उसने एक बात पकड़ ली : सारिका साहू

 












उसने एक बात पकड़ ली

और मैं भी कमज़ोर हो रो पड़ी

उसने अपनी बाहें फैलाई 

मुझे स्वतः ही रुलाई आई 

उसका ढांढस बांधना 

मुझे अंदर तक खंगाल गया

वो मुझे अपनी कसम दे गया

मेरे दुखों का साझेदार बन गया 

मेरी सिसकती आहें भाप गया

रो पड़ी मै भी, बच्चों की भांति 

जो उसने स्नेह से मेरा दामन थाम लिया

मेरी भीतरी वेदना बह गई

मैं उससे अपनी पीढ़ा कह गई

आज मैने किस्मत को खूब कोसा

क्यों नहीं मिला तुम जैसा?

उसने पूछा मेरे जैसे क्यों?

मैं क्यों नहीं?

मैं चुप हो गई

मैं अपने भीतर रह गई

मैं उसकी वेदना समझ गई

यहीं हमारी कहानी ख़त्म हुई।।।।।

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