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लोकप्रिय बनाम गंभीर साहित्य

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आजकल लोकप्रिय कवि और रचनाकारों की बहुत बात हो रही है। और उन्हें विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में ध्यान देने को लेकर तरह-तरह के वाद विवाद नित्य प्रति सामने आ रहे हैं। आज के समय में विवाद करना एक संस्कृति बन गई है कहीं भी कोई निर्णय लिया जाए उसके विरोध में कई लोग खड़े हो जाते हैं और अपने अनुभव और संचित ज्ञान के सहारे उसे गए  गलत ठहराने लगते हैं। ऐसा कितना तर्कसंगत है हमें यह सोचना होगा की पाठ्यक्रमों के बाहर इतना कुछ लिखा और पढ़ा जा रहा है। पाठ्यक्रम में शामिल किए गए पाठ पढ़कर एक विद्यार्थी  कुछ सीखता है  और उसे व्यवहारिक जीवन में उपयोग कर यह जान पाता है कि कैसे हम साहित्य सर्जन करें और लोकप्रिय हो जाएं । यह तो हमें समझना होगा की आज की शिक्षा लोगों को रोजगार के लिए दी जा रही है, या शिक्षा का यह उद्देश्य है कि लोग उस शिक्षा के माध्यम से अपनी रोजी-रोटी चला सकें । ऐसी में यदि ऐसी में यही विद्यार्थी लोकप्रिय साहित्य पढ़कर कुछ ऐसा लिखने की ओर उन्मुख होता है कि वह भी ऐसे साहित्य का सृजन करें जो लोकप्रिय हो और उसे अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए साहित्य सृजन के अलावा और कोई कार्य न कर

प्राकृतवाद

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प्राकृतवाद प्राकृतवाद अंग्रेजी के नेचरलिज्म का हिन्दी रूपान्तर है। यह प्रकृतिवाद से भिन्न है जिसका अर्थ प्रकृति-सम्बन्धी काव्य और साहित्य से होता है। साहित्य और कला के अन्य अनेक आन्दोलनों के समान इस आन्दोलन का भी प्रारम्भ और विकास फ्रान्स में हुआ। यह एक प्रकार से यथार्थवादका समकक्ष आन्दोलन है। इसकी मान्यताओं के अनुसार आत्मा या अन्य कोई अलौकिक सत्ता नहीं है। जो कुछ हो रहा है वह सब प्रकृति के द्वारा ही संचालित है, पारलौकिक सत्ता या शक्ति के द्वारा नहीं प्राकृतवादी विचारधारा का आरम्भ सन् 1830 की फ्रान्सीसी क्रान्ति के बाद हुआ यथार्थवाद की अपेक्षा यह सामाजिक परिवेश को लेकर चला और इसके द्वारा पूँजीवादी वैभव विलास के वातावरण में मानव प्रकृति के अन्दर समाविष्ट विकृतियों का विश्लेषण भी किया गया। यथार्थवाद केवल उतना ही चित्रण करता है। जितना प्रत्यक्ष होता है। उसका दृष्टिकोण तटस्य रहता है और अपनी निजी भावनाओं का चित्रण कवि उसमें नहीं करता, परन्तु इसके विपरीत प्राकृतवादी कलाकारों की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व भी उभरकर आता है। इसके साथ ही साथ साहित्यकार का जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण होता है वह भी

प्रत्यय (Suffix)की परिभाषा

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  जो शब्दांश , शब्दों के अंत में जुड़कर अर्थ में परिवर्तन लाये , प्रत्यय कहलाते है। दूसरे अर्थ में-   शब्द निर्माण के लिए शब्दों के अंत में जो शब्दांश जोड़े जाते हैं , वे प्रत्यय कहलाते हैं। प्रत्यय दो शब्दों से बना है- प्रति+अय। ' प्रति ' का अर्थ ' साथ में , ' पर बाद में ' है और ' अय ' का अर्थ ' चलनेवाला ' है। अतएव , ' प्रत्यय ' का अर्थ है ' शब्दों के साथ , पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला। प्रत्यय उपसर्गों की तरह अविकारी शब्दांश है , जो शब्दों के बाद जोड़े जाते है। जैसे- पाठक , शक्ति , भलाई , मनुष्यता आदि। ' पठ ' और ' शक ' धातुओं से क्रमशः ' अक ' एवं ' ति ' प्रत्यय लगाने पर पठ + अक= पाठक और शक + ति= ' शक्ति ' शब्द बनते हैं। ' भलाई ' और ' मनुष्यता ' शब्द भी ' भला ' शब्द में ' आई ' तथा ' मनुष्य ' शब्द में ' ता ' प्रत्यय लगाने पर बने हैं। प्रत्यय के भेद मूलतः प्रत्यय के दो प्रकार है - (1) कृत् प्रत्यय (कृदन्त) ( Agentive) (2) तद्धित प्रत्यय ( Nomi