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भाषा और व्यक्तित्व

     भाषा का संसार अपने आप में बहुत ही व्यापक और विस्तृत है । भाषा अपने व्यक्तित्व में बहुआयामी एवं वैविध्यपूर्ण है । भाषा के होने की सबसे बड़ी सार्थकता उसके चेतन होने में है । भाषा अपने स्वरूप में चर है, जो निरंतर समय और समाज के अनुरूप प्रवाहित होती रहती है । आज के तकनीकी और प्रचंड भौतिकता के दौर में भाषा बहुरूपी होती जा रही है ,क्योंकि भाषा एक साथ कई स्तरों पर सक्रिय रहती है । भाषा की यही सक्रियता उसे समय की यात्रा में आगे जाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थतंत्र के मोर्चों पर भाषा का नियोजन एक महत्वपूर्ण भाषा कार्य है । इन सभी आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए हिंदी भाषा निरंतर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है । हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा लोक जगत के अनुभवों का सामंजस्य ई-जगत के बड़ी आसानी से कर रही है । हिंदी वर्तमान में तेजी से विकसित हो रही है ,इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हिंदी की उदारता है । भाषिक अधिग्रहण के कारण आज हिंदी में दुनिया भर की भाषाओँ के शब्द अटे पड़े हैं । भाषिक उदारता और निरंतर परिवर्तन की प्रकृ

अवहट्ठ

अवहट्ठ अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच संक्रा न्ति काल की भाषा है। आ चार्य हेम चन्द्र ने जब अपभ्रंश का व्याकरण लिखा। उस सम य अपभ्रंश साहित्यिक भा षा थी । बोलचाल की भाषा साहित्यिक भाषा से छिटककर भिन्न भिन्न क्षेत्रीच बोलियों का स् व रू प ग्रहण करने लगी थी। हे मचन्द्र ने का व्यानु शासन '   में ‘ ग्राम्य – अप भ्र श ' का उल्लेख किया है। जा हिर है कि यह ग्राम्य – अप भ्रंश परिनि ष्ठित अपभ्रंष से विकसित आ म बोलचाल की भा षा थी । हेमचन्द के देशी नाम माला ' में भी ऐ से अनेक देशी शब्दों का संग्रह है , ओ प्रा कृत ही नहीं , बल्कि , अपभ्रंश साहि त्य में भी अप्रयुक्त हैं। स्प ष्ट है कि इन श ब्दों  का प्रयोग आम बोलचाल मे ही होता रहा होगा। डॉ. बाबू राम सक्सेना ने की र्ति लता की भूमिका में ' देसिल ब अ ना ---- -- अ व्हट्ठा ' को आम बोलचाल की भाषा मानते हुए अवहट्ठ और देशी को एक माना है।          १००० ई . को मोटे तौर पर अप भ्रंश का अ व सान काल और आधुनिक भारतीय आ र्यभाषा ओं का आरम्भ काल माना जाता है , किन्तु ' संदेश वाहक ', ' की र्ति लता '   एवं ' व र्