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Tragedy (Aristotle)त्रासदी (अरस्तू)

  Tragedy (Aristotle)   त्रासदी ( अरस्तू ) - पश्चात्य साहित्य चिन्तन काव्य के अनुकरण का सिद्धांत अपने आरंभिक समय से ही मान्य रहा है ,पाश्चात्य साहित्य में प्लेटो और अरस्तू दोनों ने अनुकरण पर विचार करते हुए काव्य को अनुकरण माना है । अरस्तू के अनुसार कविता एक अनुकरणात्मक कला है । अरस्तू ने काव्य पर विचार करते हुए लिखा है कि- काव्य में दो प्रकार के कार्य-व्यापर का अनुकरण होता है, सदाचारियों के अच्छे कार्य-कलापों का तथा दुराचारियों के दुष्कृत्यों का । सदाचारियों के कार्य व्यापारों के अनुकरण से महाकाव्य का जन्म हुआ और दुराचारियों के कार्य-व्यापारों के अनुकरण से व्यंग्य काव्य का । गंभीर स्वाभाव के काव्यकार सदाचारियों के कार्यों का अनुकरण करने में तथा देवी-देवताओं के स्तोत्रों के निर्माण में संलग्न हुए । तुच्छ कोटि के रचनाकारों ने व्यंग्य रचनाओं की । इन्हीं दो प्रकार की काव्य-रचानाओं के रूपांतर और विकास का प्रतिफल है – त्रासदी (Tragedy)   और कामादी ( Comedy) । अरस्तू ने महाकाव्य और त्रासदी में त्रासदी को महाकाव्य से श्रेष्ठ माना है, क्योंकि त्रासदी अपनी सघनता ,संक्षिप्तता,सुसंबन

विरेचन सिद्धांत: अरस्तू

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  विरेचन (कैथारसिस) त्रासदी की परिभाषा में अन्तिम किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विवादास्पद कथन विरेचन सम्बन्धी ही है। अरस्तू ने विरेचन (केथारसिस) शब्द की काव्यशास्त्र में न तो परिभाषा दी है और न ही व्याख्या ही की है । यही नहीं, उन्होंने काव्यशास्त्र में केवल एक बार इस शब्द का प्रयोग त्रासदी की परिभाषा देते हुए किया है। अपने ग्रंथ राजनीतिशास्त्र में उन्होंने विरेचन शब्द का दूसरी बार प्रयोग किया है, किन्तु वहाँ पर पूर्ण विचार व्यक्त नहीं किये और यह कहकर छोड़ दिया कि इसकी विशद चर्चा काव्यशास्त्र में की जायेगी। खेद है कि काव्यशास्त्र अधूरा है। राजनीतिशास्त्र में उनके विचार इस प्रकार है- "करुणा और त्रास अथवा आवेश कुछ व्यक्तियों में बड़े प्रबल होते हैं........ किन्तु हम देखते हैं कि धार्मिक रागों के प्रभाव से वे शान्त हो जाते हैं , मानो उनके आवेश का शमन या विरेचन हो गया है। करुणा और त्रास से आविष्ट व्यक्ति इस विधि से एक प्रकार की शुद्धि का अनुभव करते हैं और उनकी आत्मा विशद् (निर्मल) और प्रसन्न हो जाती है।"      अरस्तू ने करुणा एवं त्रास ( Pity and fear) सम्बन्धी मनोभावों के व

अनुकरण सिद्धांत: अरस्तू

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अरस्तू (384 321 ई० पू०) प्लेटो के विख्यात शिष्य थे ऐसा विश्वास किया जाता है कि उन्होंने लगभग छह प्रबन्धों की रचना की, जिनमें से काव्यशास्त्र (Poetics) और अलकार शास्त्र (Rhetoric) ही आज अस्तित्व में हैं। काव्यशास्त्र का सम्बन्ध साहित्य-रचना सिद्धान्तों से है तथा अलंकारशास्त्र का वाग्मिता से| उनके काव्यशास्त्र ने अध्येताओं को अधिक आकृष्ट किया है। अरस्तू ने काव्यशास्त्र को प्रकृति और उद्देश्य के बारे में अध्येताओं को संदेह में को रखा है। काव्यशास्त्र का उद्देश्य उत्तम काव्य-रचना सम्बन्धी सिद्धान्तों का निरूपण उसकी प्रकृति पूर्णतः विश्लेषणात्मक और वैज्ञानिक है। काव्यशास्त्र में काव्य सिद्धान्तों का निरूपण मात्र ही नहीं है, वरन् उसमें प्रतिपादित निष्कर्ष तत्कालीन  ग्रीक साहित्य में गहराई में बद्धमूल है। उन निष्कर्षों का स्पष्टीकरण भी ग्रीक साहित्य उद्धरणों से हो किया गया है। अनुकरण सिद्धान्त (Theory of Mimesis) ग्रीक शब्द'(Mimesis) का अंग्रेजी अनुवाद 'इमिटेशन' (Imitation) तथा अंग्रेजी के माध्यम से हिन्दी अनुवाद' अनुकृति' अथवा 'अनुकरण' किया गया है। वस्तुत: 'मि