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नंददास का काव्य दर्शन और भक्ति :डॉ.शिप्रा श्रीवास्तव (प्रवक्ता, हिंदी विभाग) वल्लभ राजकीय महाविद्यालय ,मंडी (हि.प्र.)

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मध्यकालीन भक्ति आंदोलन भारतीय इतिहास की अन्यतम घटना है जिसने समस्त भारतीय जनमानस को कई शताब्दियों तक प्रभावित किया । अपने विशिष्ट विशेषताओं के कारण इसे स्वर्ण युग तथा भक्ति युग कहा जाता है । यह एक अलौकिक काल रहा क्योंकि इसमें भक्ति रस की कई धाराएं बहीं और किसी न किसी धारा से सिंचित होकर कवियों ने अपनी लेखनी से अपने हृदय के उद्गार प्रकट किए । इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि के रूप में भारतीय चिंतन धारा की पूरी परंपरा विद्यमान है। काव्य धाराओं और विविध दर्शन से समृद्ध इस युग की पृष्ठभूमि अपनी चारुता के कारण ही विश्व-मोहक भी सिद्ध होती है। यों इस युग को सगुण-निर्गुण आदि खंडों में विभक्त भी किया जाता है किंतु मूलतः विद्यमान रहने वाले ‘जीवन दर्शन’ में भारतीय मन-मस्तिष्क की वह उपज है जो समग्र विश्व चेतना को स्पष्ट और रूपायित करती है। साहित्य के मूल में दर्शन की एक ठोस पृष्ठभूमि रहती है जो केवल दर्शन न होकर उसकी उत्प्रेरणा होती है । भक्तिकाल की सगुण-निर्गुण साहित्य में भी दार्शनिक तत्ववाद की कलात्मक संगीत को देखा जा सकता है।  भक्तिकालीन हिंदी काव्य के मूल में जो दर्शन निहित है उसमें कर्म, ज्ञान और भक