सौन्दर्य और जीवन

 सौन्दर्य में बासी को ताजा करने की अद्भूत क्षमता होती है। जीवन को उत्साह और उल्लास से भरने में उत्सवों और सौन्दर्य की भूमिका बहुत ही विशिष्ट होती है। इसी कारण भारतीय परम्परा में हर दिवस किसी न किसी त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। प्रथमा तिथि से लेकर अमावस्या एवं पूर्णिमा तक उत्सव की धूम बनी रहती है। सुहागन महिलाएँ विशेष रुप से व्रतों और उत्सवों का पालन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ करतीं हैं। सोलह श्रृंगार करके अपने आस-पास के समग्र परिवेश को खुशनुमा कर देतीं हैं। भारतीय परम्परा ऋंगार और सौन्दर्य का विशेष महत्व है।  हमारे यहाँ मनाये जाने उत्सवों का मूल उद्देश्य ही यही है कि जीवन की एकरसता को दूर कर नवीन ऊर्जा और ऊष्मा का संचार किया जाये। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में जीवन नित्य नवीन बनाने जो कला है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। 

आज के समय में जिस तरह से लोगों के बीच निराशा और तनाव बढ रहा है ऐसे समय में उस भाव बोध की महती आवश्यकता है जो हमारी परम्परा में अनादि काल से चली आ रही है। इसी भाव बोध पूरित कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है -

तुम एक पूरी कायनात हो 

तन से ही नहीं, मन से भी 

तू बेहद खुबसूरत है 

तेरे साथ होने से 

महक उठता मेरा तन 

और चहक जाता है मन। 

महावर का लाल चटक रंग 

और भी लाल हो जाता है 

तेरे पैरों से लिपटकर /

सुर्ख मेहन्दी का रंग 

तेरे फूल से हाथों में लगकर 

फूला नहीं समाता। 

सच है कि तू ख्वाब है 

मेरी कायनात है। 

जिसके पैरों की खूबसूरती 

के सामने 

लाल रंग भी लाजबाब है। 

वो पाजेब और महावर वाली 

तस्वीर / 

मन में ही नहीं 

रुह में उतर आयी है। 

अब भी मन में रह रहकर 

उभर आती है 

वो तस्वीर तुम्हारी

वो नाखूनों पर चढा लाल रंग 

और वो दमकता पावन चरन।

रूह में उतरा हुआ तेरा पावन 

रूप रंग ।

(अमरेन्द्र)

Comments

  1. बहुत खूब। सुंदर वर्णन है लाल रंग का👌

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अज्ञेय की काव्यगत विशेषताएँ

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

असाध्य वीणा कविता की काव्यगत विशेषता.