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कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती

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कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती | कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काती॥ नयन, सजल, कागद अति कोमल, कर अँगुरी अति ताती।  परसत जरै, बिलोकत भीजै दुहूँ भाँति दुख छाती ॥ क्यों समुझे ये अंक सूर सुनु कठिन मदन-सर-धाती। देखे जियहिं स्यामसुंदर के रहहिं चरन दिनराती ॥ प्रस्तुत पंक्तियों सूरसागर के भ्रमरगीत प्रसंग से ली गई है । जब कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा आ जाते हैं तो वहां उनकी मुलाकात उद्धव होती है । ऊधौ श्री कृष्ण को समझते हैं तब कृष्ण गोपियों गोपियों की याद में परेशान रहते हैं । उद्धव निर्गुण ज्ञान का उपदेश कृष्ण को देते हैं कृष्ण उद्धव को गोकुल भेजते हैं  कि हे उद्धव आप गोपियों को समझा दो उड़ उठाओ कृष्ण का संदेश लेकर गोकुल पहुंचते हैं और वहां पहुंचने के बाद गोपिया उद्धव के निर्गुण ज्ञान को अपने लोक ज्ञान से ऐसी तर्क देती है कि उद्धव निरंतर हो जाते हैं ऐसे ही जब उद्धव गोपियों को कृष्ण का सन्देश देना चाहते हैं तो गोपियों कहतीं है की ब्रज में कोई पत्र नहीं पढ़ पाता है और कहती हैं कि कोई ब्रज में चिट्ठी पत्री नहीं पढ़ पाता ऐसे में कृष्ण क्यों इस कठिन विरह की पाति को लिख लिख कर भेज रहे हैं आगे गोपि

जायसी का सूफी दर्शन और भक्ति :डॉ0 विजय आनन्द मिश्र सहायक आचार्य (हिन्दी)

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निर्गुण भक्ति के प्रेम मार्गी काव्य धारा के कवि और सूफी दर्शन के व्याख्याता मलिक मुहम्मद जायसी की भक्ति-भावना हिन्दू और मुस्लिम धर्म के दर्शन के उचित समन्वय से युक्त है जिसमें वो हिन्दू रीति-रिवाज को सूफी दर्शन से देखतें हैं जहाँ पर भावनात्मक रहस्यवाद और परम्परागत रहस्यवाद के बीच भी समन्वय स्थापित करतें है। मध्यकालीन प्रेम अचानक कार्यो का एक सूत्र फारसी की सूफी काव्य परंपरा से भी जुड़ता है। सूफी साधक भी पुराण के ईश्वरवाद में विश्वास करते हैं, पर वे अन्य मुसलमानों की भांति यह नहीं मानते कि ईश्वर दृश्य जगत से परे है, अपितु वे यह स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर इस जगत में व्याप्त हैं और वह सत्य और सुन्दर है। उनकी दृष्टि में सृष्टि असत् है, परमात्मा ही परम सत्ता के रूप् में सत्य है। मनुष्य में सृष्टि में सत् औार असत् दोनों अंश है। सत्य ही परमात्मा है और असत् नाशवान है। इसीलिए साधक को स्वतः नष्ट करके अपने को स्वच्छ बनाकर परमात्मा के साथ एक हो जाना है। यह कार्य साधना द्वारा पूरा होता है। यह साधन पथ ही सूफी मार्ग है।  प्रेम भावना सूचियों की विशिष्ट उपलब्धि है। इस प्रेम में विरह विरूद्ध को महत्वपू