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उत्तर आधुनिकता क्या है ?

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उत्तर आधुनिकता आधुनिकता की तरह पाश्चत्य चिन्तन परम्परा की देन है ,जैसे - जैसे हमारे सामाजिक जीवन में परिवर्तन होते हैं, वैसे- वैसे हमारा चिन्तन भी बदलता जाता है. आज का हमारा जीवन बाजार पर आधारित हो चला है . उत्तर आधुनिकता उन्हीं में से एक अत्यंत जटिल प्रत्यय है। समाधी दर्शन के रूप में उसका कोई निश्चित निर्मित नहीं हो पाया है। कुछ लोगों द्वारा मार्क्सवादी दर्शन(हालैटिक्स) द्विधम सामाजिक परिवर्तनों राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संक्रमणों आदि के रूप में देखा जा रहा है। कभी-कभी उसे आधुनिकतावाद कारण अथवा विकिरण भी समझ गया है बौद्धिक मौका जे इसे एक जटिल अवधारणा विचार बना दिया है। उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टि आधुनिकतावादी धारणा के गर्भ से उत्पन्न क्रमण है। अतः आवश्यक है कि इस प्रत्यय को स्पांकित करने से पूर्व पश्चिम के वैचारिक परिदृश्य को दृष्टिपथ में रखा जाए और इस क्षेत्र को विधारणाओं को समुद्र कर कुछ पर पहुँचा जाये . उत्तर आधुनिकता उन्हीं में से एक अत्यंत जटिल प्रत्यय है। समाधी दर्शन के रूप में उसका कोई निश्चित निर्मित नहीं हो पाया है। कुछ लोगों द्वारा मार्क्सवादी दर्शन(हालैटिक्स) द्विधम सामाजिक परि

कोसी का घटवार: प्रेम और पीड़ा का संत्रास सुनील नायक, शोधार्थी, काजी नजरूल विश्वविद्यालय आसनसोल, पश्चिम बंगाल

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  परिवेश का अकेलापन व्यक्ति के अकेलेपन को और अधिक पीड़ादायक बना देता है। इसी परिप्रेक्ष्य में हिंदी कहानी में ‘ कोसी का घटवार ‘ बहुत चर्चित है। हैदराबाद से ‘ कल्पना ‘ पत्रिका के जनवरी 1957 ई० के अंक में शेखर जोशी की कहानी ‘ कोसी का घटवार ‘ प्रकाशित हुई। इसी से इन्हें विशेष ख्याति मिली। शेखर जोशी की कहानी ‘ कोसी का घटवार ’ एक ऐसी कहानी है जिसके अंदर प्रेम की व्यथा से लेकर समाज के परिदृश्य के साथ - साथ जीवन के परिचायक को दिखाया गया है। शेखर जोशी की इस बेहद खूबसूरत कहानी में कहीं पर भी ‘ प्रेम ‘ शब्द नहीं आया है , कहीं पर भी दोनों पात्रों ने कभी आंखें नहीं मिलाई हैं। दोनों ने एक दूसरे को छुआ भी नहीं है। न ही कोई वादा किया है और न किसी किस्म की कसमें ही खायी हैं। इसके बावजूद यह प्रेम की अद्भुत कहानी है। इस कहानी में प्रेम भी है और पीड़ा भी। लेखक स्वयं कहता है कि यह कहानी पहाड़ के कहानीकार की मनोवृत्ति का भी चित्रण करती है। वास्तव में ह