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निबंधकार अज्ञेय

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     अज्ञेय आधुनिक हिंदी साहित्य के अत्यंत विशिष्ट लेखक रहे हैं । वह आधुनिक दृष्टि और अनुभव से संपन्न एक विचारक, कवि के रूप में सर्वमान्य हैं । अज्ञेय  को नई कविता का शालाका पुरुष कहा जाता है । कविता ,उपन्यास ,कहानी के अतिरिक्त अज्ञेय ने अनेक महत्वपूर्ण निबंधों की भी रचना की है । इनके निबंध को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-एक साहित्य चिंतन संबंधी विचारात्मक निबंध, दो यात्रा परक निबंध और तीन आत्माव्यंजक निबंध । सबरंग और कुछ राग , आलवाल, भवंती, अंतरा ,लिखी कागज कोरे ,अद्यतन जोगलिखी, धार और किनारे अज्ञेय के महत्वपूर्ण निबंध संग्रह हैं । इनके निबंधों में बौद्धिक संवेदना का प्रखर चिंतन और भाषा का सौंदर्य पूर्णरूप देखने को मिलता है । इनके निबंध के विषय में विद्यानिवास मिश्र जी कहते हैं कि- “ अज्ञेय ने हिंदी निबंध को सांस्कृतिक संवेदना के संप्रेषण का माध्यम बनाया और प्रमाणित किया कि व्यक्तित्व संपन्नता और अहं का विसर्जन कविता की ही तरह निबंध का मौलिक गुण भी है । बौद्धिक और रागात्मक संवेदना में गहरे रचे हुए अज्ञेय के निबंध सच्चे अर्थों में निबंध कहे जा सकते हैं, जिनमें बंधन और मुक्ति

निबंध की परिभाषा एवं प्रकार

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           निबंध शब्द रूप शुद्ध भारतीय है निबन्ध्नातीति निबंधः के आधार पर इस शब्द का अर्थ ग्रहण किया जाता था । प्राचीन काल में पोथियों   को सिल कर रखने की प्रथा थी । उसे निबंध कहा गया . किंतु आधुनिक संदर्भ में निबंध का अर्थ संकोच खो गया है और यह एक विधा विशेष के रूप में प्रचलित है.   आज यह अंग्रेजी के Essay का पर्याय हो गया है । Essay  शब्द फ्रेंच के Essais  से व्युत्पन्न है . Essais  का अर्थ होता है प्रयास करना या प्रयत्न करना । आधुनिक काल में निबंध का जो स्वरूप है वह फ्रांस में ही उत्पन्न हुआ माना जाता है । फ्रांस ही निबंध की   उद्गम भूमि है ।   फ्रेंच साहित्यकार मान्तेन को   निबंध का जन्मदाता माना जाता है । मार्च 1571  में उन्होंने भाषण दिया , जिसका इंग्लैंड के   जॉन प्लोरियो   ने 1590 मैं अनुवाद किया , यहीं से निबंध का जन्म माना जाता है ।   मान्तेन ने निबंध के विषय को लेकर लिखा है कि- ” I am the subject of my essays because I myself am the only person whom I know thoroughly .”  इस कथन के आधार पर निबंध में निजता   व्यक्तित्व आत्मा भी व्यक्ति या आत्म प्रकाशन की प्रवृत्ति