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त्यागपत्र : एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास ( जैनेन्द्र)

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     साहित्य , भाषा और समाज का अत्यन्त घनिष्ट संबंध रहा है समाज के चितवृत्ति के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य और उसकी भाषा पर भी पड़ता है। यह प्रभाव साहित्यिक विधाओं का रूप परिवर्तन भी तय करता है। हमारी वैदिक - पौराणिक परम्परा में जहां संवादों , महाकाव्यों का महत्व रहा है। वहीं आज साहित्य का रूप बहुत बदल चुका है। आख्यायिका परम्परा का साहित्य आज निबन्ध , कहानी , कविता , उपन्यास आदि जैसी अनेक विधाओं में परिवर्तित हो चुका है यह परिवर्तन सामाजिक चितवृत्ति में होने वाले परिवर्तन के कारण ही होता रहा है। समाज की भावदषा एवं मनोदशा में परिवर्तन के साथ-साथ भाषा का रूप भी परिवर्तित होता रहता है।               साहित्य , भाषा और समाज के इन्हीं संबंधों के परिणाम स्वरूप भाषा भी अपनी यात्रा तय करती है अपने आरम्भिक रूप से लेकर अब तक हिन्दी भाषा , के रूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं। यह परिवर्तन काव्य भाषा एवं गद्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठा के साथ-साथ सूक्ष्म भावात्मक अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में भी दृष्टिगत होती है। गद्य भाषा के रूप में सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण रूप औपन्यासिक भाषा का है। औपन्यासिक भाषा में काव

दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक भावों का आख्यान-शेखरः एक जीवनी

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शेखर :एक जीवनी की मनोवैज्ञानिकता- बाल मनोविज्ञान , युवावस्था की जिज्ञासा और मनोसंवेग, सामाजिक जीवन का अस्वीकार,  शिल्प विधान - पूर्व दीप्ति शैली, मनोविश्लेषण शैली, एकालाप ,आत्म कथात्मक शैली. भाषा - मनोविश्लेषण परक, काव्यात्मक, संवाद परक और गहन विचारात्मक भाषा. अज्ञेय शब्दों से कम उसकी भंगिमा और बनावट पर ज्यादा जोर देते हैं. हिन्दी कथा साहित्य के इतिहास में जीवन जगत के बाह्य यथार्थ के साथ-साथ मानव मन के अन्तर्जगत के आलोड़न-बिलोड़न को चित्रित करने की प्रक्रिया का आरम्भ जैनेन्द्र ने किया। सामाजिक घटनाओं और परिस्थितियों का प्रभाव हमारे जीवन के साथ ही हमारे मन पर भी पड़ता है। मानव मन की विविध स्थितियों का गहन पड़ताल और उसको साहित्यिक फलक पर उभारने की दृष्टि से हिन्दी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासों का विशेष महत्व है। मनोवैज्ञानिक तत्व तो हिन्दी के अधिकांश उपन्यासों में मौजूद है; लेकिन समग्रता मे पात्रों के मन की गहन पड़ताल और उसे औपन्यासिक कथावस्तु के रूप में प्रस्तुत करने की परम्परा का निर्वहन मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में देखने को मिलता है। मनुष्य के अन्तर्जगत को चित्रित करने की परम्परा का आरम्भ जैनेन्