वाक्य और उसके भेद

 


वाक्य- शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं जब कोई शब्द कारक चिन्हों के आधार पर दूसरे शब्द से जुड़ता है , और एक निश्चित भाव प्रकट करता है तो उसे वाक्य कहते हैं



वाक्य के अंग

}  उद्देश्य- वाक्य की पूर्णता भाव-सम्प्रेषण पर निर्भर होती है। इसके लिए दो वैयाकरणिक तत्त्वों की उपस्थिति अनिवार्य है। उनमें से एक है उद्देश्य अथवा विषय। उद्देश्य का तात्पर्य है वह व्यक्ति, वस्तु या स्थान जिसके बारे में वाक्य में सूचना, तथ्य या विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। व्याकरण शास्त्र में इस तत्व को विषय के नाम से जाना जाता है। विषय की उद्देश्य भी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है कि वाक्य के इस अंग के अन्तर्गत वाक्य की रचना, कथन या लेखन के उद्देश्यभूत विषय का कथन किया जाता है। उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम या क्रिया को रखा जा सकता है।

 उदाहरण के लिए-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे।

व्यायाम से शरीर स्वस्थ तथा बलवान होता है।


}  विधेय- वाक्य का दूसरा अंग है-अभिधेय इस अंश के अन्तर्गत विषय के बारे में तथ्य सूचना या विचार प्रस्तुत किया जाता है। दूसरे शब्दों में उद्देश्य के विषय में वाक्य में जो कुछ कहा जाता है उसे विधेय के नाम से जाना जाता है। उद्देश्य का उच्चारण एक प्रश्न की तरह होता है जबकि विधेय उस प्रश्न के उत्तर की तरह होता है।

उदाहरण-"सरदार सरोवर परियोजना से देश के अनेक राज्यों को बिजली और पानी मिल सकेगा।"

    यहाँ उद्देश्य है सरदार सरोवर परियोजना अन्य खण्ड में इस परियोजना से होने वाले लाभों का का वाचन किया गया है। लाभ-कथन करने वाले वाक्य के अंग को विधेय कहा जाएगा। इस प्रकार विधेय में कर्म, क्रिया और क्रिया के पूरक का अनिवार्य रूप से उल्लेख होता है कोई भी वाक्य इन दो खण्डों अथवा अशों से पूर्णता पाता है। जिस प्रकार आकांक्षा, योग्यता और सन्निधि से युक्त वाक्य ही भाव सम्प्रेषण की दृष्टि से परिपूर्ण है उसी प्रकार उद्देश्य और विधेय की उपस्थिति भी वाक्य की परिपूर्णता के लिए अनिवार्य है। 


}  वाक्य के प्रकार 

रचना की दृष्टि वाक्यों के प्रकार-

}  सरल वाक्यसरल वाक्य को साधारण वाक्य के रूप में भी जाना जाता है। ये वाक्य भाषा के सहज रूप के प्रकाशक होते हैं। सरलता के साथ संक्षिप्तता इन वाक्यों की पहचान है। व्याकरण की दृष्टि से सरल वाक्यों में एक उद्देश्य और एक ही किया हो है। भाव की पूर्णता और कथ्य की सटीकता के चलते ये वाक्य सर्वथा पूर्ण और सफल होते हैं। किसी भी भाषा में इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग सर्वाधिक होता है।

उदाहरण-सूर्य का उदय पूर्व दिशा से होता है।

}  मिश्रित वाक्य इन्हें मिश्र वाक्य के रूप में भी जाना जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस प्रकार के वाक्यों में एक से अधिक तथ्यों का उल्लेख किया जाता है। अन्य शब्दों में कहें तो इस प्रकार के वाक्य वस्तुतः दो वाक्यों के मित्र रूप होते हैं। इनमें से एक प्रधान उपवाक्य और दूसरा गौण उपवाक्य होता है। कुछ मामलों में गौण उप-वाक्यों की संख्या अधिक भी हो सकती है।

उदाहरण- परीक्षा समाप्त होते ही विद्यार्थी कक्ष से बाहर आ गए। 

}  संयुक्त वाक्य इन वाक्यों में एक प्रधान वाक्य होता है जबकि गौण उपवाक्यों की संख्या एक से अधिक होती है। इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग जटिल कथ्य तथा विषय की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है।

उदाहरण-'अभी सुबह हुई भी नहीं थी कि भारतीय सेनाओं ने शत्रु पर धावा बोल दिया और उसकी चार चौकियों को अपने कब्जे में ले लिया। 


अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के प्रकार - अर्थ का तात्पर्य है वाक्य में निहित भाव। प्रत्येक वाक्य किसी भाव, विचार, आदेश, इच्छा, संकेत इत्यादि के प्रकाशन के लिए कहा या लिखा जाता है। इन उद्देश्यों के अनुसार वाक्य की संरचना और प्रकृति में अन्तर होता है हिन्दी व्याकरण में वाक्यों के इस प्रकार के भेद भी अंग्रेजी व्याकरण की परिपाटी से प्रभावित हैं। इस विधि से वाक्यों को उनके कव्य की प्रकृति के अनुसार नाम दिया जाता है। यद्यपि तात्त्विक दृष्टि से इस आधार पर वाक्यों की अनन्त श्रेणियाँ हो सकती हैं। फिर भी सुविधा के लिए इन्हें आठ श्रेणियों में विभक्त किया गया है। इनके नाम है-

}  सकारात्मक वाक्य -जिन वाक्यों में सामान्य कथन या स्वीकार सूचक कथ्य प्रस्तुत किया जाता है उन्हें सकारात्मक वाक्य कहा जाता है। प्रकार के वाक्यों के माध्यम से प्रायः नियम, तथ्य, सूचनाएं और आँकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं इसलिए इन्हें विधि सूचक वाक्य भी कहा जाता है।

उदाहरण- दिल्ली भारत की राजधानी है।

        स्वतन्त्रता दिवस प्रतिवर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है।

}  नकारात्मक वाक्य-जिसके माध्यम से किसी सूचना, तथ्य, आदेश इत्यादि को नकारा जाए उसे नकारात्मक वाक्य कहा जाता है। प्रकार के वाक्य द्वारा किसी घटना अथवा बात के न होने अथवा अस्वीकृति का प्रदर्शन भी किया जाता है इसलिए इन ना भी कहा जाता है।

उदाहरण- कमरे में कोई नहीं है।

भारत ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया।

}  प्रश्नवाचक वाक्यजिन वाक्यों के माध्यम से जिज्ञासा या इच्छा प्रकट की जाए या प्रश्न पूछा जाए उन्हें 'प्रश्नसूचक वाक्य' की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार के वाक्यों में क्या, क्यों, कैसे, कहाँ जैसे शब्दों का प्रयोग होता है और अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?


}  इच्छावाचक वाक्यजिस वाक्य के माध्यम से वक्ता या लेखक अपनी इच्छा व्यक्त करे, परामर्श या सलाह जाहिर करे, उसे इच्छार्थक या इच्छावाचक वाक्य कहा जाता है। इन वाक्यों का प्रयोग परामर्श और निर्देश के रूप में भी किया जा सकता है।

उदाहरण- पंसारी की दुकान पर पता करो, यहाँ यह औषधि अवश्य मिल जाएगी।

}  आज्ञासूचक वाक्यजिन वाक्यों के माध्यम से वक्ता किसी को आज्ञा प्रदान करता है उन्हें आज्ञासूचक वाक्य कप जाता है। इस प्रकार के वाक्यों में श्रोता की इच्छा का कोई महत्त्व नहीं होता बल्कि आज्ञापालन की अपेक्षा होती है।

उदाहरण- फटाफट खाना खाओ और सो जाओ।

}  संदेह्वाचक वाक्य -जिन वाक्यों में किसी घटना, स्थिति या व्यक्ति के प्रति शक या सन्देह प्रकट किया जाए, उन्हें सन्देहवाचक वाक्य क जाता है। सन्देह दो प्रकार का है। इनमें से एक सम्भावना के रूप में होता है जबकि दूसरा आशंका के रूप में दोनों भावों को प्रकट करने वाले वाक्यों को इस कोटि के अन्तर्गत रखा जा सकता है।

उदाहरण - आज वर्षा हो सकती है .

}  संकेतवाचक वाक्यजिन वाक्यों में किसी व्यक्ति वस्तु या स्थानका पूर्णप्रस्तुत करके उनकी ओर इशारा किया जाए उन्हें कहा जाता है। इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग अनपेक्षित विवरण से वचने या सीधे कथन के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- भोजन में आज भी वही है जो कल था।

आज की घटना को देखकर मुझे अपने बचपन की याद हो आई


}  विस्मयादि बोधक वाक्य -जिन वाक्यों के माध्यम से वक्ता या लेखक किसी कथन या घटना के प्रति अपनी हैरानी को व्यक्त करता है उन्हें विस्मयादि वाचक वाक्य कहा जाता है। इस प्रकार के वाक्यों के माध्यम से हैरानी के साथ ही भय, उत्साह, शोक जैसे स्वाभाविक भावों को भी अभिव्यक्त किया जाता है।

उदाहरण-अरे! तुम इतने बड़े हो गए?

भागो भागो! मकान गिर रहा है। उफ यह क्या हो गया !

क्रिया की दृष्टि से वाक्य के भेद -सामान्यतः हिन्दी भाषा के वाक्यों में क्रिया का प्रयोग कर्ता के आधार पर होता है। इसका तात्पर्य है कि क्रिया का लिंग और वचन ,कर्त्ता के लिंग और वचन के अनुसार होता है। किन्तु अभिव्यक्ति के विभिन्न पहलुओं में क्रिया की भूमिका बदलती रहती है। कभी यह कर्म का अनुसरण करती है तो कभी भाव का क्रिया के इन प्रयोगों को वाच्य के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। ऐसे वाक्यों की व्याकरण में पृथक श्रेणी के अन्तर्गत रखा जाता है। इनके नाम हैं-कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य इनका सामान्य परिचय यहाँ प्रस्तुत है-

कर्तृवाच्य -जिन वाक्यों में कर्त्ता प्रधान होता है अर्थात् क्रिया का प्रयोग कर्ता पर आधारित होता है उन्हें कर्तृवाच्य के वाक्य अथवा कर्त्ता प्रधान वाक्य कहा जाता है। इन वाक्यों में प्रयुक्त क्रिया का लिंग और वचन कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होते हैं। कर्ता प्रधान वाक्यों में कर्म का होना आवश्यक नहीं है। यह वाक्य का साधारण रूप है और आमतौर पर सार्वजनिक भाषा-व्यवहार में इसी प्रकार के वाक्यों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- हमारी भैंस रोज़ बारह लीटर दूध देती है। 

मैं हर सुबह 200 दण्डवैठक लगाता हूँ।।

  कर्मवाच्य -जिन वाक्यों में क्रिया का आधार कर्त्ता न होकर कर्म होता है उन्हें कर्मवाच्य अथवा कर्म-प्रधान वाक्य कहा जाता है। इस वाक्यों में क्रिया का लिंग और वचन कर्त्ता के लिंग और वचन के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार होता है। कर्म क अर्थ है, जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े। जैसे धोबी कपड़ा धोता है इस वाक्य में धोबी कर्त्ता, धोना क्रिया और कपड़ा कम है। मौखिक भाषा में इस प्रकार के वाक्यों का व्यवहार यदा-कदा ही होता है किन्तु लिखित भाषा; विशेष रूप से साहित्य में इनका प्रयोग पर्याप्त होता है।

उदाहरण-

प्रधानमन्त्री द्वारा लालकिले पर तिरंगा झंडा फहराया गया ।

ग्रहण के अवसर पर लाखों लोगों द्वारा संगम पर स्नान किया गया।


  भाववाच्य - जिन वाक्यों में कथ्य के तौर पर भाव अर्थात् अनुभवजन्य स्थिति को प्राधान्य दिया जाता है और उसे क्रिया द्वारा प्र किया जाता है उन्हें भाव-वाच्य या भाव प्रधान वाक्य कहा जाता है। भाव का अर्थ है वे अनुभव जिन्हें आँख, नाक, इत्यादि ज्ञानेन्द्रियों, हाथ, पाँव आदि कर्मेन्द्रियों और मन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। भाषा के माध्यम से इनका सही-सही वर्णन नहीं किया जा सकता केवल इशारा किया जाता है।

उदाहरण-

अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जाता।

 मुझसे तुम्हारा दुःख देखा नहीं जाता।


 

 

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