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खुदा सही सलामत है का मर्म : रवीन्द्र कालिया

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  स्वाधीनता आन्दोलन एवं स्वाधीन भारत सामान्य मध्यवर्गीय जीवन के द्वारा देखा जाने वाला स्वप्न है। इस स्वप्न के पूर्ण होने और उसके बाद मोह भंग की स्थितियों ने आम आदमी की व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। स्वाधीनता आन्दोलन में आम आदमी ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया स्वाधीनता आन्दोलन व्यापक रूप ग्रहण कर जमीनी हकीकत बना तो उसके पीछे इस मध्यवर्ग की संवेदन शीलता ही थी, मध्यवर्ग एक ऐसा वर्ग है जो सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी होता है। समाज की कोई भी घटना इस वर्ग को व्यापक स्तर पर प्रभावित करती है। इस वर्ग को समाज का सबसे चेतनशील वर्ग कहें तो अतिश्योक्ति न होगा। उपन्यास के आरम्भ में ही लेखक आजादी के बाद की स्थितियों का चित्रण करता है     ‘‘इस बीच देश ने बहुत बड़ा तरक्की की। मगर इस गली का ही दुर्भाग्य कहा जाय कि देश में हो रहे विकास कार्यों का बहुत हल्का प्रभाव पड़ रहा था। गली के औसत आदमी के घर में आज भी न पानी  का नल था, न बिजली का कनेक्शन। शाम होते ही घरो में जगह-जगह जुगुनुओं की तरह ढिबरीयाँ टिमटिमाने लगती। अगर भूले-भटके गली में दो जगह सड़क के किनारे बल्व लगा भी दिये  जाते तो बच्चे लोग तब तक अपनी निशानेबाजी की आ