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मातृभाषा

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मातृभाषा में हम कुछ भी समझ और आत्मविश्लेषण कर सकते हैं। जिन देशों ने अपनी मूल भाषा को प्राथमिकता और महत्व दिया है, उन्होंने अन्य देशों की तुलना में कहीं बेहतर विकास किया है। मातृभाषा हमें अपने विचारों, विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता देती है और अंततः मनोवैज्ञानिक विकास की ओर ले जाती है। जिस प्रकार बच्चे के विकास के लिए मां का दूध महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार हमारी मानसिक संज्ञानात्मक क्षमताओं के विकास के लिए मातृभाषा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आजकल लोग भाषाओं को लेकर कई तरह की आशंकाएं रखते हैं। कुछ हद तक वे भेदभाव का आधार बन गए हैं लेकिन यह ध्यान में रखना होगा कि भारत के अधिकांश नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने अपनी शिक्षा अपनी मातृभाषा या मूल भाषा में प्राप्त की। अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें, अपनी भाषा के महत्व को समझें क्योंकि अंततः वे ही हमें खुद को अभिव्यक्त करके उड़ने और ऊंची उड़ान भरने के लिए पंख देती हैं और हमें इस विस्तृत दुनिया में पहचान दिलाती हैं।  अधिकांश शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में मूल भाषाओं की उपेक्षा की जाती है। हालाँकि, इन्हें संशोधित किया जाना चाहिए और म

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल (डॉ बसुन्धरा उपाध्याय,सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, लक्ष्मण सिंह महर परिसर पिथौरागढ़ उत्तराखंड)

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भारतवर्ष बहुभाषी देश है।भाषा की दृष्टि से भारत बहुत समृद्ध देश माना जाता है।भाषा किसी भी राष्ट्र और समाज की आवाज नहीं होती बल्कि यह तो उस देश की संस्कृति को जीवित रखती है।यहाँ हिंदी के अलावा और तमाम भाषाएं हैं।कोई भी भाषा स्वतंत्र होकर आगे बढ़ ही नहीं सकती।हिंदी का मूल संस्कृत है। कोई भी भाषा जब विस्तार कर लेती है और उस विस्तार करने के सहयोग के क्रम  में अपने साथ अपनी सहयोगी बोलियों (कटुम्ब) को भी साथ लेकर चलती है। आज के समय में किसी भी भाषा के लिये साहित्य आवश्यक नहीँ है। अगर उस भाषा को जीवित रखना है तो उस भाषा को रोजगार परख बनाइये। नहीं तो वह धीरे धीरे सिमट जाएगी। किसी भाषा को हम कई कारणों से सीखते हैं-सबसे बड़ा कारण है कि जीविकोपार्जन का। अतः हिंदी में भी रोजगार के अवसर हों। आज हिंदी भाषा को वैश्विक रूप प्राप्त हो गया है। सरकार पहल भी कर रही है।हिंदी में आज कई तरह के रोजगार मिल रहे हैं।जहाँ पहले कभी अंग्रेजी में ही कार्य होते थे आज वहाँ हिंदी में भी कार्य किये जाते हैं।सरकारी दफ्तरों में  हिंदी में कामकाज करना अब अनिवार्य कर दिया गया है।आदेश, नियम ,अधिसूचना, प्रतिवेदन,प्रे

मातृभाषा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: एक अध्ययन-प्रो. सतीश कुमार पांडेय, डीन , शिक्षा संकाय, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा मद्रास

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  भारत एक विशाल देश है ,यहाँ की विविधता में एकता देखते ही बनती है । भाषा ,संस्कृति और जीवन पद्धति में भिन्नता के बाद भी हमारी राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय चेतना हमें विशिष्ट बनाती है । इस चेतना के संवहन में हमारी मातृभाषा का विशेष महत्व होता है । मातृभाषा हमारे व्यक्तित्व के विकास की प्रथम सोपान है, जिसके द्वारा हम अपने विचारो को लोगों तक पहुचने में समर्थ होते हैं और हमारे मौलिक चिन्तन की प्रक्रिया के विकास में मददगार होती है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भारतीय भाषाओँ को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करने पर जोर दिया गया है । मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा का शिक्षा माध्यम के रूप में प्रयोग कर हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को एक नए आयाम तक पहुचने में समर्थ होंगे । शिक्षा व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली एक सतत प्रक्रिया है । अपने जीवन कल में हम जो कुछ भी सिखाते हैं उसे हम दो भागों में बटकर देख सकते हैं । औपचारिक और अनौपचारिक । अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से हम अपने आस-पास के परिवेश, भाषा ,समाज , एवं सांस्कृतिक विरासतों के अध्ययन अनायास ही करते हैं । जन्म से लेकर ज्ञानार