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भोलाराम का जीव’ कहानी में निहित हरिशंकर परसाई की व्यंग्य दृष्टि : सरिता कुमारी

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 ‘भोलाराम का जीव’ कहानी में निहित हरिशंकर परसाई की व्यंग्य दृष्टि    सरिता कुमारी सहायक प्राध्यापिका,हिन्दी विभाग बलरामपुर कॉलेज, पुरूलिया              पश्चिम बंगाल साहित्य की विधाओं में से एक विधा है ‘व्यंग्य’। इसका प्रयोग कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक और कविता में हुआ है। ‘व्यंग्य’ संस्कृत भाषा का शब्द है जो ‘वि’ उपसर्ग को ‘ण्यत्’ प्रत्यय और ‘अज्ज’ धातु में मिलाने से बनता है, जिसका अर्थ है ताना कसना। हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश के अनुसार - “व्यंग्य हंसी-मजाक में यथार्थ और कड़वी बात कहने की कला है। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि विसंगतियों और विडंबनाओं पर चुटीला प्रहार होता है।" साहित्य में व्यंग्य वह विधा है जिसके द्वारा साहित्यकार अपनी अभिव्यक्ति को प्रहारात्मक रूप में समाज के सामने लाता है। जो कटु होते हुए भी हास्य लगता है, लेकिन यह हास्य व्यक्ति के हृदय को अन्दर से कचोटता है। इसी संदर्भ में हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखते है - “व्यंग्य वह है, जहां कहने वाला अधरोष्ठ में हंस रहा हो और सुनने वाला  तिलमिला उठा हो और फिर कहने वाले को जवाब देना अपने को और भी उपहासास्पद बना लेना हो जाता ह