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Showing posts from December, 2022

Break- Up

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Break Up (I have switched off my feelings. You should also do so) अमन बाबू अब तक अपने आप एकांत के लिए साध चुके थे।रुचि के छोडने के बाद  उस भावदशा और मनोदशा में एक अर्से तक रहे । फिर धीरे-धीरे एकांत और मौन उनके चरित्र में रच गया था। अब वो जरूरी होने पर ही संवाद करते थे। संवेदना के नाम पर कुछ यादें ही थीं जो उनके समग्र बजूद को झकझोरने के पर्याप्त थीं। इसके अलावा सब कुछ पहले से ठीकठाक था। यादों और बातों का विचित्र संयोग है।ये दोनों ही आपके बजूद को स्याह कर देतीं हैं। आज अमन बाबू फिर से स्याह और व्यथित मन के साथ अपने बिखरे हुए और ना समेटे जा सकने वाले बजूद को फिर निहार रहे हैं।आखिर रुचि के जाने के उस बन्द भाव जगत को किसी के दस्तक पर खोले ही क्यूँ? सामने यादें बिखरी हुईं पडीं थी - लिपस्टिक लगी  डिस्पोजल गिलास  और ऐसी ही पलास्टिक की गिलास, आंसू से भिगे और फिलहाल सुखे टिस्सू पेपर और ना जाने कितनी चीजें। बिखरी चीजें तो सिमट जायेंगी मगर .........................। का जाने अब खलिहर अमन बाबू का क्या होगा ?बातें बकवास और पागलोंवाली करता है अब ये अमनवा। Feelings thi Relation nahi.

असाध्य वीणा कविता की काव्यगत विशेषता.

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 असाध्य वीणा कविता का मूल पाठ असाध्य वीणा कथ्य एवं नामकरण अभिव्यक्ति पक्षः भाषा असाध्य वीणा:कथ्य एवं नामकरण - अज्ञेय द्वारा रचित यह कविता आंगन के पार द्वार काव्य संग्रह में संकलित है असाध्य वीणा की रचना उतराखण्ड के गिरि प्रान्त में जून 1961 के दौरान हुईथी। यह अज्ञेय की पहली लम्बी कविता है, जो जापानी कथा पर आधारित है। इसके मूल में रहस्यवाद और अहं के विसर्जन का कथ्य निहित है।  नामकरण- प्रस्तुत कविता का शीर्षक असाथ्य वीणा है जो स्वयं में कविता को सम्पूर्ण विषयवस्तु का आभास करने में समर्थ  है। कविता के आरम्भ में जब प्रियबंद केशकम्बकी राजा के यहॉं आते हैं, तो राजा इनको आसर देते हैं और राज के संकेत से उनके गण बीणा को लाते हैं और राजा उस बीणा के संबंध में प्रियबंद को बताते है कि बज्रकीर्ति ने इसे किरीटी तरू से अपने पूरे जीवन इसे गढ़ा था। बीणा पूरी होते ही उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। आगे राजा स्पष्ट करते हैं कि इसीवीणा को बजाने में उनकी जाने माने कलाकार भी सफर हूए। इसीलिए इस बीणा को असाध्य बीणा कहा जाने लगा। मेरे हार गये सब जाने माने कलावन्त सबकी विद्या हो गयी अकारथ, दर्प चूर कोई ज्ञानी गुणी

वाक्य और उसके भेद

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  वाक्य- शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं । जब कोई शब्द कारक चिन्हों के आधार पर दूसरे शब्द से जुड़ता है , और एक निश्चित भाव प्रकट करता है तो उसे वाक्य कहते हैं । वाक्य के अंग }   उद्देश्य-  वाक्य की पूर्णता भाव-सम्प्रेषण पर निर्भर होती है। इसके लिए दो वैयाकरणिक तत्त्वों की उपस्थिति अनिवार्य है। उनमें से एक है उद्देश्य अथवा विषय। उद्देश्य का तात्पर्य है वह व्यक्ति, वस्तु या स्थान जिसके बारे में वाक्य में सूचना, तथ्य या विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। व्याकरण शास्त्र में इस तत्व को विषय के नाम से जाना जाता है। विषय की उद्देश्य भी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है कि वाक्य के इस अंग के अन्तर्गत वाक्य की रचना, कथन या लेखन के उद्देश्यभूत विषय का कथन किया जाता है। उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम या क्रिया को रखा जा सकता है।  उदाहरण के लिए - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। व्यायाम से शरीर स्वस्थ तथा बलवान होता है। }   विधेय-  वाक्य का दूसरा अंग है-अभिधेय इस अंश के अन्तर्गत विषय के बारे में तथ्य सूचना या विचार प्रस्तुत किया जाता है। दूसरे शब्दों में उद्देश्य के विष

संबंध बोधक अव्यय

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  जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या   सर्वनाम   का संबंध अन्य शब्दों के साथ बताते हैं उन्हें संबंधबोधक कहते हैं. हम यह भी कह सकते हैं कि जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के बाद आकर वाक्य के दूसरे शब्द के साथ सम्बन्ध बताए उसे संबंधबोधक कहते. उदाहरण   : अन्दर , बाहर , दूर , पास , आगे , पीछे , बिना , ऊपर , नीचे आदि. ›   संबंधबोधक शब्द के मुख्य बारह भेद होते हैं : कालवाचक संबंधबोधक   – जिन शब्दों से हमें समय का पता चलता है उसे कालवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : पहले , बाद , आगे , पीछे , उपरांत आदि. स्थानवाचक संबंधबोधक   –   जो शब्द स्थान का बोध कराते हैं उन्हें स्थानवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : आगे , पीछे , नीचे , सामने , नजदीक , यहाँ , बीच , बाहर , परे , दूर. दिशावाचक संबंधबोधक   – जो शब्द दिशा का बोध कराते है उन्हें दिशा वाचक संबंधबोधक कहते है. जैसे : ओर , तरफ , पार , प्रति , आरपार , आसपास. साधनवाचक संबंधबोधक   – जिन शब्दों से किसी साधन का बोध होता है उन्हें साधनवाचक संबंधबोधक कहते हैं. जैसे : द्वारा , जरिए , हाथ , बल , कर , माध्यम , सहारे आदि. विरोधसूचक संबंधबोधक   – जो शब्द