मेरी कविताएं....
बहुत करीने से गढ़ा है हमने खुद को। यूं ही बेबजह जिन्दगी का हिसाब न कर बेहिसाब हूँ मैं तू अपने हिसाब में रह। पुरानी बातें जो हैं उन्हें वैसा ही रहने दे। उन मेल-मुलाकातों का मोल - तोल ना कर। बेहिसाब हूँ मैं तू हिसाब-किताब में रह। (अमरेन्द्र) घोंसले ही नियति नहीं हैं परिन्दों की आसमानों और ऊंचाईयों की दूरियां भी उनकी मंजिल नहीं । यायावरी और जोखिम है हर पल उनके जेहन में। ना घर ना शहर और ना ही देश की परिधि उन्हें रोक सकेगी। हमारी नियति है घर, नगर और देश। आजाद नहीं हैं हम-परिन्दों के मांनिद। (अमरेन्द्र)