मेरे अपने
मेरे अपने मेरे मालिक ! बस इतना ही ख्वाहिश है मेरी मेरा घर मेरा शहर और मेरे अपने मुझे ताउम्र जानते पहचानते और मानते रहंे। जब गैरों के शहर और नगर से वापस अपने कस्बे में आता हूँ तो हर वक्त हर साख मेरे अन्दर समा जाती है। वो गलियाँ, वो बाजार सब जिन्दगी के उन पलों की कहानी सुनाते फिरते हैं जिनमें हम पले बढ़े। चिरैया मुझे सीखना है अभी बहुत कुछ- चिरैया से, ताल-तलैया से, उस माटी से पानी-हवा से, जंगल-जानवर से, निःस्वार्थ प्रेम करने और दूसरों के लिए जीने का ढंग जो मुझे अब तक आया ही नहीं। ताउम्र पढ़ने और लोगों के साथ रहकर भी। अरे ओ! चिरैया तू कैसे कर लेती है बिना कुछ कहे। कोशिश कर रहा हूँ। उस भाव और भाषा को जानने और समझने की। जो अभी हमसे दूर अभी बहुत दूर है। उस जंगल में जीव में अपनी पूरी जिन्दादिली के साथ जहर अमृत पीकर कौन, अमर हुआ। शायद जमाने को मालूम नहीं मगर जहर पीकर मीरा अमर हो गयीं और शंकर भी महादेव हो गये। परिन्दें घोंसले ही नियति नही हैं परिन्दों की आसमानों और ऊंचाइयों की दूरियां भी उनकी मंजिल नहीं। यायावरी और जोखिम है हर पल उनके जेहन में। ना घर ना शहर और ना ही