आचार्य रामचंद्र शुक्ल के साहित्यिक परिचय तथा उनकी कृतियां( डा. वीना सिंह )



आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर , 1884- 2 फरबरी 1941) हिन्दी  आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास  जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना  का सूत्रपात भी उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबंध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार सम्बंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्त्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की।                

 शुक्ला जी का व्यक्तित्व गंभीर था उनकी गंभीरता के भीतर विनोद प्रियता अंतः सलीला की भांति बहती थी उन्होंने केवल प्राचीन का गुण अध्ययन मनन और चिंतन मात्र ही नहीं किया था बल्कि नए-नए अंतः स्थल में गोता लगाकर उसे देख परख कर अपनाने का प्रयास किया था जो इस धरती की परंपरा के अनुरूप हो और जिसका उपयोग और पियो साहित्य के भावी प्रवाह को नवजीवन दे सके उन्होंने अपने अस्तित्व विकास और अभ्युदय के लिए न केवल व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष किया बल्कि प्रतिष्ठित एवं श्रेष्ठ साहित्यकारों के बीच रहकर अपने मौलिक कृतित्व एवं अन्यतम साहित्यिक प्रतिदान का हिंदी साहित्य में मानदंड स्थापित किया था लोक जीवन के जय के साहित्य के वैसे सशक्त समर्थक एवं भाव प्रतिष्ठा पर थे जिन्होंने भारतेंदु युग तथा समसामयिक गधे को निबंध के क्षेत्र में नए युग विधानी शक्ति दी इसके मूल में उनका अजय व्यक्तित्व था जो दिल होते हुए भी भावुक था गंभीर होते हुए भी विनोद प्रिय था वे प्रकृति के उपासक और लोकजीवन के आराधक थे उनके ऐसे व्यक्तित्व का बांकपन ही उनके कृतित्व के मूल में है वह अपनी मान्यताओं के आधार पर ही कृति और कृति कार्य को उसके देश और काल के संदर्भ में आते थे और जो जैसा लगता था उसको उसी रूप में अपनी गरिमा के अनुरूप प्रकट करते थे जो नहीं भाया उसकी चुटकी ली व्यंग किया पर सब कुछ साहित्य की रसात्मक पद्धति पर हिंदी गद्य में इनके पूर्व तक जितनी गधे की शैलियां प्रचलित है वह इस प्रिय थी चाहे वह विश्लेषणात्मक हो भावात्मक हो अलंकारिक हो या सामान्य व्यवहारिक हो सबका यथा आवश्यक सटीक स्पष्ट और प्रदर्शन उनकी गद्य शैली में मिलता है गधे का ऐसा निकला हुआ रूप और किसी भी पूर्ववर्ती लेखक में इतनी गरिमा के साथ परिलक्षित नहीं होता अपने उक्त गुणधर्म के कारण आचार्य रामचंद्र शुक्ल विचारात्मक निबंध ओं के क्षेत्र में अद्वितीय सम्मान के अधिकारी हैं मर्यादा में विश्वास करने वाले गुरु गंभीर व्यक्ति थे इसीलिए    शब्द की शक्ति का उन्हें अपार ज्ञान था इसीलिए शब्द चयन में संस्कृत उर्दू फारसी से ही नहीं ललित लोक भाषाओं से भी उन्होंने शब्द चयन किया है वह लोकोक्ति और मुहावरे को सख्त और प्रमाणिकता प्रदान करते हैं इनका सदुपयोग यथा स्थान प्रयोग शुक्ल जी ने किया है वे सफल को शिकार थे इसलिए जहां नवीन पारिभाषिक शब्दों को हिंदी में वे सटीक रचना करते हुए मिलते हैं वही प्राचीन विस्मित शब्दों की पुनः स्थापना भी करते मिलते हैं इन सब तत्वों के कारण उनकी भाषा परिष्कृत सारगर्भित सुगठित अस्पष्ट और विषय के प्रतिपादन में पूर्ण सक्षम है अतः सभी दृष्टि ओं से उन्हें विश्व साहित्य में गौरव प्राप्त हुआ है शुक्ल जी का योगदान अप्रतिम और अद्वितीय है         आचार्य रामचंद्र शुक्ल की कृतियां         अनुवाद  कल्पना का आनंद मेगास्थनीज कालीन भारत साहित्य राज्य प्रबंध शिक्षा आदर्श जीवन विश्व प्रपंच शशांक बुद्धचरित आदि अनुवाद शैली है कविता मधु स्रोत कहानी 11 वर्ष का समय उर्दू साहित्य सम्मेलन भाटा खंडहर मान्य भाषा हिंदी साहित्य सम्मेलन पैसा अखबार का आक्षेप बंगाल में उर्दू भारतेंदु हरिश्चंद्र और हिंदी एक लिपि विस्तार कॉन्फ्रेंस हिंदी में लिंग नियम से स्मृतियां की प्रवेशिका श्री राधा कृष्ण दास की जीवनी गोस्वामी तुलसीदास जायसी ग्रंथावली की भूमिका हिंदी साहित्य का इतिहास विचार वीथी चिंतामणि भाग 1 सूरदास चिंतामणि भाग 2 त्रिवेणी रस मीमांसा संपादित ग्रंथ है तुलसी ग्रंथावली भाग 3 जायसी ग्रंथावली भ्रमरगीत सार वीर सिंह देव चरित्र हिंदी शब्द सागर भारतेंदु संग्रह भाया मनोविकार उत्साह श्रद्धा करुणा लज्जा और ग्लानि लोभ और प्रीति   ईर्ष्या वीणा और क्रोध इत्यादि

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व