मनोविश्लेषण:फ्रायड

मनोविश्लेषण:फ्रायड-

 

मनोविश्लेषण मनोविज्ञान की एक पद्धति है, जिसके जनक विमान के मस्तिष्क चिकित्सक सिग्मण्ड फ्रायड (Sigmund Freud 1856) थे। इस पद्धति के विकास में यद्यपि प्रायड के कई एक सहयोगी मनोवैज्ञानिकों ने लिया है, तथापि इसके विकास में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने का श्रेय फ्रायड के सहयोगी एवं शिष्य एडलर (Adler) तथा कार्ल जुग (Karl Jung) को ही दिया जाता है। वस्तुतः मनोविश्लेषण मानसिक एवं स्नायविक रोगियों के उपचार की एक विशेष विधि है, जिसके आविष्कारक फ्रायड अपने समसामयिक सम्मोहन विशेषज्ञ शारकों एवं याने तथा वियना के चिकित्सक बूबर से पर्याप्त प्रभावित थे। यही नहीं, इन सम्मोहन विशेषज्ञ चिकित्सकों ने फ्रायड से पूर्व ही प्रयोगात्मक आधार पर यह सिद्ध कर दिया था कि सम्मोहन के क्षणों (Hypnotized State) में रोगी एक ऐसी अबोध अवस्था को उपलब्ध होता है, जिसमें उसके अन्तर्मत को उन बाते को भी जाना जा सकता है, जिन्हें वह बोध के समय कभी न बताता। यही नहीं एक निश्चित सीमा तक इस अबोध तारल्यमय अवस्था में व्यक्ति से कोई भी कार्य कुराया जा सकता है। परिणामतः यह निष्कर्ष निकाला गया कि सम्मोहन के क्षणों में मानसिक रोगों के चेतन मन से परे अचेतन मन की तह तक पहुँचा जा सकता है। वस्तुतः फ्रायड ने अपनो मनोविश्लेषण पद्धति का इसी आधार पर शिलान्यास किया है। फ्रायड ने स्वयं मानसिक स्नायविक रोगियों पर प्रयोगों के दौरान यह अनुभव किया है कि सम्मोहन-क्रिया (Hypnotism) अथवा वार्तालाप में स्वच्छन्द विचार साहचर्य से अन्तर्मन में घनीभूत बहुत-सी पुरानी अनुभूतियाँ पुनरुज्जीवित हो उठती हैं। फलतः उन्होंने अपनी मनोविश्लेषण पद्धति का इसी आधार पर प्रतिपादन किया।

फ्रायड के मनोविश्लेषण सम्बन्धी आन्दोलन का प्रादुर्भाव- 1895 और 1900 में लिखी हुई उनकी पुस्तकों से माना जाता है। 1895 में उन्होंने जे० ब्रेडर (J Breuer) के सहलेखन में 'स्टडोज इन हिस्टरी' (English translation Studies in Hysteria) लिखी तथा 1900 में डाइ ट्राउमडिउटंग (English transalation The Interpreation of Dream) मनोविश्लेषण पद्धति पर उनको सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सारगर्भित पुस्तक 1938 में अंग्रेजी में अनुवादित होकर 'एन आउट लाइन आफ सायको एनालेसिस' (An Outline of Psychoanalysis) के नाम से प्रकाशित हुई । यद्यपि फ्रायड का साहित्य बड़ा विस्तृत है, तथापि यह पुस्तक मनोविश्लेषण पद्धति पर प्रस्तुत किया हुआ उनका विशिष्ट एवं अन्तिम विवेचन है। फ्रायड की मनोविश्लेषण पद्धति की प्रमुख स्थापनाएँ इस प्रकार हैं व्यक्तित्व निर्माण सम्बन्धी अवधारणा

व्यक्तित्व के निर्माण सम्बन्धी अवधारणा -फ्रायड की प्रथम अवधारणा मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण सम्बन्धी है। वे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का शिल्पीकरण तीन निकायों (Systems) के अधीन मानते हैं यथा-'इद' (ld), अहम् (Ego) एवं अत्यहम् (Super Ego) | 'इद' मनुष्य का सहजात निकाय है। 'इद' एक प्रकार की उस सहजवृत्त्यात्मक ऊर्जा (Instinctual energy) का भण्डार है, जिसका व्यय मनुष्य को प्रतिवर्ती क्रियाओं (Reflex actions) एवं विभ्रमों (Hallucinations) के परितोष में होता है। 'इद' का उद्देश्य मनुष्य को कष्टकारक तनावों से मुक्त करना होता है, अर्थात् जब कभी भी मनुष्य किसी भी सहजवृत्ति के आकर्षण के कारण तनाव अनुभव करता है, तभी 'इद' उस वृत्ति को तुष्टि के लिये प्रयत्नशील होता है। इसीलिये फ्रायड ने इसे सुख- सिद्धान्त (Pleasure principle) भो कहा है।


मनुष्य में 'अहं' का निर्माण मूलतः संज्ञानात्मक एवं बौद्धिक प्रक्रियाओं के द्वारा जन्मोपरान्त धीरे-धीरे होता है। चूँकि 'अहं' का प्रधानोद्देश्य 'इद' को सहज वृत्तियों को माँगों की पूर्ति अथवा तुष्टि बाह्य जगत से करना होता है, इसलिए फ्रायड ने इसे वास्तविक सिद्धान्त (Reality Principle) के नाम से अभिहित किया है, अर्थात् 'अहं' वास्तविक सिद्धान्ताधीन कार्यरत होता है। अत्यहम् (Super E का निर्माण दो उतंत्र (Super System के अधीन होता १. आदर्श विवेक अपवा आदर्श प्रायड के अनुसार, सामाजिक आदशों मूल्यों एवं नीतिपरक मानकों तथा सदाचार सम्बन्धी प्रतिषेधों में निर्मित होता है। चूँकि के नियामक समाजगत आदर्श मूल्य एवं मान्यता है इम्पूर्ण अथवा आदर्शवादी (Perfection priociples से परिचालित होता है।

वृतियाँ सम्बन्धी अवधारणा

फ्रायड की बात को भलीभांति समझने के लिए उनकी हत् अवधारणा को समझना आवश्यक है। उनका विश्वास है कि प्रत्येक नैसर्गिक पूर्ति (Instinct) का एक उद्गम (Sources एक लक्ष्य (Aim), सध्य-प्राप्ति का एक साधन (Object) और एक प्रेरित करने वाला संवेग (Impetus) होता है। उनके अनुसार शारीरिक उतेजन (Bodily excitation) ही वृद्धि का उद्गम अथवा स्रोत है। जब शारीरिक उतेजन हो जाता है तो उस उत्तेजन से मुक्ति पाना हो उस वृत्ति का लक्ष्य होगा और इस लक्ष्य को प्राति जिस माध्यम से की जायेगी वह साधन (Object) कहलायेगा तथा वृत्तियों को प्रोलेजित करने वाली शक्ति ही उसका संवेग अथवा प्रेरक बल (Impetius) कहा जायेगा। अर्थात् मानव की प्रत्येक सहज वृत्ति (Instinct) शारीरिक उत्तेजना के कारण हो जन्म लेती है अथवा जाग्रत हो जाती है। वृत्ति अपने उद्भव के पश्चात् अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये निश्चित माध्यम के सहारे प्रयत्नशील रहती है। परन्तु आवश्यक नहीं है कि वृत्ति की तुष्टि हो ही जाये, क्योंकि उसके प्रयोजन की प्राप्ति में आई और अत्यहम् बाधक हो जाते हैं। इस बात को उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है। एक मांसल एवं गदराये हुए शरीर वाली युवती को देखकर मान लीजिये किसी युवक-मन के तार शंकृत हो उठते हैं। युवक प्रोतेजन का अनुभव करता है। प्राइट के अनुसार युवक की उत्तेजना संबंधी अनुभूतियाँ ही युवती को प्राप्त करने संबंधी काम-वृत्ति के उद्भव का स्रोत कहलायेंगी तथा युवक के हृदय की प्राप्ति लालसा जनित मानसिक उत्तेजना से मुक्ति पाने का संकल्प हो उस काम-वृत्ति का उद्देश्य समझा जायेगा। इस उद्देश्य प्राप्ति के लिये कामवृति साधन खोजेगी जो कि उस वृत्ति का आब्जेक्ट' कहलायेगा। और इस सारे व्यापार में काम-वृत्ति को जो निरंतर प्रेरित करने वाला संवेग होगा, फ्राइड के अनुसार यह उस काम-वृति का 'इम्पट' (Impetius) अथवा प्रोजक बल होगा। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि युवक की उस काम वृति का तो हो ही जाये, क्योंकि आहे और अन्यहम् (समाजगत मूल्य आशं. मान्यतायें एवं सदाचार संबंधी धारणायें) संतुष्टि के मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। फ्रायड की धारणा है कि अह और अत्यहम् प्रीतेजक बल का प्रयोग वृत्यात्मक उद्देश्य पूर्ति में भी लगा सकते हैं और उद्देश्य पूर्ति के मार्ग में अवरोध करने के लिये भी फ्राइड ने मनोविश्लेषण को एक गत्यात्मक विधि के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें कि मनुष्य का मानसिक जीवन प्रेरक एवं नियंत्रण शक्तियों को पारस्परिक अन्योन्यक्रिया (Internaly) के रूप में गतिमान रहता है। फ्राइड के शब्दों में" A dynamic Conception which reduces mental lifes the interplay of reciprocally urging und checking forces "

 

और जब प्रेरक शक्तियों से नियंत्रक शक्तियों अधिक बलशाली होती है वृत्यात्मक ऊर्जा (Institual energy के अवरोपण अथक क्षरण में अवरोध उत्पन्न हो जाता है परिणामत: मनुष्य का मानसिक तनाव बढ़ जाता है।

अचेतन संबंधी अवधारणा

फ्रायड ने मनोविश्लेषण सिद्धान्त विवेचन के प्रारम्भिक दिनों में अन (Unconscious) सम्बन्धी अवधारणा पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। (Uncam अर्धचेतन (Precordicious) एवं वेतन (Conscious)- स्वीकार किये हैं। वस्तुतः अर्धचंतन और चेतन, अचेतन के हो स्वरूप हैं। उनको धारणा है कि वृत्यात्मक ऊर्जा (Testinctual Energy) अहं अथवा अत्यहम् से जब अधिक प्रयत होती है और उत्तेजित मन अपनी भावनाओं को शब्द देने में सफल हो जाता है, तब मन का यह स्तर चेतन (Conscious) कहलाता है। और जब वृत्यात्मक ऊर्जा आहे अत्यहम् से निर्बल होती है उत्तेजित मन शब्दों से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता है। तो भावनायें कुंठित होकर मन के उस स्तर पर पुजीभूत हो जाती है, जिसे अचेतन मन (m) कहते हैं। हृदय के अधिकाश सूक्ष्म अंश अचेतन मन पर हो घनीभूत होते हैं, अर्थात् मनुष्य को अधिकाश भावनायें एवं मनोविकार अचेतन मन में हो रहते हैं। कहना यह है कि अचेतन मन जीवन के सभी अनुभवों एवं अभुक्त यासनाओं को सुरक्षित रखने वाला केन्द्रस्थल है। यही कारण है कि फ्रायड ने अचेतन मन को ही मनुष्य के आचार विचार व्यवहार स्वभाव आदि को रूपित करने वालो प्रमुख शक्ति माना है। फ्रायड का कहना है कि अवेतन की विभिन्न अवस्थायें होती हैं। जिस अवस्था में भावनाओं अथवा विचारों का मनुष्य को शीघ्र बोध हो जाता है, उस अवस्था को हो फ्रायड मन का चेतन (Conscious) स्तर मानते हैं। अहम मे चेतन और ' अर्धचेतन मन का प्राधान्य होता है तथा 'इद' में अचेतन मन का अहं और अत्यहम् के कार्य व्यापार अथवा दमन-सम्बन्धी अवधारणा जब अचेतन मन की अभुक्त वासनायें अथवा दमित इच्छायें (जो कि इद का ही प्रतिरूप है। अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग खोजती है तब मन को तीन प्रकार को चिन्ताओं का अनुभव होता है-वस्तुष्टि (Objective), स्नायविक (Neurotic) और नैतिक (Moral) बाह्यभय के कारण वस्तुनिष्ठ चिन्ताओं, अहं के उल्लंघन के भय से स्नायविक चिन्ताओं तथा अत्यहम् के अतिक्रमण- भय से नैतिक चिन्ताओं का उद्भव होता है। सभी प्रकार की चिन्तायें अहं' को झकझोरती हैं। परिणामत: 'अहं' क्रियाशील होकर अधिकांशत: दमन का सहारा लेता है।


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