कामायनी
कामायनी हिन्दी साहित्य का ही नहीं अपितु विश्व का बेजोड़ ग्रन्थ है। यह प्रसाद की अन्तिम और अन्यतम कृति है। इसका प्रकाशन 1936 ई. में हुआ। "कामायनी" कवि की अन्य रचनाओं की भाँति दी चार क्यों की कल्पना और लेखन का परिणाम नहीं है। इसकी रचना प्रायः नी वर्षों में पूरी हुई। इसका लेखन 1927 ई. को बतनापंचमी को प्रारम्भ हुआ, इसका समापन 1955 ई. की महाकालरात्रि (शिवरात्रि) को हुआ। वस्तुतः कामायनी जैसी रचना किसी कवि की जीवन-व्यापी साधना, लम्बी वैचारिक और सृजनात्मक शक्ति और गहन दार्शनिक दृष्टि का ही परिणाम हो सकती है। इस महाकाव्य में कवि ने दार्शनिक आधार पर आनन्द को प्रतिष्टा की है। इस कथा का मुख्य आधार है-मनु का पहले श्रद्धा को, फिर इहा को पानी के रूप में स्वीकार करना। कथा में एक "रूपक" है। इसके अनुसार बढ़ा विश्वास समन्वित रागात्मक वृति है और इड़ा व्यवसायित्मिका बुद्धि। कवि ने श्रद्धा को मृदुता, प्रेम और करूणा का प्रवर्तन करने वाली सच्चे आनन्द तक पहुंचाने वाली के रूप में चित्रित किया है। इड़ा या बुद्धि को अनेक प्रकार के कार्य-व्यवसायों में प्रवृत्त करती हुई, कर्मों में उलझाने वाली क