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लोक रंग के कुशल चितरे :रेणु

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 हिन्दी साहित्य के इतिहास में अंचल की पहचान और अंचल के चित्र को अंकित करने की दृष्टि से रेणु का अपना विशिष्ट स्थान है । रेणु ने आंचलिक उपन्यासों के साथ साथ अपनी कहानियों के माध्यम से भी अंचल के चित्र को बखूबी कथा के फलक पर उभारने का कार्य किया है। रेणु की आंचालिकता को अब तक ज्यादातर उनके उपन्यास मैला आंचल से ही जोड़कर देखा और समझा गया है। मैला आंचल के साथ ही उनकी कहानियों में भी आंचल अपने समग्र विशेषता और विवशता के साथ मौजूद है । रसप्रिया, लाल पान की बेगम, ठेस, आदिम रात की महक , तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम, नैना जोगिनिया और ठुमरी कहानी संग्रह में रेणु ने आंचलिक जीवन को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि कहानियों को पढ़ते हुए अंचल का चित्र ही हमारे समक्ष उभर आता है । रेणु के कथा साहित्य में लोक जीवन का व्यापक और यथार्थपरक रूप देखने को मिलता है। आज के समय में लोक जीवन से बहुत सी चीजें और परमपराएं लुप्त होती जा रहीं हैं,लेकिन यदि हमें इन लुप्त होती चीजों और परमपराओं को संजोना और समझना है तो रेणु की कहानियों से बेहतर परिचायक और कुछ नहीं हो सकता । रेणु मूलतः कथाकार हैं ,लेकिन अपनी कहानियों से

लोक परम्परा की गहन संवेदना का आख्यानः रसप्रिया

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हिन्दी कथा साहित्य और हिन्दी समाज में अत्यंत घनिष्ठ संबंध देखने को मिलाता है। फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दी साहित्य के एक ऐसे कथाकार हैं, जिन्होंने अपने कथा साहित्य के माध्यम से हिन्दी साहित्य जगत को लोक के राग-रंग से विधिवत परिचित कराया और लोक जीवन की विविध छटाओं को साहित्य के कैनवास पर जीवंत किया। इस दृष्टि से मैला आंचल आपकी और हिन्दी साहित्य की एक महनीय उपलब्धि है। रेणु ने हिन्दी कथा साहित्य को एक नये लोक से ना सिर्फ परिचित कराया वरन जीवन के समस्त राग-विराग-रंग और बदरंग को हमारे समक्ष रखा भी ।आपके उपन्यास मैला आँचल के अतिरिक्त आपकी कहानियों में भी लोक परम्परा की अपूर्व छटा देखने को मिलती है। रसप्रिया आपकी लोक रस ,आस और विश्वास से सराबोर कहानी है, जिसमें लोक परम्परा में लुप्त हो गीतों की गहन चिंता के साथ-साथ लोक विश्वास का अंकन अत्यंत जीवंत रूप में देखने को मिलता है । लोक परम्परा के प्रति गहरी चिंता का भाव रसप्रिया कहानी में  मिरदंगिया के माध्यम से  रेणु ने प्रस्तुत किया है। भाव और भाषा की दृष्टि से यह कहानी अपने आप में विशिष्ट है।  हिन्दी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह देखने को

ठेस: एक कलाकार के आत्म सम्मान और बोध का आख्यान

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  रेणु की लेखनी से अनेकानेक चरित्रों की सर्जना हुई है । इन्हीं चरित्रों में अत्यंत विशिष्ट चरित्र है - सिरचन का । सिरचन के हाथों में हुनर है और उसके चरित्र में गाम्आत्म्मन भी है , जो एक कलाकार में होना चाहिए । रेणु ठेस कहानी के माध्यम से एक कलाकार के चरित्र को उसकी समस्त सीमाओं और सामर्थ्य के साथ कथा फलक पर उकेरा है ,एक बेहतरीन कलाकार ,एक आत्म सम्मानी व्यक्ति और एक संवेदनशील एवं उदार ह्रदय सिरचरन के पास है । यही उसे विशिष्ट बनाती है ,रेणु एक बहुत ही खास विशेषता है कि वह चरित्र की सर्जना बड़ी शिद्दत से करते हैं ।अपनी कलम से रेणु ने एक चित्रकार की तरह सिरचन के व्यक्तित्व को ठेस कहानी में मूर्त कर दिया है ।फणीश्वर नाथ रेणु की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वो रूप ,गंध, हाव-भाव की सूक्ष्म से सूक्ष्मत्तर भंगिमा को इस तरह उकेरते हैं कि पूरा दृश्य ही हमारे समक्ष प्रस्तुत हो उठता है ।प्रस्तुत है ठेस कहानी आप भी पढें सिरचरन को....... खेती-बारी के समय, गांव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन क

रसप्रिया : फणीश्वरनाथ रेणु

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रसप्रिया फणीश्वरनाथ रेणु धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा - अपरुप-रुप! ...खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल हो गईं। मोहना ने मुस्करा कर पूछा, 'तुम्हारी उँगली तो रसपिरिया बजाते टेढ़ी हो गई है, है न?' 'ऐ!' - बूढ़े मिरदंगिया ने चौंकते हुए कहा, 'रसपिरिया? ...हाँ ...नहीं। तुमने कैसे ...तुमने कहाँ सुना बे...? https://youtu.be/90lmN7BRRsI 'बेटा' कहते-कहते रुक गया। ...परमानपुर  उस बार एक ब्राह्मण के लड़के को उसने प्यार से 'बेटा' कह दिया था। सारे गाँव के लड़कों ने उसे घेर कर मारपीट की तैयारी की थी - 'बहरदार होकर ब्राह्मण के बच्चे को बेटा कहेगा? मारो साले बुड्ढे को घेर कर! ...मृदंग फोड़ दो।' मिरदंगिया ने हँस कर कहा था, 'अच्छा, इस बार माफ कर दो सरकार! अब से आप लोगों को बाप ही कहूँगा!' बच्चे खुश हो गये थे। एक दो-ढाई साल के नंगे बालक की ठुड्‌डी पकड़