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लिपि की परिभाषा और महत्त्व, देवनागरी लिपि (Definition & Importance of Script :Devnagari )

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इस ब्लॉग को पढ़ कर आप निम्नलिखित तथ्यों से अवगत होंगे - 1. लिपि की परिभाषा  2. भाषा को दीर्घजीवी बनाने में लिपि का महत्व 3. देवनागरी लिपि के विविध पक्ष  लिपि की परिभाषा और महत्त्व भाषा के लिखित प्रतीकों की व्यवस्था लिपि कहलाती है। लिपि किसी भाषा की लगभग सभी ध्वनियों को प्रतीकरूप में प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से भाषा के सन्देशों को स्थायित्व मिलता है और लोग एक दूसरे के साक्षात् सम्पर्क में आए बिना सन्देशों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। प्राचीन भाषाओं के लिपि चिह्नों को चित्रों के रूप में बनाया जाता था , लेकिन इस विधि से सभी सन्देशों को पूरी तरह से व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए लिपि में मौखिक भाषा की ध्वनियों को संकेतबद्ध किया जाता है। इन ध्वनि संकेतों को ही उस भाषा की लिपि कहा जाता है। इन विशेषताओं के आधार पर लिपि को अनेक प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-   1.    .       लिपि लिखित संकेतों की व्यवस्था है जिसमें मौखिक भाषा की ध्वनियों को व्यक्त किया जाता है। 2.       ...  मौखिक भाषा की ध्वनियों को लिखित रूप में ...

ठेस: एक कलाकार के आत्म सम्मान और बोध का आख्यान

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  रेणु की लेखनी से अनेकानेक चरित्रों की सर्जना हुई है । इन्हीं चरित्रों में अत्यंत विशिष्ट चरित्र है - सिरचन का । सिरचन के हाथों में हुनर है और उसके चरित्र में गाम्आत्म्मन भी है , जो एक कलाकार में होना चाहिए । रेणु ठेस कहानी के माध्यम से एक कलाकार के चरित्र को उसकी समस्त सीमाओं और सामर्थ्य के साथ कथा फलक पर उकेरा है ,एक बेहतरीन कलाकार ,एक आत्म सम्मानी व्यक्ति और एक संवेदनशील एवं उदार ह्रदय सिरचरन के पास है । यही उसे विशिष्ट बनाती है ,रेणु एक बहुत ही खास विशेषता है कि वह चरित्र की सर्जना बड़ी शिद्दत से करते हैं ।अपनी कलम से रेणु ने एक चित्रकार की तरह सिरचन के व्यक्तित्व को ठेस कहानी में मूर्त कर दिया है ।फणीश्वर नाथ रेणु की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वो रूप ,गंध, हाव-भाव की सूक्ष्म से सूक्ष्मत्तर भंगिमा को इस तरह उकेरते हैं कि पूरा दृश्य ही हमारे समक्ष प्रस्तुत हो उठता है ।प्रस्तुत है ठेस कहानी आप भी पढें सिरचरन को....... खेती-बारी के समय, गांव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते. लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं. इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिर...

रसप्रिया : फणीश्वरनाथ रेणु

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रसप्रिया फणीश्वरनाथ रेणु धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा - अपरुप-रुप! ...खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल हो गईं। मोहना ने मुस्करा कर पूछा, 'तुम्हारी उँगली तो रसपिरिया बजाते टेढ़ी हो गई है, है न?' 'ऐ!' - बूढ़े मिरदंगिया ने चौंकते हुए कहा, 'रसपिरिया? ...हाँ ...नहीं। तुमने कैसे ...तुमने कहाँ सुना बे...? https://youtu.be/90lmN7BRRsI 'बेटा' कहते-कहते रुक गया। ...परमानपुर  उस बार एक ब्राह्मण के लड़के को उसने प्यार से 'बेटा' कह दिया था। सारे गाँव के लड़कों ने उसे घेर कर मारपीट की तैयारी की थी - 'बहरदार होकर ब्राह्मण के बच्चे को बेटा कहेगा? मारो साले बुड्ढे को घेर कर! ...मृदंग फोड़ दो।' मिरदंगिया ने हँस कर कहा था, 'अच्छा, इस बार माफ कर दो सरकार! अब से आप लोगों को बाप ही कहूँगा!' बच्चे खुश हो गये थे। एक दो-ढाई साल के नंगे बालक की ठुड्‌डी पकड़ ...