकालीन साहित्य तक अपना सफर तय किया। आदिकाल, भक्तिकाल और रीतिकाल में काव्य अपने चरम पर पहुँचा, लेकिन आधुनिक काल से लेकर समकालीन समय में गद्य विधा अपना परचम लहरा रही है। समकालीन होने से तात्पर्य- अपने समय के महत्वपूर्ण समस्याओं उनसे उत्पन्न तनावों और चिंताओं को झेलते हुए उनके समस्या समाधान की ओर दृष्टि करते हुए, अपनी सर्जनात्मक क्षमता द्वारा अपने होने का एहसास समाज को दिलाना। हिन्दी साहित्य में सन् 1960 ई0 के बाद के साहित्य को ‘समकालीन साहित्य’ कहा जाता है। आज केवल पुरूष ही नहीं महिला लेखिकाओं ने भी अपने साहित्य सृजन के माध्यम से समाज को नयी दृष्टि देने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है। 1960 के बाद महिला कथाकार बड़ी चतुराई से समाज की विषमताओं का मुँह तोड़ जवाब देने साहित्य में उतरी और समकालीन महिला लेखन परम्परा का सूत्रपात किया। पुरूष लेखकों के साथ कंधे से