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Showing posts from May, 2021

कथा अनुवाद

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  साहित्य का हमारे समाज और संस्कृति से गहरा जुड़ाव होता है। कथा साहित्य में समाज और संस्कृति का प्रतिबिम्बन हमारे साहित्य में देखने को मिलता है। कथा साहित्य में समाज का व्यापक चित्र. प्रस्तुत करते हुए कथाकार समाज के विविध रीति-रिवाजों और परम्पराओं का भी अंकन सहज ही हो जाता है। कथा-साहित्य का अनुवाद करते हुए अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य दोनों के समाज , संस्कृति और जनता की चित्तवृतियों का विशेष ध्यान रखना होता है। किसी भी रचनाकार के साहित्यिक परम्परा को भलीभांति जाने समझे बिना हम उसकी रचनाओं के मर्म को नही समझ सकते और अगर हम रचना के मर्म को नहीं समझ सकेंगे तो उसका अनुवाद प्रभावी नहीं होगा। कथा साहित्य में व्यापक जीवन की अभिव्यक्ति होती है। इसीलिए कथा साहित्य का अनुवाद अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। समाज , संस्कृति , परिवेश और सामाजिक क्रियाओं- प्रतिक्रियाओं के सूक्ष्म अन्वेषण की आवश्याकता कथा-अनुवाद में होती हैं अनुवादक का उत्तरदायित्व साहित्यकार से अधिक चुनौतीपूर्ण और व्यापक होता है। अनुवाद के लिए भाषाओं का सूक्ष्म अध्ययन तो अपेक्षित है ही साथ ही साथ रचनाकार के रूचि-अभिरूचि का भी ध्यान र

Story of Cute Love in full flow of Heart :प्रेम और भाषा के सहजता की प्रथम कथा (उसने कहा था -1915)

                                                                                          उसने कहा था   हिन्दी  साहित्य के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी हैं जिन्हें जितनी बार पढ़ा जाये उसमें ताजगी देखने को मिलती है ।ऐसी ही एक कहानी है "उसने कहा था"। उसने कहा था हिन्दी की आरम्भिक कहानियों में से है ,लेकिन शिल्प और भाषा की दृष्टि से इसका अवलोकन करें तो यह अपने आप में बेजोड़ है । मानवीय संबंधों और संवेदन के अनेकानेक रूपी जगत में आदर्श प्रेम की इस कथा को पढ़कर मन में एक अजीब सा सुकून उत्पन्न होता है । कहानी के आरम्भ में लेखक कहता है कि – बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जुबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है,और कान पक गये हैं , उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबुकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें । जब बड़े-बड़े शहरों चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट संबंध स्थापित करते हैं , कभी-कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने तरस खाते हैं .....................तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में हर-एक लद्धि वाले के ल

पथरीला सोना : प्रवासी भारतीयों के इतिहास बोध और पीड़ाबोध का आख्यान

          जो देश अपने सीने पर पत्थरों का बोझ उगाये निस्पंद पड़ा हुआ था ,भारतीयों ने कुदाल से स्पंदित किया और इसके माथे पर लिखा तुम्हें उर्वर होना है । पथरीला सोना वास्तव में वह इतिहास है, जिसे भारतीय मजदूरों  ने भोगा और नए जीवन की आधारशिला रखी । उपन्यास की यात्रा आरम्भ होती है भारत से निकले मजदूरों के प्रवास के आरम्भ से ,जो एक अंतहीन यात्रा में परिवर्तित हो जाती है । पीड़ा,वेदना,आक्रोश और बेबसी का घनीभूत रूप इस उपन्यास में देखने को मिलता है । इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम उस यथार्थ से साक्षात्कार कर रहे होते हैं ,जिसे प्रवासी भारतीयों ने भोगा था । इस विषय को लेकर लिखा जाने वाला यह अद्वितीय उपन्यास है , जिसका लेखक स्वयं भोक्ता भी था । उपन्यास की आरम्भिक पंक्तियों में उस मर्म को हम समझ सकते हैं – दर्द से परेशान उस औरत का पेट देखने की आवाज़ हाँकने वाले जहाज के उस कर्मचारी ने जाल ऐसा बनाया कि औरत पेट न दिखाती तो उसे समुद्र में अब तो फेकना ही होगा । औरत ने लहंगा उठा कर अपना पेट दिखाया ! सारी औरतें चीख पड़ीं । रवीचन नाम के युवा ने कहा –औरत ने पेट दिखा दिया । अब तुम्हरा कलेजा ठंडा हुआ तो होग

पथरीला सोना (पहले कुदाल ,फिर कलम )

  प्रवासी जीवन का संघर्ष एवं संवेदना : पथरीला सोना रामदेव धुरंधर जीवन जगत की वास्तविकताओं को यथातथ्य प्रस्तुत वाले विशिष्ट रचनाकार हैं । भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के संवाहक के रूप में प्रवासी भारतीयों के योगदान को भूलाना संभव नहीं है ।इसी परम्परा में रामदेव धुरंधर जी ने अपने लेखन के माध्यम से प्रवासी जीवन के यथार्थ और संघर्षों को बखूबी अपने कथा फलक पर उभारा है।आपका रचना संसार व्यापक और विस्तृत है । आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं – उपन्यास – चेहरों वाला आदमी,छोटी मछली –बड़ी मछली, बनते बिगड़ते रिश्ते, विराट गली के बासिंदे, पथरीला सोना । कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म एक भूल । लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे ,यात्रा साथ-साथ , एक धरती एक आकाश , आते जाते लोग , मैं और मेरी लघुकथाएं । व्यंग्य संग्रह – कल्जुगी करम-धरम , बंदे आगे भी देख , चेहरों के झमेले , पापी स्वर्ग । इसके अतिरिक्त आपके लेख एवं रचनायें वैश्विक स्त्तर की पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं । पथरीला सोना आपके द्वारा रचित विशिष्ट उपन्यास है , जिसमें प्रवासी मजदूरों की संघर्ष गाथा को बहुत ही तल्ख़ रूप में उभारा गया ह

How To Learn Hindi (हिन्दी कैसे सीखें )

 Learning is process हिन्दी आज के समय में वैश्विक आवश्यकता बन चुकी है  . ऐसे समय में भाषा शिक्षण और भाषा सीखने की प्रक्रिया सामान्यतः समय की जरुरत है . एक व्यक्ति अपने जीवन काल में छः भाषाएँ सीख सकता है . ऐसे में यह तथ्य हमारे समक्ष आ जाता है कि कोई भी भाषा सीखते समय वो कौन सी बातें हैं जिसे हमें ध्यान रखना चाहिए . भाषा सीखने के लिए निम्नलिखित बातों को विशेष ख्याल रखना चाहिए -     भाषा की वर्णमाला का ज्ञान ( Knowledge  of alphabets )     व्याकरण का ज्ञान ( Knowledge of grammar)      शब्दकोश का ज्ञान ( Knowledge of vocabulary)      भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का ज्ञान  (Knowledge of Social and Cultural Circumstance )     लिपि का ज्ञान ( Knowledge of Script )     भाषा के सीखने की प्रक्रिया मूलतः मानसिक है , यदि हम यह तय कर लेते हैं कि हमें इस भाषा में वाचन और लेखन कौशल हासिल करना है तो हम वह भाषा आसानी से सीख सकते हैं . हिन्दी एक ऐसी भाषा है ,जिसमें वर्णों की संख्या अंग्रेजी की अपेक्षा तो अधिक है ,यकीन अन्य भाषाओँ की अपेक्षा कम है . इसके साथ-साथ हिन्दी भाषा एक वैज्ञानिक भी है .

अभिव्यंजनावाद: बेनेदेतो क्रोचे (Benedetto Croce -25 Feb 1866 to 20 Nov 1952)

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  पाश्चात्य साहित्य चिन्तन के आधुनिक विचारकों में क्रोचे का विशेष महत्व है , इसने साहित्य , कला , इतिहास , और दर्शन जगत को अपने विचारों से प्रभावित किया । प्रख्यात इटालियन दार्शनिक क्रोचे की सर्वाधिक ख्यातिलब्ध रचना फिलोसोफी ऑफ़ स्पिरिट ( Philosophy of the Sprit ) है । जिसके चार खंड हैं –एस्थेटिक्स ,लॉजिक, फिलोसोफी ऑफ़ कंडक्ट, थ्योरी एंड हिस्ट्री ऑफ़ हिस्टोरियोग्राफ़ी ।                1. Aesthetics   ( एस्थैटिक्स)    2.  Logic (लॉजिक)          3.   Philosophy of Conduct (फिलोसोफी ऑफ़ कंडक्ट) 4. Theory and History of Historiography (थ्योरी एंड हिस्ट्री ऑफ़ हिस्टोरीयोग्राफी)   क्रोचे ने साहित्यशास्त्र को बहुचर्चित सिद्धांत दिया, जिसे हम अभिव्यंजनावाद के नाम से जाना जाता है । यह एक ऐसा सिद्धांत है ,जिसने साहित्य के साथ-साथ कला एवं संगीत को भी प्रभावित किया । क्रोचे महान साहित्यशास्त्री और दर्शनशास्त्री था ,जिसने अपने विचारों से जीवन-जगत से जुड़े चिन्तन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है । अभिव्यंजनावाद ( Expressionism)   की स्थापना क्रोचे ने अपने बहुचर्चित ग्रन्थ फिलोसोफी ऑफ़ स्पिरिट  

विशेषण निपुणता (Comprehension Skill )

         विशेष निपुणता विशेष निपुणता भाषा कौशल का अभिन्न अंग है . विशेष निपुणता से हमारी सम्प्रेषण क्षमता का विकास होता है . विधि व्यवसाय में लेखन और वाचन का बहुत महत्व है ,जिससे हम अपने पक्ष को प्रभावी ढंग रख सकने में सक्षम होते हैं . विधि के क्षेत्र में  ड्राफ्टिंग का महत्व सभी जानते हैं, ड्राफ्टिंग के साथ- साथ अपनी बातों को हमें किस रूप में प्रस्तुत करना है, यह हम भाषा ज्ञान द्वारा ही जान  सकते हैं . भाषा कौशल के निम्नलिखित अंग हैं -  1.वाचन  2.लेखन  3. पाठन   1.वाचन  -वाचन का आशय बोलने से है . बोलना और प्रभावी ढंग  से बोलना दोनों दो बातें हैं . बोलते तो सभी लोग हैं ,लेकिन कुछ लोग ऐसा बोलते हैं कि हम उनसे  प्रभावित हुए बिना नहीं रह पते . यह वाचन का कौशल ही है कि हम प्रभावित हो जाते हैं . कब क्या बोलना है ?और कैसे बोलना है ?यह विशेष निपुणता हासिल करके ही जान  सकते हैं . शब्दों का चयन और उनके क्रम का निर्धारण और बोलने का लहजा विशेष निपुणता के अंग हैं .  2. लेखन   -भाषा कौशल का दूसरा महत्वपूर्ण अवयव लेखन है ,लेखन को कला के रूप में भी स्वीकार किया गया है. यदि हम अपने वक्तव्य को व्यवस्थि

रसप्रिया : फणीश्वर नाथ रेणु

हिन्दी कथा साहित्य के विकास में फणीश्वर नाथ रेणु का विशेष योगदान है । प्रेमचन्द और जैनेन्द्र के बाद हिन्दी कथा साहित्य को नया आयाम देने वालों में रेणु का नाम अग्रणी है । रेणु हिन्दी साहित्य के ऐसे कथाकारों में से हैं , जिनकी किस्सागोई का कोई जबाब नहीं है । कहानी कहने और संवेदन को जीवंत और सरस बनाने की कला में आप माहिर हैं । जीवन के समस्त राग-रंग को समग्रता में जीने और उसे अपने लेखन द्वारा जीवंत रूप में प्रस्तुत करने के कारण रेणु का कथा साहित्य में अत्यंत लोकप्रिय हैं । रेणु ने ग्राम्यांचल को बहुत शिद्दत से देखा और भोग था । अंचल के कुशल चितेरे की तरह बोली/बानी /गीत/संगीत और लोक कलाओं को आपने बड़े ही सहज रूप में प्रस्तुत किया ।आपकी इसी विशेषता के कारण आप आंचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्द हैं । मैला आँचल आपके द्वारा रचित प्रसिद्द आंचलिक उपन्यास है, जिसे अधिकांश आलोचकों द्वारा पहला आंचलिक उपन्यास माना गया है । रेणु की अन्य कृतियाँ हैं – कितने चौराहे , जूलूस , दीर्घतपा . परती परिकथा , पलटू बाबू रोड (उपन्यास )अग्निखोर ,अच्छे आदमी ,ठुमरी (कहानी संग्रह ) । इसके अलावा आपने कुछ निबंध और संस्मरण

उदात्त सिद्धांत ( लोंगिनुस /लोंग्जाइनस )

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  पाश्चत्य काव्यशास्त्र में उदात्त सिद्धांत का विशेष महत्व है   ।   प्लेटो और अरस्तू से भिन्न और उसके समकालीन साहित्य शास्त्र में उदात्त सिद्धांत को स्थान दिया गया है   ।उदात्त का प्रतिपादन लोंगिनुस ने किया   । लोंगिनुस मूलतः भाषणशास्त्री था , उसके द्वारा रचित पेरिहुप्सुस का एक तिहाई ही प्राप्त हुआ   ।   जो अपने आप में विलक्षण ग्रन्थ है , यह साहित्य शास्त्र का सौभाग्य है कि यह ग्रन्थ अधूरे में ही सही मिला तो सही     । इसके माध्यम से लोंगिनुस ने उदात्त सिद्धांत को साहित्य जगत के सम्मुख रखा     । यह अपने आप में एक असाधारण लेख है , जिसमें एक प्रभावशाली रचना के गुणों का विवेचन किया गया है     । लांगजाइनस सिद्धांत का प्रतिपादक - लोंगिनुस/ लांगजाइनस उदात्त की महत्ता - उदात्त के प्रतिपादक तत्वों का समावेश कर किसी रचना को सर्वकालिक महान रचना बना सकते हैं, इसका महत्व सम्मोहन में है. लोंजाइनस ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन अपने विस्मयकारी ग्रन्थ पेरिहुप्सुस में किया.It is height of sublime. ( वाग्मिता का प्रकर्ष)  Also visit and subscribe my YouTube channel for content of hindi literature and langu