कुछ किस्से, जो आए मेरे हिस्से

दुनियादारी अब और नहीं, इसी दुनिया की भीड़ में इंसान अकेला और नितांत अकेला होता जा रहा है। इस दुनिया की भीड़ से एकान्त का कलरव बहुत ही प्रीति कर है। जहां एक ओर स्मृतियों का जंगल उगा हुआ है और दूसरी ओर उस जंगल के में निनाद करते हुए झरने और नदी सा प्रवाह। ऐसा प्रवाह जिसे भविष्य और भवितव्य की चिंता और वर्तमान की परवाह नहीं , और सामाजिक नीति नीति के निर्वहन का बंधन नहीं। एक ऐसा एकान्त जिसमें मन को रवाना आसान तो नहीं ,लेकिन अगर मन रम गया तो दुनिया और दुनियादारी कहां इसकी भी फिक्र नहीं। चलो कोशिश करते हैं मन को उसी दुनिया में रमाने की जहां बेपरवाही और बेपरवाही हो, रमण और एकान्त का रमण ही प्रधान हो।











चलो अब किसी और शहर चलते हैं ,
बहुत हो गए दोस्त और दुश्मन इस शहर में 
कुछ नए दोस्त , दुश्मन बनाते हैं 
चलो अब किसी और शहर में बसते हैं 
कुछ सलीके नए होंगे 
कुछ तरीके नए होंगे 
कुछ ख्वाब नए होंगे 
कुछ अंदाज नए होंगे ।
ये पुराने अंदाज बदलते हैं
चलो अब नए शहर में रहते हैं।

मां - तेरी बहुतेरि बातें
जेहन में उभर आतीं हैं
आज भी यही महसूस
होता है।
बचपना गया ही नहीं
अक्सर तेरी बातें
अनसुना कर देता था।
आज उन्हीं बातों को
याद करता हूँ।
मां फिर वही
बचपना चाहता हूँ।
जिसमें बहरापन हो
अनसुनापन हो -
खिलखिलाती हंसी हो।
और
बिना रुके सब बातें
कह देने की ललक हो-
झूठी सच्ची सब बातें।
(अमरेन्द्र)

दूर होना और नजदीक होना एक मनोवेग है। जितना दुःखद, उतना ही स्पृहणिय भी। जब हमारा मनोवेग धीरे-धीरे थिर जाता है तब वेदना जीवन का संस्कार बन जाती है, वह पीड़ा और वेदना में हमारी आदत हो जाती है। एक बार जब भी कोई चीज हमारी आदत बन जाती है, तब हम उसके बिना अभाव महसूस करते हैं चाहे वह आदत दुःख ही ना हो। तुम्हें लगता है कि मैं दुःखी हूँ तुम्हारे साथ ना होने से। मगर इतना जरूर जान लो - तेरे होने ना होने तक के एहसास से रुबरू हो कर एक अजीब सुख, शूकून और आनन्द की अनुभूति होती है। शायद इसका एहसास तुम्हें हो या ना हो।
ठहरना हमें आया नहीं।
यायावरी और जोखिम
हिस्सा है जिन्दगी का।
पीड़ा बोध है ज्ञान मेरा
जीने का ढंग सीखा है-
हमने नदियों- झरने से।
(यायावर)


हमारे टूटने की प्रक्रिया
भरोसे के टूटने के साथ शुरू होती है,
मन टूटता है ,
उम्मीद टूटती है 
और फिर एक दिन 
इन्सान टूट जाता है।
बिखर जता है ।

घोसालों की खूबसूरती यही है कि- 
सारे परिंदे शाम को एक साथ हों।
आसमान सुंदर और बहुत सुंदर है ,
लेकिन घोसाले सुकून कहां।
(अमरेन्द्र अमरेंद्र )

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