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व्यापर नहीं है : प्रेम

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       (साभार ) किसी के द्वारा किए गये व्यवहार से प्रभावित नहीं होना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति का अपना गुण-धर्म होता है ।मेरे साथ कोई कैसा भी व्यवहार करे, यह उसका आचरण है । उससे प्रभावित ना होना और अपने निजी व्यक्तित्व को बनाए रखना जीवन की पूँजी है ।हमारी कोशिश है कि हम अपनी निजता बनाये रखें । समय का बदलना और व्यवहार भी पूर्णतः बदल जाना आज समय का युगीन सच है । मेरी अपनी यह चेष्टा है कि अपनी निजता और मनुष्यता को बनाये रखूँ । किसी से कोई उम्मीद नहीं , कोई लगाव नहीं । कोई प्रतिदान की अपेक्षा नहीं । प्रेम के बदले ,प्रेम पाने की आकांक्षा व्यापार है ,जो मुझे कतई समझ नहीं आती । किसी के प्रति मानवीय व्यवहार के उससे अपेक्षा रखना नितान्त अनुचित है । यह सहज मानवीय आचरण नहीं । सहजता और सह्दयता का कोई मोल -तोल हो ही नहीं सकता ।

त्यागपत्र : एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास ( जैनेन्द्र)

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     साहित्य , भाषा और समाज का अत्यन्त घनिष्ट संबंध रहा है समाज के चितवृत्ति के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य और उसकी भाषा पर भी पड़ता है। यह प्रभाव साहित्यिक विधाओं का रूप परिवर्तन भी तय करता है। हमारी वैदिक - पौराणिक परम्परा में जहां संवादों , महाकाव्यों का महत्व रहा है। वहीं आज साहित्य का रूप बहुत बदल चुका है। आख्यायिका परम्परा का साहित्य आज निबन्ध , कहानी , कविता , उपन्यास आदि जैसी अनेक विधाओं में परिवर्तित हो चुका है यह परिवर्तन सामाजिक चितवृत्ति में होने वाले परिवर्तन के कारण ही होता रहा है। समाज की भावदषा एवं मनोदशा में परिवर्तन के साथ-साथ भाषा का रूप भी परिवर्तित होता रहता है।               साहित्य , भाषा और समाज के इन्हीं संबंधों के परिणाम स्वरूप भाषा भी अपनी यात्रा तय करती है अपने आरम्भिक रूप से लेकर अब तक हिन्दी भाषा , के रूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं। यह परिवर्तन काव्य भाषा एवं गद्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठा के साथ-साथ सूक्ष्म भावात्मक अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में भी दृष्टिगत होती है। गद्य भाषा के रूप में सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण रूप औपन्यासिक भाषा का है। औपन्यासिक भाषा में काव

लोक रंग की जीवन्तता के कलमकार:रेणु

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       फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी साहित्य के विरले एवं विशिष्ट कलमकार हैं, एक ऐसे कलमकार  जिनके कलम में कागज पर जीवन -जगत के विविध एवं रंग-विरंगे चित्रों को जीवन्त रुप में उकेरने की अद्भुत क्षमता है| इनके कलम से जो कुछ भी रचा गया है, उसमें रुप और गंध के साथ जीवन की ध्वनि भी ध्वनित होती है| शब्दों के  इस्तेमाल और कथा भाषा की नव्यता एवं ताजगी देखते ही बनती है | रेणु एक ऐसे सर्जक कलाकार हैं, जिनमें जीवन की विविध भंगिमाओं का अंकन जस का तस देखने को मिलता है|       रेणु की ख्याति आंचलिक कथाकार के रुप में है, और विशेषत: उपन्यासकार के रुप में ,जिसका आधार मैला आंचल है | लेकिन रेणु की कहानियों और अन्य उपन्यासों में  लोक कथाओं, लोक विश्वासों, लोक गीतों और लोक की विविध छटाओं का व्यापक अंकन देखने को मिलता है| ठेस, लालपान की बेगम, रसप्रिया , पंचलाइट , तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुल्फाम इत्यादि | इन कहानियों में शब्दों में जो चित्र और ध्वनि देखने को मिलते हैं उनका आस्वादन करके हम  उस लोक से साक्षात्कार कर लेते हैं, जिसका अंकन रेणु कर रहे होते हैं| शब्दों में चित्रों के साथ - साथ गंध, ध्वनि एवं लोक की विविधत

क्रियात्मक शोध : भाषा शिक्षण में निदानात्मक परीक्षण

     शोध से संबन्धित विविध पक्षों पर विचार इस वीडियो में आपको देखने को मिलेगा| क्रियात्मक शोध (Action Research) भी शोध की एक विशिष्ट प्रणाली है.|जिसमें शोध की परिकल्पना चिकित्सा करने के विविध पक्षों को दृष्टिगत रखते हुए शोधकर्ताओं द्वारा शोध किया जाता है| निदान और चिकित्सा शोध का एक विशेष औजार है | निदान और चिकित्सा ,शिक्षण प्रणाली का अभिन्न अंग रही है | यह प्रक्रिया तो शिक्षण जितनी पुरानी और व्यावहारिक है |कक्षा में सभी छात्रों की सीखने क्षमता एक समान नहीं होती ,सबकी ग्रहण करने की क्षमता अलग -अलग होती है | इसे ध्यान में रखते हुए शिक्षक को अपनी शिक्षण प्रक्रिया  में निदानात्मक शोध प्रणाली द्वारा सभी विद्यार्थियों को सम्यक रूप से शिक्षा देना चाहिए |      निदानात्मक परीक्षण एवं चिकित्सकीय शिक्षण - निदानात्मक और चिकित्सकीय शिक्षण आधुनिक शिक्षण प्रक्रिया में बहुत ही प्रभावी हो चला है | स्कूल चाहे ग्रामीण हो या शहरी ,प्राथमिक हो या माध्यमिक ,उसका प्रशासन सरकार के हाथों में या निजी संस्थाओं के, उसमें पढ़ने वाले सभी छात्रों के लिए यह शिक्षण प्रणाली बेहद कारगर है |     बच्चों की अपनी-अपनी सीमा

थकान मन की

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थकान मन की   कभी कभी हम थक जाते हैं,  और बहुत थक जातें - काम के कारण नहीं,  बदलते व्यवहार और  चाल के कारण........  चरित्र के कारण.......  अभी छोटी समझ के कारण....  अपनेपन के कारण.....  लोगों कितने पराये हैंं और  कितने अपने यह समझ ना पाने के कारण हम तब और भी थक जाते हैं - हम अपनी भावुकता के सहारे  इस भौतिक दुनिया में जीने और जीने की जिद के कारण...  बहुत बूरी तरह थकते ही नहीं  खुद को बेसहारा पाते हैं तब......

लोकरंग का पुनर्नवन

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लोक जीवन के जीवन्त रंग, इन रंगीन  चित्रों और सुनहली गेंहू की फसल को देखना अत्यंत सुखद और रुचिकर है. जहाँ शब्द मूक हो जाते और चित्रों में निहित भाव प्रधान हो जाते हैं. आज कुशीनगर के जोगिया जनुबी पट्टी जाकर लोक रंग और लोक जीवन से साक्षात्कार करने का अवसर आदरणीय सर प्रो. सूरज बहादुर थापा जी के सौजन्य से मिला....... लोक की सोंधी सुगंध जीवन को पुनर्नवित कर देती है.  

मैला आँचलः लोक जीवन का आख्यान

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 मैला आँचलः लोक जीवन का आख्यान हिन्दी कथा साहित्य अपने आरम्भिक काल से ही समाज के व्यापक यथार्थ को अभिव्यक्त करने की दिशा में उन्मुख रहा है। भाव, भाषा एवं शिल्प सभी स्तरों पर हिन्दी कथा साहित्य में विविधता दृष्टिगत होती है। समाज के सभी वर्गों एवं सभी क्षेत्रों के जीवन स्थितियों के अंकन की दृष्टि से हिन्दी कथा साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। हिन्दी साहित्य के इतिहास का अवलोकन करें तो हमें यह देखने को मिलता है कि भक्ति काल के बाद आधुनिक काल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। साहित्यिक विधाओं के साथ-साथ भाषा की दृष्टि से भी आधुनिक काल का योगदान महत्वपूर्ण है। आधुनिक काल में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के प्रयासों से भाषा एवं साहित्य का नया स्वरूप विकसित हो रहा था। भाषा एवं साहित्य पर नये सामाजिक जनजागरण का प्रभाव भी प्रतिबिम्बित हो रहा था। जनता की चिŸावृŸिायों में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव व्यापक रूप से साहित्य को प्रभावित करता है, यह प्रभाव आधुनिक काल के साहित्य में देखने को मिलता है।  आधुनिक काल में साहित्य का व्यापक रूप से जनतंत्रीेकरण हुआ, पूर्ववर्ती काल तक साहित्य का नायकत्व समाज के विशिष्ट वर्ग तक ही स