मौन सांझ.:सारिका




किनारें पर मैं, 

किनारों पर तुम,

और बहती - ये नदी

बीच में मौन, /गहरा मौन

और धड़कती साँसें,

 हवाएँ बयां कर रही कुछ,

लहरें सुन रही कुछ,

और वक़्त का ये झोंका/

गहरी नींद में सो गया।

 तुम चुप- मैं चुप

और बोल रही ये नयनें 

दोनों की,

गहरे-गहरे समुद्र सी

जिसमें खो गए हम।

नदी का प्रवाह और 

धुँधली सी शाम,

और बस, एक तुम, एक मैं

और हमारा ये प्रेम

 फिर से वही, मैं

फिर से वही, तुम

और ठहरा हुआ  मौन

जो कभी ख़त्म ना होगा

अनन्त काल तक ।

 ✍️

Comments

Popular posts from this blog

अज्ञेय की काव्यगत विशेषताएँ

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

असाध्य वीणा कविता की काव्यगत विशेषता.