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मुक्तिबोध की काव्य भाषा एवं परिचय

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मुक्तिबोध :संक्षिप्त परिचय   जन्म : 13 नवंबर 1917, श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : कहानी, कविता, निबंध, आलोचना, इतिहास कविता संग्रह : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल कहानी संग्रह : काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी आलोचना : कामायनी : एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी इतिहास : भारत : इतिहास और संस्कृति रचनावली : मुक्तिबोध रचनावली (छह खंड) निधन 11 सितंबर 1964, दिल्ली मुख्य कृतियाँ https://www.batenaurbaten.com/2022/05/blog-post_11.html    (मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताओं के लिए देखें ) मुक्तिबोध की काव्य भाषा – मुक्तिबोध की काव्य भाषा उनके कथ्य के अनुरूप ही अपने ढंग की है । इसमें कवि के अनुभूत को संप्रेष्य बनाने की अद्भूत शक्ति है ,और वह जीवन के तथ्यों को उजागर करने में सक्षम है ।अभियक्ति   के समस्त खतरे उठाकर उन्होंने पारंपरिक भाषा शैली के मठों और दुर्गों को तोड़कर अपने अरुण कमल वाले उद्देश्य को भाषिक स्तर पर ही सफलता से प्राप्त किया है । उनकी भाषा में जो वैचित्र्य दिखलाई देत

भारतीय आर्य भाषाएँ :

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भारतीय आर्य भाषाएँ और हिन्दी प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएँ मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएँ आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएँ वैदिक संस्कृत –वेदों का ज्ञान जिस भाषा है और जो भाषा वैदिक काल में प्रचलित थी उसे वैदिक संस्कृत कहा गया लौकिक संस्कृत – लोक जीवन में प्रचलित भाषा को लौकिक संस्कृत कहा गया मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएँ पालि प्राकृत अपभ्रंश आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ पश्चिमी हिंदी राजस्थानी गुजरती मराठी बिहारी बंगाली उड़िया असमी पूर्वी हिंदी लहंदा सिन्धी पंजाबी पहाड़ी पश्चिमी हिंदी खड़ी बोली ब्रजभाषा बंगारू कन्नौजी बुन्देली बिहारी भोजपुरी मैथिलि मगही पूर्वी हिंदी अवधी बघेली छतीसगढ़ी

छायावाद(1918-1936) :डा. वीना सिंह

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 किसने छायावाद चलाया, किसकी है यह माया  हिन्दी में यह शब्द अनोखा, कहो कहाँ से आया.(मुकुट धर पाण्डेय ने लेख लिखा छायावाद शीर्षक से और यहीं से छायावाद नाम चल पड़ा)  छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है. प्रमुख छायावादी कवि -   1.जय शंकर प्रसाद ( झरना ,आंसू , कामायनी ) 2. सुमित्रानंदन पंत (वीणा , ग्रंथि , उच्छवास ,पल्लव ) 3. महादेवी वर्मा 4. सूर्य कांत त्रिपाठी निराला  (अनामिका ,परिमल ) ,  छायावाद के उदव के कारण और श्रोत छायावाद के उद्भव के अनेक कारण से जिनमें हमारी सामाजिक साहित्यिक राजनीतिक परिस्थितियों के अलावा रविंद्र नाथ की बंगला कविताओं तथा वर्ड्सवर्थ शैली तथा की टच की अंग्रेजी कविताओं का स्थान महत्वपूर्ण है वेदांत दर्शन तथा बौद्ध दर्शन का भी इसका भी प्रभाव पड़ा है यही कारण है कि छायावाद के अभ्युदय और प्रेरणा स्रोत को लेकर विद्वानों में मतभेद है आचार्य शुक्ल इस पर इस पर पाश्चात्य प्रतीक बाद का प्रभाव देखते हैं तथा इसके उद्भव का कारण द्विवेदी युगीन कविता के प्रति विद्रोह भाव मानते हैं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इस काव्य धारा पर अंग्रेजी साहित्य का पूरा प्रभाव मानते हैं जिसम

दुलाइवाली: राजेन्द्र बाला घोष (1907)

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  काशी जी के दशाश्‍वमेध घाट पर स्‍नान करके एक मनुष्‍य बड़ी व्‍यग्रता के साथ गोदौलिया की तरफ आ रहा था। एक हाथ में एक मैली-सी तौलिया में लपेटी हुई भीगी धोती और दूसरे में सुरती की गोलियों की कई डिबियाँ और सुँघनी की एक पुड़िया थी। उस समय दिन के ग्‍यारह बजे थे, गोदौलिया की बायीं तरफ जो गली है, उसके भीतर एक और गली में थोड़ी दूर पर, एक टूटे-से पुराने मकान में वह जा घुसा। मकान के पहले खण्‍ड में बहुत अँधेरा था; पर उपर की जगह मनुष्‍य के वासोपयोगी थी। नवागत मनुष्‍य धड़धड़ाता हुआ ऊपर चढ़ गया। वहाँ एक कोठरी में उसने हाथ की चीजें रख दीं। और, 'सीता! सीता!' कहकर पुकारने लगा। "क्‍या है?" कहती हुई एक दस बरस की बालिका आ खड़ी हुई, तब उस पुरुष ने कहा, "सीता! जरा अपनी बहन को बुला ला।" "अच्‍छा", कहकर सीता गई और कुछ देर में एक नवीना स्‍त्री आकर उपस्थित हुई। उसे देखते ही पुरुष ने कहा, "लो, हम लोगों को तो आज ही जाना होगा!" इस बात को सुनकर स्‍त्री कुछ आश्‍चर्ययुक्‍त होकर और झुँझलाकर बोली, "आज ही जाना होगा! यह क्‍यों? भला आज कैसे जाना हो सकेगा? ऐसा ही था तो सवे

हिन्दी पाठ्यक्रम : UPSC

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प्रश्नपत्र-1 खंड : ‘क’ (हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का इतिहास) ·   अपभ्रंश , अवहट्ट और प्रारंभिक हिन्दी का व्याकरणिक तथा अनुप्रयुक्त स्वरूप। ·   मध्यकाल में ब्रज और अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास। ·   सिद्ध एवं नाथ साहित्य , खुसरो , संत साहित्य , रहीम आदि कवियों और दक्खिनी हिन्दी में खड़ी बोली का प्रारंभिक स्वरूप। ·   उन्नीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली और नागरी लिपि का विकास। ·   हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का मानकीकरण। ·   स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी का विकास। ·   भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास। ·   हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक और तकनीकी विकास। ·   हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ और उनका परस्पर संबंध।   ·   नागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ और उसके सुधार के प्रयास तथा मानक हिन्दी का स्वरूप। ·   मानक हिन्दी की व्याकरणिक संरचना।   1.    हिन्दी साहित्य की प्रासंगिकता और महत्त्व तथा हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन की परम्परा। 2.   हिन्दी साहित्य के इतिहास के निम्नलिखित चार कालों की साहित्यिक प्रवृत्तियाँ                ( क) आदिकालः