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आधुनिक भारत में लैंगिक समानता और अम्बेडकर सामाजिक समानता का दर्शन: एक अनुशीलन

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  यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । ( मनुस्मृति ३/५६ ।।)   कोई भी समाज तब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता जब उस समाज में स्त्रियों को उचित सम्मान नहीं मिलता इसका निर्वहन प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत में देखने को मिलता है । आधुनिक भारत में सामाजिक समानता को विधिक स्तर स्थापित करने की दिशा जिन्होंने अपना विशेष योगदान दिया उनमें भीमराव अम्बेडकर का योगदान विशिष्ट है । भारतीय संविधान और अपने विचारों के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में अम्बेडकर जी ने जो कार्य किया उसका प्रभाव आज हमारे समाज में देखने को मिल रहा है । स्त्रियाँ ना सिर्फ समाज में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर रहीं हैं वरन भारत को विकसित बनाने के क्रम में भी अपना सहयोग दे रहीं हैं । और यह सब कुछ संभव हुआ है भारतीय संविधान के उन प्रावधानों द्वारा जिन्हें अम्बेडकर जी संविधान के निर्माण के समय लागू कराया था । समाज के सभी वर्गों की महिलाओं की समाज के सभी क्षेत्रों में भागीदारी देखने को मिल रही है । अम्बेडकर जी ने   समाज के वंचित वर्ग की महिलाओं को जागरूक करने के साथ-स...

मीरा की भक्ति: दर्शन एवं समर्पण :डॉ. अंगदकुमार सिंह (असिस्टेण्ट प्रोफेसर: हिन्दी जवाहरलाल नेहरू पी.जी. कॉलेज, बाँसगाँव गोरखपुर ,उ.प्र. )

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रतन    सिंह   की पुत्री मीरा, नृप   भोजराज की पत्नी  थी। जो   अमर  हुई  विष  पीकर, भक्तिन गिरिधर नटवर की थी। सम्पूर्ण भूमण्डल में भारत एक ऐसा विशिष्ट देश है जो सदियों से अपनी संस्कृति और सभ्यता के नाते जगत् विख्यात है। भारत में राम, कृष्ण, बुद्ध आदि ने जन्म लेकर जहाँ धर्म की स्थापना की वहीं तुलसी, सूर, मीरा आदि कवियों ने इनको अपने अन्तस् में समाहित कर दूसरों के लिए आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। मोक्ष और शान्ति की राह को भक्त-कवियों ने सरल और सुगम बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया ताकि आमजन का उद्धार इसके माध्यम से आसानी से हो सके। इन भक्तों और कवियों ने भजन और स्तुति की रचना कर जनमानस को भगवान के करीब लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे ही सन्तों और महात्माओं में एक नाम मीरा का भी आता है। मीरा रतनसिंह राठौर की पुत्री, दूदाजी की पौत्री, जोधपुर के सृजनकर्त्ता जोधाजी राव की प्रपौत्री, चित्तौड़ के राजघराने महाराणा सांगा की कुलबधू और महाराणा भोजराज की पत्नी तथा समाज द्वारा अन्त्यज सन्त रविदास की शिष्या थीं। मीरा राजस्थान के राजघराने में पली-बढ़...

रैदास का काव्य सृजन :संवेदना और दृष्टि( डॉ0 नरेन्द्र कुमार ,असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर)

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‘‘जाके कुटुंब सब ढोर ढोवंत फिरहिं अजहुँ बानारसी आसपासा। आचार सहित बिप्र करहिं डंडउति तिन तनै रविदास दासानुदासा।।’’ रामानन्द के शिष्य परम्परा में रैदास का विशिष्ट महत्व है। निगुर्ण संत काव्य परम्परा को अपनी विशिष्ट भंगिमा से एक नया अर्थ दिया और संत काव्यधारा का मनुष्यतावादी चेतना से सम्पन्न किया, उन्होंने स्वयं लिखा है कि - नामदेव कबीर तिलोचन सधना सेन तरै। कह रविदास, सुनहु रे संतहु! हरि जिउ तें सबहि सरै।। (चित्र :गूगल से साभार ) संत रैदास का प्रादुर्भाव ऐसे समय में हुआ जब भारतीय समाज का मध्यकाल सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से काफी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। इस्लामिक शासकों की क्रूरता और धार्मिक कट्टरता से हिन्दू त्रस्त था तो दूसरी तरफ हिन्दू धर्म बिखराव की स्थिति में था। वर्णवादी व्यवस्था की मार से हिन्दू समाज के निचले वर्ण के लोग त्रस्त थे। वे मानवीय स्तर से नीचे गिरा दिये गये थे। ऐसे समय में कई क्रातिकारी संत कवियों का अभ्युदय हुआ जिन्होंने समानतामूलक पदों की रचना कर समाज रूपी माला के बिखरे मोतियों को एकता की डोर में पिरोने का काम किया। वैसे संत जिन्होंने अपने सामाजिक क्रांतिकारी...