मेहमान का पन्ना
मनाओ सब मिल संग रंग महोत्सव ।।
हाथ लिए पिचकारी, थैलियाँ, अबीर, गुलाल
बच्चे और ये बड़े घूमे मचाये बवाल ।
गुझिया, नमकपारा, आलू के पापड़
ठंडाई रस बिखेर रही घर-घर।
फागुन की है ठंड और बसंत की बोली
खेलों सब मिल संग कि आई है होली ।
बैर मिटे सब मन के तन निकले निखरा सा
होलो सब संग यही है होली की भाषा ।।
रंगों का है पर्व यह होली का उत्सव ।
मनाओ सब मिल संग रंग महोत्सव ।।
डा. तरु मिश्रा
(असिस्टेंट प्रोफेसर ,एमिटी लॉ स्कूल ,एमिटी यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश )
खुशियों का सामान बहुत है
फिर भी दिल, परेशान बहुत है
मिट्टी में मिल जाएगा कल
आज जो आलीशान बहुत है
जिन झूठे रिश्ते-नातों पर
अकड़ और अभिमान बहुत है
सारे मतलब के साथी हैं
मत समझो पहचान बहुत है
जो अगले पल ढल जानी है
उस पर तुझको शान बहुत है
आसमान में उड़ने वाले
तू अब भी नादान बहुत है
भीतर-भीतर टूट चुका है
बाहर से मुस्कान बहुत है
दुनिया टेढ़ी खीर है ‘नैतिक’
मत समझो आसान बहुत है
डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव ‘नैतिक’
चेन्नई
"मां का आँचल सुख का आँगन"
"माँ का आँचल सुख का आंगन"
मां का आँचल सुख का आँगन
मां की लोरी सुख की सरगम
मां का हँसना प्रथम उल्लास
माँ की गोद मे मेरा मधुमास।।
तुम हो मां मेरा मन मंदिर
तुमसे ही मिला मुझको जीवन
बार बार तेरी ही कोख से
लूं इस दुनिया में जनम।।
तुमने पहला कदम सिखाया
उंगली थाम बढ़ना सिखलाया
चलते चलते जब भी गिरी में
तूने बाहों में है झुलाया।।
माँ का आँचल.....
मेनें भगवान को कब देखा
जब जब देखा तुझमें देखा
मेरा धर्म भी तुम ईमान भी तुम
ईश्वर से भी बड़ी प्रार्थना हो तुम।।
मां का आँचल.....
सुख ही सुख तूने सदा दिया
दुःख को तूने पर किया
जीवन भर की पूंजी को
तूने बच्चों पर है बार दिया।।।
मां का आँचल .....
अपने दुखों को छिपा छिपाकर
जाने कैसे तुम हंस लेती हो
अपने दर्द को भुला
नित नए सुख हंमे देती हो
ऐसी हो मां वसुधा की तुम
तुमपर यह जीवन बलिदान।।
माँ का आँचल......
डॉ बसुन्धरा उपाध्याय
हृदय को मोहित कर रही है
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteमजदूर की परिभाषा तो बहुत ही अच्छे से बताया आपने इनके कविता को पढ़कर बहुत अच्छा लगा धन्यवाद आपका गुरु जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
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