कबीर के काव्य में लोक दर्शन :डॉ0 अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
भारतीय परम्परा में भक्ति की विविध धाराओं का अजस्र प्रवाह अनादि काल से देखने को मिल रहा है। अनेकानेक सांस्कृतिक एवं भौतिक आक्रमणों के बाद भी भारतीय सनातन परम्परा और आध्यात्मिक जीवन संस्कृति का मूल हमारे समाज में आज भी विद्यमान है। सामाजिक विकास एवं चिन्तन की एक निर्धारित प्रक्रिया है। समय के साथ समाज अपने विकास के क्रम में भौतिकता और आध्यात्मिकता की यात्रा तय करता हुआ निरन्तर विकसित होता रहा है। समाज कभी घोर भौतिकता में आकण्ठ डूबता है तो कभी आध्यात्मिक जीवन दर्शन की ओर उन्मुख होता है। आध्यात्मिकता भारतीय परम्परा एवं चेतना का मूल स्वर रहा है। भौतिकता और आध्यात्मिकता के आकर्षण एवं प्रतिकर्षण में हमारा समाज, संस्कृति और सभ्यता विकसित होती चलती है। यदि हम मानव सभ्यता के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हमें यह देखने को मिलता है कि समाज का विकास भौतिकता और आध्यात्मिक के अर्न्तद्वन्द्व से ही गतिमान होता जा रहा है। यदि हम दुनिया की सभी सभ्यताओं पर दृष्टिपात करें तो यह देखने को मिलता है कि वर्तमान समय में जितनी भी सभ्यताएँ अस्तित्व में हैं, उनमें सर्वाधिक प्राचीन भारतीय सभ्यता है। भारतीय सभ्यता के स