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कविता का सम्प्रेषण: अज्ञेय

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कविता का सम्प्रेषण तार सप्तक की भूमिका प्रस्तुत करते समय इन पंक्तियों के लेखक में जो उत्साह वा उसमें संवेदना की तीव्रता के साथ निस्सन्देह अनुभव-हीनता का साहस भी रहा होगा। संवेदना की तीव्रता अब कम हो गयी है, ऐसा हम नहीं मानना चाहते, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि अनुभव ने नये कवियों का संकलन प्रस्तुत करते समय दुविधा में पड़ना सिखा दिया है। यह नहीं कि तीसरा सप्तक के कवियों की संगृहीत रचनाओं के बारे में हम उससे कम आश्वस्त, या उनकी सम्भावनाओं के बारे में कम आशामय है जितना उस समय तार सप्तक के कवियों के बारे में थे। बल्कि एक सीमा तक इससे उल्टा ही सच होगा। हम समझते हैं कि तीसरा सप्तक के कवि अपने-अपने विकास क्रम में अधिक परिपक्व और मुंजे हुए रूप में ही पाठकों के सम्मुख आ रहे हैं। भविष्य में इनमें से कौन कितना और आगे बढ़ेगा, वह या तो ज्योतिषियों का क्षेत्र है या स्वयं उनके अध्यवसाय का तीसरा सप्तक के कवि भी एक ही मंजिल तक पहुँचे हों, या एक ही दिशा में चले हों या अपनी अलग दिशा में भी एक-सी गति से चलें हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। निस्सन्देह तार सप्तक में भी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि संगृहीत कवि सब अप...

समकालीन हिन्दी आलोचक परिचय

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समकालीन आलोचक परिचय 1.शमशेर बहादुर सिंह जन्म 1911, नियन 1993 कबीर सम्मान तथा साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कवि। आलोचना ग्रंथ दोआब कुछ गद्य रचनाएं कुछ और गय रचनाएँ। 2. सच्चिदानन्द वात्स्यायन जन्म 1911, निधन 1987 साहित्य अकादेमी, भारतीय ज्ञानपीठ तथा भारतभारती पुरस्कार से सम्मानित कवि  आलोचना ग्रंथ : त्रिशंकु, हिन्दी साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, संवत्सर, आत्मनेपद, आलवाल 3. रामविलास शर्मा जन्म 1912 साहित्य अकादेमी, भारतभारती पुरस्कार, शताका सम्मान तथा व्यास सम्मान प्राप्त आलोचना ग्रंथ : निराला की साहित्य साधना (तीन खण्डों में) महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण ,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएं, प्रेमवन्द और उनका युग, नयी कविता और अस्तित्ववाद, परम्परा का मूल्यांकन, आस्था और सौन्दर्य ,मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि, इतिहास दर्शन, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, भारतीय साहित्य की भूमिका । 4. गजानन माधव मुक्तिबोध जन्म 1917 निधन 1964  कवि/कहानीकार आलोचक। आलोचना ग्रंथ :कामायनी एक पु...

हिन्दी आलोचना का इतिहास (History of HIndi Criticism )

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  हिन्दी के प्रमुख आलोचक - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, पद्म सिंह शर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी, राम चन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नागेन्द्र, नन्द दुलारे बाजपेयी, अज्ञेय भारतेन्दु युगीन हिन्दी आलोचना- वर्णनात्मक आलोचना  तुलनात्मक आलोचना व्याख्यात्मक आलोचना  द्विवेदी युगीन  हिन्दी आलोचना- तुलनात्मक आलोचना  विवेचन परक आलोचना व्याख्यात्मक आलोचना शुक्ल युगीन हिन्दी आलोचना-  विश्लेषण परक आलोचना विवेचन परक आलोचना  इस युग में आलोचना का प्रौढ और व्यवस्थित रुप देखने को मिलता है, आचार्य रामचन्द्र ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखकर हिन्दी आलोचना को नयी दिशा प्रदान की|इसके साथ ही हिन्दी आलोचना में  नई परम्परा चल पडी . इनके प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ हैं - त्रिवेणी, हिन्दी साहित्य का इतिहास, भ्रमरगीत सार की भूमिका, विश्व प्रपंच, चिन्तामणि में संकलित आलोचनात्मक निबंध. 

मनोविश्लेषण:फ्रायड

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मनोविश्लेषण:फ्रायड-   मनोविश्लेषण   मनोविज्ञान की एक पद्धति है , जिसके जनक विमान के मस्तिष्क चिकित्सक सिग्मण्ड फ्रायड ( Sigmund Freud 1856)  थे। इस पद्धति के विकास में यद्यपि प्रायड के कई एक सहयोगी मनोवैज्ञानिकों ने लिया है , तथापि इसके विकास में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने का श्रेय फ्रायड के सहयोगी एवं शिष्य एडलर ( Adler) तथा कार्ल जुग ( Karl Jung) को ही दिया जाता है। वस्तुतः मनोविश्लेषण मानसिक एवं स्नायविक रोगियों के उपचार की एक विशेष विधि है , जिसके आविष्कारक फ्रायड अपने समसामयिक सम्मोहन विशेषज्ञ शारकों एवं याने तथा वियना के चिकित्सक बूबर से पर्याप्त प्रभावित थे। यही नहीं , इन सम्मोहन विशेषज्ञ चिकित्सकों ने फ्रायड से पूर्व ही प्रयोगात्मक आधार पर यह सिद्ध कर दिया था कि सम्मोहन के क्षणों ( Hypnotized State) में रोगी एक ऐसी अबोध अवस्था को उपलब्ध होता है , जिसमें उसके अन्तर्मत को उन बाते को भी जाना जा सकता है , जिन्हें वह बोध के समय कभी न बताता। यही नहीं एक निश्चित सीमा तक इस अबोध तारल्यमय अवस्था में व्यक्ति से कोई भी कार्य कुराया जा सकता है। परिणामतः यह निष्कर्ष निका...

हिन्दी साहित्य इतिहास : काल विभाजन

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  #हिन्दी_साहित्य_इतिहास This is link of my youtube Channel for more info Please visit - https://youtu.be/RYybN7f6Xuk 1.काल विभाजन -      आदि काल      (वीरगाथा काल, चारण काल, बीज वपन काल, संक्रांति काल, आरम्भिक काल -1050 से 1350) 2. भक्ति काल ( पूर्व मध्य काल- 1350 से 1650)      सगुण भक्ति काव्य धारा -              राम भक्ति         कृष्ण भक्ति निर्गुण भक्ति काव्य धारा -           ज्ञान मार्गी          प्रेम मार्गी 3. रीति काल ( उत्तर मध्य काल - 1650 से 1850) रीति सिद्ध रीति बद्ध रीति मुक्त 4. आधुनिक काल (1850 से 1980) भारतेन्दु युग (1850-1900) द्विवेदी युग ( 1900- 1918) छायावाद (1918-1936) प्रगतिवाद (1936- 1943) प्रयोगवाद (1943-1954) नयी कविता (1954-1960) साठोत्तरी कविता (1960-1980) जनवादी साहित्य एवं उत्तर आधुनिक...

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

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    सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" ' निराला ' सार्वभौम प्रतिभा के शुभ्र पुरुष थे। उनसे हिन्दी कविता को एक दिशा मिली जो द्विवेदीयुगीन इतिवृत्तात्मकता , उपदेश-प्रवणता और नीरसता के कंकड़-पत्थरों के कूट-पीसकर बनाई गई थी। वे स्वयं इस राह पर चले और अपने काव्य-सृजन को अर्थ-माधुर्य , वेदना और अनुराग से भरते चले गये। यही वजह है, कि उनका काव्य एक निर्जीव संकेत मात्र नहीं है। उसमें रंग और गंध है , आसक्ति और आनन्द के झरनों का संगीत भी है ,तो अनासक्ति और विषाद का मर्मान्तक स्वर भी है। उसे पढ़ते समय आनन्द के अमृत-विन्दुओं का स्पर्श होता है, और मन का हर कोना अवसाद व वेदना की धनी काली परतों से घिरता भी जाता है। इतना ही क्यों , उनके कृतित्व में "नयनों के लाल गुलाबी डोरे" हैं , " जुही की कली" की स्निग्ध , भावोपम प्रेमिलता भी है ,तो विप्लव के बादलों का गर्जन-तर्जन भी है। "जागो फिर एक बार" का उत्तेजक आसव भी है और जिन्दगी की जड़ों में समाते-जाते खट्टे-मीठे करुण-कोमल और वेदनासिक्त अनुभवों का निचोड़ भी है। वे यदि एक ओर "किसलय वसना नव-वय लतिका" के सौं...