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Showing posts from February, 2022

गांव की चुल्हा -चक्की

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 गांव की वो चक्की जिसमें ना जाने कितनी माताओं ने गेंहू पीसा और वो चुल्हा जिस पर घर भर के पोषण का जिम्मा था, अब बन चुकी इतिहास है. अपने अमिटी ला स्कूल के निदेशक मित्र के साथ हमारा उनके गांव जाना हुआ. ना जाने क्यूँ गांव की आदिम महक आज भी हमें मोहित और आह्लादित करती है. जैसे निदेशक महोदय ने अपने गांव घोंसली जाने को कहा, मैं उनके साथ हो लिया.  माटी की सुगन्ध और गांव का आदिम अपनापन हमें  बहुत ही ऊर्जावान बना देता है.ऊपर तस्वीर में जो चुल्हा और चक्की है ना वो मन में लोक की उस तस्वीर को उभार कर रख देती है, जिस लोक को फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों में अक्सर पढता और महसूस करता आया हूँ. रेणु एक ऐसे कलमकार हैं जिन्होंने शब्दों में रंग, गंध और चित्र प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता का परिचय दिया है. घोंसली जाकर मन इतना रम गया कि क्या कहें, सचमुच यह यात्रा जीवन की तमाम यात्राओं में विशिष्ट इस कारण भी रही कि ठेठ गाँव और ग्राम्य भाषा से रुबरु होने के साथ- साथ सहज लोगों से मिलकर जीवन की जीवन्तता का एहसास भी हुआ. धन्य हैं वो लोग जो तमाम सुख सुविधा से वंचित रहते हुए भी जीवन का असली आनन्द ले रहे हैं, शायद यह

भाषा और सम्प्रेषण

  भाषा का संसार अपने आप में बहुत ही व्यापक और विस्तृत है । भाषा अपने व्यक्तित्व में बहुआयामी एवं वैविध्यपूर्ण है । भाषा के होने की सबसे बड़ी सार्थकता उसके चेतन होने में है । भाषा अपने स्वरूप में चर है, जो निरंतर समय और समाज के अनुरूप प्रवाहित होती रहती है । आज के तकनीकी और प्रचंड भौतिकता के दौर में भाषा बहुरूपी होती जा रही है ,क्योंकि भाषा एक साथ कई स्तरों पर सक्रिय रहती है । भाषा की यही सक्रियता उसे समय की यात्रा में आगे जाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थतंत्र के मोर्चों पर भाषा का नियोजन एक महत्वपूर्ण भाषा कार्य है । इन सभी आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए हिंदी भाषा निरंतर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है । हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा लोक जगत के अनुभवों का सामंजस्य ई-जगत के बड़ी आसानी से कर रही है । हिंदी वर्तमान में तेजी से विकसित हो रही है ,इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हिंदी की उदारता है । भाषिक अधिग्रहण के कारण आज हिंदी में दुनिया भर की भाषाओँ के शब्द अटे पड़े हैं । भाषिक उदारता और निरंतर परिवर्तन की प्रकृति