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असाध्य वीणा कविता की काव्यगत विशेषता.

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 असाध्य वीणा कविता का मूल पाठ असाध्य वीणा कथ्य एवं नामकरण अभिव्यक्ति पक्षः भाषा असाध्य वीणा:कथ्य एवं नामकरण - अज्ञेय द्वारा रचित यह कविता आंगन के पार द्वार काव्य संग्रह में संकलित है असाध्य वीणा की रचना उतराखण्ड के गिरि प्रान्त में जून 1961 के दौरान हुईथी। यह अज्ञेय की पहली लम्बी कविता है, जो जापानी कथा पर आधारित है। इसके मूल में रहस्यवाद और अहं के विसर्जन का कथ्य निहित है।  नामकरण- प्रस्तुत कविता का शीर्षक असाथ्य वीणा है जो स्वयं में कविता को सम्पूर्ण विषयवस्तु का आभास करने में समर्थ  है। कविता के आरम्भ में जब प्रियबंद केशकम्बकी राजा के यहॉं आते हैं, तो राजा इनको आसर देते हैं और राज के संकेत से उनके गण बीणा को लाते हैं और राजा उस बीणा के संबंध में प्रियबंद को बताते है कि बज्रकीर्ति ने इसे किरीटी तरू से अपने पूरे जीवन इसे गढ़ा था। बीणा पूरी होते ही उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। आगे राजा स्पष्ट करते हैं कि इसीवीणा को बजाने में उनकी जाने माने कलाकार भी सफर हूए। इसीलिए इस बीणा को असाध्य बीणा कहा जाने लगा। मेरे हार गये सब जाने माने कलावन्त सबकी विद्या हो गयी अकारथ, दर्प चूर कोई ज्ञानी गुणी

कविता का सम्प्रेषण: अज्ञेय

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कविता का सम्प्रेषण तार सप्तक की भूमिका प्रस्तुत करते समय इन पंक्तियों के लेखक में जो उत्साह वा उसमें संवेदना की तीव्रता के साथ निस्सन्देह अनुभव-हीनता का साहस भी रहा होगा। संवेदना की तीव्रता अब कम हो गयी है, ऐसा हम नहीं मानना चाहते, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि अनुभव ने नये कवियों का संकलन प्रस्तुत करते समय दुविधा में पड़ना सिखा दिया है। यह नहीं कि तीसरा सप्तक के कवियों की संगृहीत रचनाओं के बारे में हम उससे कम आश्वस्त, या उनकी सम्भावनाओं के बारे में कम आशामय है जितना उस समय तार सप्तक के कवियों के बारे में थे। बल्कि एक सीमा तक इससे उल्टा ही सच होगा। हम समझते हैं कि तीसरा सप्तक के कवि अपने-अपने विकास क्रम में अधिक परिपक्व और मुंजे हुए रूप में ही पाठकों के सम्मुख आ रहे हैं। भविष्य में इनमें से कौन कितना और आगे बढ़ेगा, वह या तो ज्योतिषियों का क्षेत्र है या स्वयं उनके अध्यवसाय का तीसरा सप्तक के कवि भी एक ही मंजिल तक पहुँचे हों, या एक ही दिशा में चले हों या अपनी अलग दिशा में भी एक-सी गति से चलें हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। निस्सन्देह तार सप्तक में भी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि संगृहीत कवि सब अप