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युद्ध विकल्प नहीं : डा. तरु मिश्रा

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 अत्यंत प्राचीन काल से मानवता और जीवन में शांति को लेकर युद्ध की आवश्यकता पर विमर्श चलता रहा है। युद्ध के परिणामों को देखें तो युद्ध किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किए जा सकते फिर भी धर्म की स्थापना के लिए युद्ध को अनिवार्य माना गया है। एक ममत्व से भरा मन कभी भी युद्ध को स्वीकार नहीं करता। इसी तरह ममत्व से भरे एक ह्रदय का भाव प्रस्तुत है कविता के रुप में - *युद्ध विकल्प नहीं* युद्ध विकल्प नहीं, ये हार है मानवता की। हार है ये आदर्शों की, सु-विचारों की।। छीन लेता है ये, बच्चों का बचपन,  सुहागिनों का सुहाग, बूढ़े माता-पिता का श्रवण कुमार। छीन लेता है ये, युवाओं का आत्मविश्वास । छीन लेता है ये, देश का भविष्य।। युद्ध अंत है, आरंभ नहीं। युद्ध हार है, जीत नहीं। युद्ध विकल्प नहीं किसी समस्या का, युद्ध श्रापित है, युद्ध वर्जित है । युद्ध है केवल अंधकार। युद्ध विकल्प नहीं, ये है हार मानवता की॥ - डा. तरु मिश्रा

छोड़ना था मुझे एक ही इंसान को : प्रीति

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 छोड़ना था मुझे  एक ही इंसान को और छोड़ना था  एक शहर एक गली जहां से गुजरते हुए  बहने लगतीं थी मेरी आंखें  भूल जाना था मुझे  एक ही इंसान की बेवफाई  किसी की बेहयाई  और बढ़ जाना था मुझे आगे चले जाना था मुझे दूर बहुत दूर  बस एक ही इंसान से चली थी मैं दूर बहुत दूर  उस शहर से उस गली से उस इंसान से पर फिर भी वो मुझसे ही रहा बस थोड़ा सा  बहुत थोड़ा सा और चुभता रहा  एक छोटा टुकड़ा उसकी यादों का मेरे दिल में  ना जाने क्यों वो मुझ मे से पूरा नही गया  चुभता ही रहता है वो अब तलक जो एक टुकड़ा रह गया  मुझमें थोड़ा सा जी चाहे निकाल फेंकूं  मै खुद से उसको या कि निकाल ही दूं  दिल अपना छोड़ना था एक इंसान को अब तो दिल छोड़ना होगा छोड़ना था मुझे  एक ही इंसान को बस एक ही इंसान को। # बस यूं ही

मैं लिखूंगी मेरा एक ख़्वाब:सारिका साहू

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 अदृश्य पर अंकित अनुराग मैं लिखूंगी मेरा एक ख़्वाब, जिसकी हक़ीक़त तुम रहोगे जनाब। उन सूखे दरखास्त हुए दरख़्त पर, मैं लिखूंगी मेरी एक खास बात। अनदेखी हवाओं की तपती लहर पर, मैं लिखूंगी अपना वो अथक प्रयास। उस तीव्र  सूरज  की रश्मि पर, मैं लिखूंगी  तुम्हें प्राप्त करने का परिश्रम। उस वन की  उठती दावानल की तेज लौ पर, मैं लिखूंगी विरह में जलती मेरी तपिश। रेगिस्तान की गर्म रेतीली ज़मीन पर, मैं लिखूंगी कई बार तुम्हारा नाम। बंजर धरती की जर्जर मिट्टी पर, मैं लिखूंगी  तड़पन की दरार। प्रकृति की हर चुभती नेमतों  पर, मैं लिखूंगी तुम्हें और पूछूंगी, क्या तुम एक हक़ीक़त हो या ख़्वाब। सारिका साहू

बेकार बातें

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 गम एक ही होता है पर बार बार दुख देता है।तब तक दुख देता है जब तक दुसरा दुख ना आ जाए।दुख से आंखे फेर सकते हैं,थोड़ी देर के लिए खुश हुआ जा सकता है। अगर याद कमजोर हो तो गम को भुलाया जा सकता है। याद कमजोर हो इसके लिए जरूरी है कि प्यार भर लिया जाए दिल में। प्यार कोई और देगा ये तो किस्मत की बात है पर खुद के लिए प्यार पैदा करना, खुद के प्यार में डूब जाने को जीवन जीना कहते हैं।जिंदा तो सभी दिखते हैं पर जिंदा कोई ही होता है,जिन्हे गम बार बार रुला नही पाता। (बेकार बातें) प्रीति

तुम्हारा एक नाम

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 तुम्हारा एक नाम  सुकून होना चाहिए  तुम्हें देखकर  तुम्हें सुनकर तुम्हें गुनकर सोचकर  मन में अजीब सी  सिहरन और सुकून  भर आता है। सिर से पांव तक  प्रतिमान हो तुम  सुकून का पैमाना  हो तुम ... रग-रग में और  सांसों में तुम्हारी  खुशबू रच-बस  गई हो ।

आइए ना कभी: प्रीति श्रीवास्तव

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 आइए ना कभी दिसंबर की धूप बनकर  हम बैठें कुछ देर आपके साथ  कुछ बातें करें  कुछ अपनी कहें कुछ आपकी सुनें  मत करिएगा आप मुहब्बत की बातें  मत देखिएगा मुझे ऐसे जैसे तितलियां निहारतीं हैं  गुलाब के फूल को कुछ देर बतियाएंगे हम और याद करेंगे कुछ दादी नानी की कहानियां  कुछ पुरानी कहावतें  कुछ पुराने स्वाद  जो खो गए हैं कहीं  याद करेंगे कच्ची आंगन में आपका आना वो मंडियां पर बैठकर  घंटो बतियाना  आइए ना कभी कोई भूले बिसरे गीत की तरह हम गुनगुना लेंगे कुछ पल के लिए  और साथ में रखेंगे एक पुरानी सी मउनी में  कच्चे पक्के बेर  कुछ खट्टी कुछ मीठी  जैसे हमारा लड़कपन हो थोड़ा कच्चा थोड़ा पक्का सा रिश्ता  कच्ची पक्की सी मुहब्बत अपनी ना पाने की आरजू थी ना बिछड़ने का डर  बस उस पल हां उसी पल में  बड़े सुकून से जीते थे हम आइए ना फिर से आप भूली बिसरी मुहब्बत साथ लेकर  अंजुरी पर बेर लेकर  साथ बैठेंगे और गुजार लेंगे अंधेरी ठिठुरती रात भी आपके तपन से प्रेम की ऊष्मा से आइए ना। # यूं ही प्रीति 😍

उसने एक बात पकड़ ली : सारिका साहू

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  उसने एक बात पकड़ ली और मैं भी कमज़ोर हो रो पड़ी उसने अपनी बाहें फैलाई  मुझे स्वतः ही रुलाई आई  उसका ढांढस बांधना  मुझे अंदर तक खंगाल गया वो मुझे अपनी कसम दे गया मेरे दुखों का साझेदार बन गया  मेरी सिसकती आहें भाप गया रो पड़ी मै भी, बच्चों की भांति  जो उसने स्नेह से मेरा दामन थाम लिया मेरी भीतरी वेदना बह गई मैं उससे अपनी पीढ़ा कह गई आज मैने किस्मत को खूब कोसा क्यों नहीं मिला तुम जैसा? उसने पूछा मेरे जैसे क्यों? मैं क्यों नहीं? मैं चुप हो गई मैं अपने भीतर रह गई मैं उसकी वेदना समझ गई यहीं हमारी कहानी ख़त्म हुई।।।।।